राष्ट्रीयस्वास्थ्य

बोस इंस्टिट्यूट को मिली बड़ी सफलता

-रोका जा सकेगा का कैंसर का फैलाव

कोलकाता (ईएमएस)। कैंसर मेटास्टेसिस यानी कैंसर के स्थानांतरण को रोकने में कोलकाता के बोस इंस्टिट्यूट के अनुसंधाकर्ताओं ने सफलता हासिल की है। कैंसर मेटास्टेसिस में कैंसर के सेल्स मूल हिस्से से निकलकर शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैलने लगते हैं। अनुसंधान के नतीजों के जरिए कैंसर के स्थानांतरण को काफी हद तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है, जिसके जरिए कैंसर से होने वाली मौतों को भी कम किया जा सकेगा। जगदीश चंद्र बोस ने 1917 में बोस इंस्टिट्यूट की स्थापना की थी और इस संस्थान के सौ वर्ष पूरे होने के मौके पर एक खास सेलिब्रेशन हुआ था, जिसके दौरान कैंसर से जुड़े इस महत्वपूर्ण अनुसंधान के बारे में जानकारी दी गई। 17 अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने एक ऐंटी-मेटास्टेसिस दवा की खोज की है। इस अनुसंधान के नतीजे अमेरिकी जर्नल ‘ऑन्कोटार्गेट’ में प्रकाशित हुए हैं, जिसके बाद से इस अनुसंधान ने दवा की दुनिया में तहलका मचा दिया है। इस टीम के मुख्य अनुसंधानकर्ता सुभ्रंशु चटर्जी ने कहा, मेटास्टेसिस यानी कैंसर का स्थानांतरण क्यों होता है, अब तक इसका कारण पता नहीं चल पाया था, जिस वजह से इसका इलाज भी संभव नहीं था। लेकिन अब हमने मेटास्टेसिस का कारण खोज लिया है। सुभ्रंशु चटर्जी बायोफिजिक्स के प्रोफेसर हैं।

चटर्जी ने कहा, कैंसर के सेल्स शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलने लगते हैं। हमारा लक्ष्य था कि हम इस बात की पुष्टि करें और 6 साल की रिसर्च के बाद हमें इसमें सफलता हासिल हुई है। चटर्जी ने कहा कि उन्होंने अपने अनुसंधान में पंजाब नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मासूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च से भी काफी मदद मिली। मेटास्टेसिस का इलाज ढूंढने के क्रम में इन अनुसंधाकर्ताओं ने करीब 16 हजार 500 दवाओं की जांच की। इस टीम के मुख्य अनुसंधाकर्ता जी मुखर्जी ने बताया कि एक दवा है जिसका नाम एम-2 है। यह दवा कैंसर के फैलाव को रोकती है और इसके साथ ही कैंसर सेल्स के स्थानांतरण यानी मेटास्टेसिस की प्रक्रिया भी रुक जाती है। अनुसंधाकर्ताओं की टीम ने सबसे पहले इस दवा का परीक्षण एक चूहे पर किया। इसके बाद टीम ने इंसान के कैंसर वाले ट्यूमर सेल्स को चूहे के शरीर में डाला और दोबारा दवा का परीक्षण किया, जिसके बाद उन्हें सफलता हासिल हुई। हालांकि इस दवा का करीब 40 मरीजों पर परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन अब भी इस दवा को क्लिनिक तक पहुंचने में कुछ वक्त लगेगा।

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