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भारत का ‘ब्रह्मास्त्र’ : दुश्मनों के पास भी नहीं ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल का तोड़

दुश्मनों के लिए ब्रह्मोस से घबराने की वजह है कि इस मिसाइल का उनके पास कोई तोड़ नहीं है। इसकी स्पीड करीब एक किलोमीटर प्रति सैकेंड है जबकि चीन के पास जो मिसाइल है उसकी गति 290 मीटर प्रति सैकेंड है। ब्रह्मोस को दागने में वक्त भी कम लगता है। ब्रह्मोस मिसाइल भूमिगत परमाणु बंकरों, कमांड एंड कंट्रोल सैंटर्स और समुद्र के ऊपर उड़ रहे विमानों को दूर से ही निशाना बनाने में सक्षम है। सेना ने ब्रह्मोस मिसाइल को पहले ही अपने बेड़े में शामिल कर लिया है। इस मिसाइल के लिए 27,150 करोड़ रुपए के ऑर्डर दिए गए हैं। इस मिसाइल के हाइपरसोनिक वर्जन को तैयार करने की तैयारियां शुरू हो गई हैं जो मैक 5 की स्पीड से उड़ान भरने में सक्षम होगी।

भारतीय वायुसेना दुनिया की पहली ऐसी वायुसेना बन गई है जिसके जंगी बेड़े में सुपरसोनिक मिसाइल शामिल है। सुखोई विमान पहले ब्रह्मोस के साथ कामयाबी से उड़ान भर चुका है। अप्रैल, 2017 में पहली बार नौसेना ने ब्रह्मोस को वॉरशिप से जमीन पर दागा था। इस मिसाइल को भारत-रूस के संयुक्त उपक्रम के तहत बनाया गया है। सुखोई विमान से ब्रह्मोस मिसाइल के परीक्षण को इन दोनों का ‘डैडली कॉम्बिनेशन’ (खतरनाक मेल) कहा जा रहा है। हवा से जमीन पर मार करने वाली इस मिसाइल का दुश्मन देश की सीमा में स्थापित आतंकी ठिकानों पर हमला बोलने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
किलो एटमी हथियारों से हमले में सक्षम
2.8- मैक रफ्तार
2.4- टन वजन
08- मीटर लम्बाई

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