सीबीआई फोन टैपिंग प्रकरण में कथित तौर पर केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों और दो मुख्यमंत्री सहित करीब 34 वीवीआईपी का नाम सामने आ सकता है। इनमें एक मंत्री तो लालू यादव केस में सीधे सीबीआई अफसर को निर्देश देते हुए सुने गए हैं। इनके अलावा दो अन्य मंत्री, जिनमें एक कैबिनेट और दूसरा राज्यमंत्री है, नीरव मोदी व विजय माल्या की पैरवी करते नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर सूत्रों के हवाले से यह बात भी सामने आ रही है कि सीबीआई के ही एक टॉप अफसर ने किसी दूसरे राज्य की स्पेशल पुलिस इकाई से कुछ अधिकारियों का फोन टेप कराने का प्रयास किया था।
हालांकि जांच एजेंसी से कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर हुए एक अधिकारी का दावा है कि सीबीआई के भीतर से एनएसए अजीत डोभाल का फोन टेप नहीं हुआ है। किसी अन्य मामले में फोन टेपिंग के दौरान जो बातचीत रिकॉर्ड हुई है, उसमें केवल उनका नाम लिया गया है। यह बात जरूर रही है कि डोभाल की जिस अधिकारी से बातचीत हुई थी, उनका फोन सर्विलांस पर लगा था। उक्त अफसर ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि अन्य किसी सरकारी एजेंसी ने डोभाल का फोन टेप किया है।
सीबीआई में हस्तक्षेप करने वाले कई बड़े चेहरे होंगे बेनकाब
सीबीआई प्रकरण में अभी कई नए खुलासे होने बाकी हैं। जांच एजेंसी के अधिकारी एमके सिन्हा के हलफनामे में तो एक मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और एक सचिव स्तर के अफसर पर ही सीधे तौर से सीबीआई में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा है। सूत्रों का कहना है कि सीबीआई की टेलीफोन टेपिंग इकाई (स्पेशल यूनिट) के जरिए कई और बड़े लोगों का नाम सामने आएगा, जिन्होंने समय-समय पर जांच एजेंसी के निदेशक, स्पेशल निदेशक, ज्वाइंट डायरेक्टर और यहां तक की चार-पांच बड़े मामलों में तो जांच अधिकारी (आईओ) के साथ भी बातचीत करने से गुरेज नहीं किया।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के केस में तो एक केंद्रीय मंत्री ने इतनी अधिक दिलचस्पी दिखाई कि उसने चार्जशीट दाखिल करने, कोर्ट में कोई जवाब फाइल करने या गिरफ्तारी जैसा कदम उठाने से पहले उससे सलाह लेने का निर्देश दे दिया था। सीबीआई अधिकारियों ने भी दो बार उक्त मंत्री के पास केस की फाइलें भिजवाई थी। केस की जांच से जुड़े एक सूत्र ने तो इतना तक दावा किया है कि वह मंत्री निदेशक से मिलना भी चाहते थे। हालांकि निदेशक एवं केस के जांच अधिकारी ने इस बाबत मंत्री को मुलाकात के लिए साफ इंकार कर दिया था। मोईन कुरैशी केस के अलावा नीरव मोदी और विजय माल्या के केस में मंत्री की कथित बातचीत सामने आई है।
एक अन्य कैबिनेट मंत्री, जिन्होंने प्रवर्तन निदेशालय के मामलों में खासी रुचि दिखाई है, का नाम भी सीबीआई में हस्तक्षेप करने वाले नेताओं की सूची में शामिल है। इनके अतिरिक्त दो पूर्व आईपीएस अधिकारी, जो सेवानिवृत्ति के बाद केंद्र में बड़े ओहदे पर नियुक्ति पा गए हैं, भी सीबीआई की कार्यप्रणाली में लगातार रुचि (हस्तक्षेप) करते रहे हैं। सीबीआई अधिकारी एमके सिन्हा ने तो सीवीसी पर ही आरोप लगाया है, लेकिन टेपिंग में उनके जैसे ओहदे पर बैठे एक अन्य अधिकारी भी जांच-एजेंसी को निर्देश देते पाए गए हैं। सूत्रों के मुताबिक, सिन्हा के हलफनामे में तो कानून मंत्रालय के सचिव का नाम सामने आया है, जबकि इस पूरे मामले में केंद्र सरकार के चार ज्वाइंट सेक्रेटरी भी शामिल हैं।
फोन टेपिंग के लिए दूसरे राज्य की स्पेशल यूनिट से मदद लेने का प्रयास
