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भारत का सबसे बड़ा ‘सुसाइड पॉइन्ट’

एजेंसी/ हम मुंबई का सुसाइड प्वॉइंट बना बांद्रा-वर्ली सी लिंक की बात नहीं कर रहे जहां से अक्सर लोगों के आत्महत्या करने की खबरें आती kota-c3रहती हैं. हम बता कर रहे हैं कथिततौर पर भारत के उस सबसे बड़े सुसाइड पॉइंट कि जहां खुद घरवाले सुसाइड करने के लिए अपनों को लेकर पहुंचते हैं. औसत की बात करें तो साल में करीब दो दर्जन से अधिक आत्महत्याएं यहां दर्ज की जाती हैं. अब तो इसका नाम भी लोग ‘सुसाइड सिटी’ पुकारने लगे हैं. ये हकीकत चौंकाने वाली है लेकन यहां सुसाइड की घटनाएं रोकने में न सरकार की कोई मुहीम काम आई न पुलिस की कार्रवाई. 

जिस शहर को पूरे देश के अभिभावक डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का कारखाना समझते हैं. रेडिमेड कामयाबी की कथित गारंटी देने वाला ए शहर यहां हो रही कोचिंग छात्रों की सिलसिलेवार आत्महत्याओं के कारण अब देश के अभिभावकों को डराने लगा हैं. लेकिन किसी भी कीमत पर कामयाबी की चाहत फिर भी परिजनों को अपने बच्चों को शिक्षा के नाम पर संचालित की जा रही कोचिंग-कारोबार की इस भट्टी में झोंकने के लिए मजबूर कर ही देती हैं. दरअसल हम बात कर रहे हैं कोचिंगसिटी के नाम से मशहूर राजस्थान के शहर कोटा की जो आजकल बदनाम हैं ‘सुसाइड सिटी’ के नाम से. 

हर साल मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के नाम पर चंबल की गोद में खींच लाने वाले कोटा में अब शायद ही साल का कोई ऐसा महीना गुजरता हैं, जिसमें किसी कोचिंग छात्र की सुसाइड की दुखद खबर सुनने को नहीं मिलती हो. और इसका प्रमुख कारण हैं. कौन बन रहा है सुसाइड की वजह?

एलन, समेत कोटा के बेलगाम कोचिंग संस्थानों का शिक्षा माफियाओं में तब्दील हो जाना स्टूडेंट्स की आत्महत्याओं को सबसे बड़ा कारण है.

चंबल के पानी में घुली शिक्षा की हिलोर ने ऐसा जोर मारा कि करीब दो दशक पहले कुछ स्टूडेंट्स के साथ बंसल कोचिंग में शुरू किए गए एक कोचिंग बैच ने आज बीस सालों बाद एक बड़ी इंडस्ट्री का आकार ले लिया हैं. कोटा की कोचिंग इंड्स्ट्री हैं…जिसमें हर साल देश के विभिन्न राज्यों और खासकर पड़ोसी हिन्दी प्रदेशों से एक लाख से ज्यादा स्टूडेंट कोचिंग करने राजस्थान के कोटा शहर में आते हैं. लेकिन समय के साथ उभरे कुछ नए कोचिंग संस्थानों ने कोटा में एक ऐसा साम्राज्य स्थापित किया कि पहले ही कारोबार में तब्दील हो चुकी शिक्षा अब शिक्षा के मंदिर के स्थान पर एक ऐसे बाड़े में तब्दील हो गई,जिसमें स्टूडेंट जानवरों की तरह भरे पड़े हैं और आए दिन कभी फांसी का फंदा लगाकर,कभी जहर खाकर तो कभी हाथ की नसें काटकर अकालमौत का शिकार हो रहे हैं.

असल में ब्रांडिंग के इस जमाने में मार्केटिंग ने कोटा की कोचिंग को इतना मकबूल और अभिभावकों को इतना अंधा कर डाला हैं कि हर किसी में अपने बच्चे को कोटा में कोचिंग कराने की होड़ मची हैं..लेकिन जितने बच्चे यहां कोचिंग करने आते हैं,उनमें से यहां से कामयाब होकर जाने वालों के आंकड़ों का प्रतिशत दो अंकों में कभी नहीं गया बल्कि इतना जरुर हैं कि इनमें से दर्जनों हर साल मां-बाप के कंधों पर घर पहुंचते हैं,लाश के रुप में.जी हां, कोटा में हर साल दो दर्जन के लगभग कोचिंग छात्र सुसाइड कर रहे हैं..बीते करीब दस महिनों के आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं.

कोटा मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. भरत सिंह शेखवात समेत अन्य विशेषज्ञों की मानें तो कोचिंग छात्रों की इन आत्महत्याओं का जिम्मेवार कुछ हद तक अभिभावक और निजि कारण भी हैं लेकिन इसके सबसे बड़े जिम्मेवार बल्कि कहना चाहिए कि गुनहगार वे कोचिंग संस्थान हैं, जिनके भरोसे देश के हर हिस्से से आए अभिभावक अपने बच्चे को कोटा में छोड़ जाते हैं.

 

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