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बड़ा खुलासा:12 हजार करोड़ के फंड का सांसदों ने नहीं किया इस्तेमाल, UP के एमपी सबसे आगे
हालांकि यह साफ नहीं है कि परिस्थिति में अब कोई बदलाव आया है या नहीं। उत्तर प्रदेश के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा, ‘यूपी सरकार सांसदों के साथ फंड का प्रभावी उपयोग करने के लिए समन्वय कर रही है। साथ मिलकर सरकार और पार्टी फंड का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करेगी। जिससे गरीब और जरुरतमंद का उत्थान हो सके।’ बिहार के योजना और विकास मंत्री राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह ने कहा कि वह उन कारणों को देखेंगे जिनकी वजह से फंड का उपयोग नहीं हो पाया।
राजीव रंजन ने कहा, ‘इसके बहुत से कारण हो सकते हैं। कई बार सासंदों ने जमीन पर कुछ परियोजनाओं की सिफारिश की जो कानूनी पचड़े में फंसी हुई हैं। हमें फंड के उपयोग ना होने के पीछे के असल कारणों को देखना होगा।’ महाराष्ट्र योजना विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव देबाशीष चक्रबर्ती ने कहा, ‘यह इसलिए हुआ क्योंकि बहुत से सासंगों ने अपने कार्यकाल के दौरान काम का कोई सुझाव नहीं दिया गया। वहीं कुछ सासंदों ने इस बात को सुनिश्चित किया कि उनका फंड कार्यकाल की समाप्ति के समय खर्च किया जाए।’
चक्रबर्ती ने कहा, ‘यह पूरी तरह से सांसदों के विवेकाधिकार और पसंद पर निर्भर करता है कि वह काम का सुझाव दें और इसमें राज्य सरकार का बमुश्किल कोई हाथ होता है। हमारे सभी जिलाधिकारी एमपीएलएडी योजना के तहत काम को बहुत गंभीरता से लेते हैं और उसपर कार्रवाई करते हैं।’ केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 30 अगस्त को सभी राज्यों के नोडल सचिवों को इस मामले पर रिव्यू मीटिंग के लिए बुलाया है। एमपीएलडी फंडों के बेहतर उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए संबंधित सांसदों के साथ राज्य और जिला प्राधिकरणों के बीच बेहतर समन्वय का प्रस्ताव भी दिया जाएगा।
बैठक का एजेंडा पेपर दिखाता है कि फरवरी में फंड आवंटित किए गए लेकिन खर्च ना करने वाली राशि 4,773.13 करोड़ रुपए है। वहीं 2.5 करोड़ रुपए की 2,920 किश्तों को अभी जारी किया जाना बाकी है। जिसके परिणामस्वरूप 12,073.13 रुपये का कुल बैकलॉग हुआ। दोनों ही मामलों में परेशानी जिला स्तर पर थी। एजेंडा पेपर में लिखा है, ‘मंत्रालय ने पाया है कि नोडल जिला प्राधिकरण द्वारा अपेक्षित दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के कारण बड़ी संख्या में किस्त जारी नहीं किए जा रहे हैं। बहुत से मामलों में यह देरी इसलिए हुई क्योंकि पहले से जारी फंड का उपयोग नहीं किया गया या फिर कार्यान्वयन एजेंसियों/ कार्यान्वयन जिलों से उपयोग प्रमाण पत्र (यूसी) प्राप्त करने में विफलता हुई। राशि जारी करने में देरी दोषपूर्ण यूसी या दोषपूर्ण लेखा परीक्षा प्रमाण पत्र की वजह से भी हुईं।’