उस वक्त जब आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच चल रही तनातनी अपने चरम पर थी, तब सीबीआई के बड़े अधिकारी ने दूसरे राज्य की पुलिस से जांच एजेंसी में कार्यरत अफसरों के फोन टेप कराने का प्रयास हुआ था। सूत्रों का दावा है कि यह प्रयास सीबीआई में दोनों खेमों की ओर से किया गया है। इसमें एक आला अधिकारी जो सीबीआई में आने से पहले जिस राज्य में थे, ने वहां की एक सैल से इस मामले में मदद मांगी थी।
बताया जाता है कि जांच एजेंसी के दूसरे बड़े अधिकारी ने दूर के राज्य की स्पेशल इकाई को कुछ मोबाइल नंबर भी दिए थे। सीबीआई के एक आला अफसर को जब अपने यहां की स्पेशल यूनिट से मदद नहीं मिली तो उन्होंने दूसरे राज्य में संपर्क किया था।बताया जाता है कि उक्त सीबीआई अधिकारी के संबंधित राज्य के पुलिस मुखिया के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। उनकी नियुक्ति में भी सीबीआई के उक्त अधिकारी का हाथ रहा है। इसी मामले में एक राज्य के मुख्यमंत्री से भी कुछ ऐसी ही मदद मांगी गई थी।
सीबीआई के अलावा केंद्र की अन्य जांच इकाइयां और राज्य पुलिस भी जरूरत पड़ने पर आरोपी या शिकायतकर्ता का फोन टेप कर सकती है। यदि बड़े अधिकारी का फोन टेप करना होता है तो उसके लिए गृह मंत्रालय की इजाजत पड़ती है। आपात स्थितियों में बिना किसी मंजूरी के भी टेपिंग हो सकती है। इसके लिए सर्विस प्रोवाइडर को लिखित में दे दिया जाता है कि संबंधित अधिकारी से 15 दिनों के अंदर इजाजत ले ली जाएगी।
देश में पहले भी होती रही हैं फोन टेपिंग की घटनाएं
एस्सार ग्रुप पर सुप्रीम कोर्ट के वकील सुरेन उप्पल ने 2016 में एक जनहित याचिका में आरोप लगाया था है कि ग्रुप ने 2001 से 2006 तक एनडीए और यूपीए सरकार के कई कैबिनेट मंत्रियों का फोन टेप कराया था। उन्होंने मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी जैसे कारोबारी दिग्गजों का फोन भी टेप होने की बात कही थी। इतना ही नहीं, सुरेन उप्पल ने कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान पीएमओ में कार्यरत एक अधिकारी का भी फोन टेप किया गया था।
बता दें कि सुरेन उप्पल एस्सार ग्रुप के उस कर्मचारी के वकील रहे हैं, जिस पर कथित तौर पर फोन टैपिंग का आरोप लगा था। इतना ही नहीं, वकील की शिकायत के मुताबिक, तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु, पूर्व मंत्री प्रफुल्ल पटेल, राम नाईक, अनिल अंबानी की पत्नी टीना अंबानी और कई टॉप ब्यूरोक्रेट्स के फोन टेप किए गए थे। इसके साथ ही सपा नेता अमर सिंह, तत्कालीन सीनियर नौकरशाह और यहां तक कि गृह सचिव राजीव महर्षि का भी नाम सामने आया था।
बतौर सुरेन, एनडीए सरकार में मंत्री रहे प्रमोद महाजन का फोन भी टेप किया गया था। टेलीकॉम लाइसेंसिंग के सिलसिले में भी कई लोगों के फोन सर्विलांस पर थे। हालांकि एस्सार ग्रुप ने अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया था। पिछले साल भी सीबीआई पर कथित रूप से एक केंद्रीय मंत्री का फोन टेप करने का आरोप लगा था। बाद में जाँच एजेंसी ने इस आरोप को पूरी तरह से झूठा और दुर्भावनापूर्ण बताया था।
फोन टेपिंग मामले में विपक्ष का केंद्र सरकार पर हमला
कांग्रेस ने सीबीआई में चल रहे झगड़े के बीच केंद्रीय जांच ब्यूरो के डीआईजी एमके सिन्हा के दावों को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, मोदी सरकार की नाक के नीचे मंत्री घूस ले रहे हैं और पीएमओ से मंत्री चोरों को बचाने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी बताएं कि करोड़ों की घूस लेकर केंद्रीय कोयला और खान राज्यमंत्री हरिभाई चौधरी ने पीएमओ के किस मंत्री के जरिए सीबीआई पर आरोपियों को बचाने का दबाव बनाया था।एनएसए अजीत डोभाल पर उठे सवालों को लेकर उन्होंने कहा, सीबीआई अधिकारी के हलफनामें में साफ लिखा है कि एक आरोपी जब पकड़ा गया तो उसने ‘अजीत डोभाल’ के नाम की धौंस दिखाई।