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बड़ा फैसला: कर्नाटक विधानसभा के, देवगौड़ा किंग बनेंगे या किंगमेकर

कर्नाटक विधानसभा चुनाव भी मोदी लहर से बच नहीं पाई। मतगणना जारी है और नतीजे अब से कुछ देर में आ जाएंगे। दोपहर ढाई बजे तक के नतीजों और रूझानों के आधार पर बीजेपी सबसे आगे चल रही है लेकिन बहुमत के करीब पहुंचकर भी थोड़ा सा फासला बचा दिख रहा है। उसके बाद सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस की है। अनुमान के मुताबिक तीसरे नंबर पर जेडी(एस) है। 

 

बड़ा फैसला: कर्नाटक विधानसभा के, देवगौड़ा किंग बनेंगे या किंगमेकरशनिवार को ज्यादातर एक्जिट पोल नतीजों का अनुमान था कि जनता दल (सेक्युलर) किंगमेकर की भूमिका में रहेगी। शनिवार को आठ बड़े एक्जिट पोल नतीजों का अनुमान था कि जेडी(एस) 35-40 सीटों का आंकड़ा छू सकती है। ताजा रूझानों में जेडी(एस) इस अनुमान के मुताबिक ही सीटें ला सकती है। 
 
224 सीटों वाले विधानसभा में से दो सीटों पर शनिवार को मतदान नहीं हुआ था। किसी भी पार्टी के जादुई आंकड़े को नहीं छू पाने की स्थिति में त्रिशंकु विधानसभा के आसार बन गए हैं। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी है। ऐसी में जेडी(एस) की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। 

जेडी(एस) नेता एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी, राज्य में राजनीतिक स्थिति की संभावनाओं के आधार पर किंगमेकर और किंग बनने के खेल में माहिर हैं। 

मिसाल के तौर पर, कौन इसकी कल्पना कर सकता था कि 1996 के लोकसभा चुनावों में जनता दल के खाते में आए कुल 46 सीटों में से महज 16 सीटें देने वाले देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन जाएंगे। इसके एक साल बाद बतौर प्रधानमंत्री लोकसभा में अपने आखिरी भाषण में देवेगौड़ा ने जोर देकर कहा कि वह वापसी करेंगे। माना जाता है कि वह संकेत दे रहे थे कि कम से कम उन्हें विश्वास नहीं था कि देश के सबसे बड़े पद पर वे सिर्फ किस्मत के बलबूते पहुंच गए थे।

देवगौड़ा के प्रधानमंत्री पद से हटने के सात सालों बाद, 2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में बिलकुल बंटा हुआ जनादेश आया। बीजेपी 224 सीटों में से 79 के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, 65 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी कांग्रेस। देवगौड़ा की जेडी(एस) 58 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर थी। उन्होंने कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार की गठबंधन सरकार बनाई और कांग्रेस को एसएम कृष्णा को दरकिनार कर एन धर्म सिंह मुख्यमंत्री बनाने के लिए मजबूर कर दिया।

उस समय उन्होंने “सांप्रदायिक ताकतों” को दूर रखने की बात की। लेकिन दो साल से भी कम समय में कुमारस्वामी बीजेपी के साथ 20 महीने के बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनने की सौदेबाजी कर मुख्यमंत्री बन गए। कुमारस्वामी ने अक्टूबर 2007 तक सत्ता का सुख उठाया, लेकिन फिर भाजपा के बीएस येदियुरप्पा को गद्दी सौंपने से इनकार कर दिया।

2004 में देवेगौड़ा ने धर्म सिंह की सरकार में सिद्धारमैया को उप-मुख्यमंत्री का पद दिलवाया, उस समय वे उनकी पार्टी में थे। हालांकि, एक साल बाद उन्होंने सिद्धारमैया को निकाल दिया था। इसके पीछे उन्होंने अनुशासनहीनता को वजह बताया लेकिन असल में वे यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कुमारस्वामी जब पार्टी का प्रभार लें तो उस समय सिद्धारमैया उनके लिए चुनौती नहीं बन सकें। 

सिद्धारमैया ने बाद में कांग्रेस में शामिल होकर मुख्यमंत्री बनने के अपने सपने को पूरा किया। अगर आज चुनाव नतीजे कांग्रेस और जेडी(एस) को एक साथ आने पर मजबूर कर देते हैं तो देवगौड़ा और सिद्धारमैया के संबंधों के आयाम एक बार फिर देखने को मिल सकते हैं। 

2013 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में जेडी(एस) ने 20.09 फीसदी वोट वोट के साथ 40 सीटें जीतीं। 2008 में उसने 28 सीटें जीतीं, लेकिन 18.96 फीसदी के साथ इनका वोट शेयर थोड़ा कम था। 2004 में देवगौड़ा की पार्टी ने 20.07 फीसदी मतों के साथ 59 सीटें जीतीं। 1999 के 10 सीटों (10.42 फीसदी वोट) के मुकाबले में यह उनके प्रदर्शन में एक बहुत बड़ी छलांग थी। 

2018 के चुनाव में देवगौड़ा ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। कर्नाटक की जनसंख्या में दलितों की संख्या करीब 24 फीसदी है। जेडी(एस) का वोक्कालिगा समुदाय में मजबूत आधार है, जो लगभग 12 फीसदी हैं और पुराने मैयसूर क्षेत्र में हैं। निर्वतमान विधानसभा में 53 विधायक वोक्कालिगा समुदाय से हैं। कांग्रेस ने पुराने मैयसूर क्षेत्र में 55 में से 25 सीटें जीती थीं, जेडी(एस) को 23 और बीजेपी को केवल दो सीट मिली थी। 

चुनाव प्रचार अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवेगौड़ा की तारीफ की थी। दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जेडी(एस) को बीजेपी की “बी-टीम” करार दिया था। अब से कुछ देर बाद और दोपहर से पहले तक, देवेगौड़ा अपने सामने मौजूद सभी संभावनाओं को तौलना शुरू कर चुके होंगे। 

 

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