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बेलारूस की रेसर क्रिस्टसीना सीमानौस्काया ने जापान से वापस जाने से किया इन्कार

टोक्यो। जापान में ओलंपिक खेलों के दौरान सोमवार को एयरपोर्ट पर हंगामा हो गया। खेलों में भाग लेने आई बेलारूस की एथलीट क्रिस्टसीना सीमानौस्काया (24) ने अपने देश लौटने से इन्कार कर दिया। कहा कि वहां पर उन्हें खतरा है। हवाई अड्डे पर ही उन्होंने वहां तैनात जापानी पुलिस की मदद ले ली। इसके बाद उन्हें टोक्यो स्थित पोलैंड के दूतावास ने मानवीय आधार पर अपने देश का वीजा उपलब्ध करा दिया। चेक गणराज्य ने भी एथलीट को वीजा देने का प्रस्ताव रखा है। क्रिस्टसीना ने यूरोप में रहने की इच्छा जताई है।

इससे पहले अपने देश में सरकार विरोधी आंदोलनों से विचलित क्रिस्टसीना ने आरोप लगाया कि जापान आए बेलारूस ओलंपिक एसोसिएशन के अधिकारी और कोच उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे। उन पर गुरुवार को 4 गुणा 400 मीटर रिले रेस में भाग लेने के लिए दबाव डाला जा रहा है, जिसमें वह पहले कभी नहीं दौड़ीं। बीते शुक्रवार को क्रिस्टसीना 100 मीटर की रेस में दौड़ी थीं और सोमवार को उन्हें 200 मीटर की प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था। लेकिन उससे पहले ही रविवार को विवाद के चलते बेलारूस के अधिकारियों ने उनसे वापस जाने के लिए कह दिया। भविष्य के दुष्परिणामों से आशंकित क्रिस्टसीना ने भी इस्तांबुल जाने वाले विमान में बैठने से इन्कार कर दिया।

साथ ही उन्होंने इंस्टाग्राम व अन्य माध्यमों से समाचार एजेंसियों और न्यूज चैनलों को मैसेज भेजकर अधिकारियों के भेदभाव और अपनी इच्छा से अवगत करा दिया। ऐसे ही एक मैसेज में क्रिस्टसीना ने लिखा कि, मैं दबाव में हूं। अधिकारी मेरी इच्छा के विरुद्ध मुझे जबर्दस्ती जापान से बाहर ले जाना चाहते हैं। इसके बाद सक्रिय हुए मानवाधिकार संगठनों ने एथलीट के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया। बेलारूस स्पोर्ट सोलिडेरिटी फाउंडेशन ने कहा है कि ग्रुप ने क्रिस्टसीना के लिए टोक्यो से पोलैंड की राजधानी वारसा जाने का चार अगस्त का हवाई टिकट बुक करा दिया है। बेलारूस के सरकार विरोधी लोग पहले भी पोलैंड में शरण लेते रहे हैं। बेलारूस में राष्ट्रपति एलेक्जेंडर ल्यूकाशेंको की सत्ता के खिलाफ 2020 में हुए चुनाव के बाद से ही आंदोलन चल रहा है। विरोधियों का आरोप है कि 1994 से सत्ता में काबिज ल्यूकाशेंको ने गड़बड़ी करके चुनाव जीता है। क्रिस्टसीना के भी सरकार विरोधी आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखने की खबर है।

ओलंपिक और विदेशी दौरों पर आने वाले खिलाड़ियों के अन्य देशों में शरण लेने की घटना नई नहीं है। दुष्परिणामों की आशंका और राजनीतिक कारणों से खिलाड़ी ऐसा करते रहे हैं। 1972 में म्यूनिख ओलंपिक के दौरान विभिन्न देशों के 117 खिलाड़ियों ने अपने देश वापस जाने से इन्कार कर दिया था। इसी प्रकार से चार रोमानियाई खिलाडि़यों और उनके एक रूसी सहायक ने 1976 के मान्टि्रयल ओलंपिक के दौरान अन्य देशों में शरण मांगी थी। क्यूबा के एथलीट बाद के ओलंपिक खेलों में भी अपने देश को छोड़ते रहे। लेकिन कई दशकों के बाद क्रिस्टसीना बेलारूस न जाने की घोषणा करने वाली पहली एथलीट हैं।

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