नई दिल्ली : देश में कई ऐसी धार्मिक जगहें हैं, जहां महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है, उन्हें अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत में ऐसे मंदिर भी हैं जहां पुरुषों को प्रवेश की अनुमति नहीं है, अगर है भी तो कुछ खास दिनों में ही। देश में आठ ऐसे मंदिर है जहां पुरुषों के आने पर रोक है।
केरल के अट्टुकल मंदिर में महिलाएं ही पूजा कर सकती हैं, यहां पुरुष नहीं जा सकते। पोंगल के त्योहार में यहां 30 लाख महिलाओं ने शिरकत की, जिसके चलते ये मंदिर गिनीज़ वर्ल्ड बुक में भी शामिल हो गया। कन्याकुमारी के भगवती मंदिर में कन्या रूप की पूजा होती है। इस मंदिर में पुरुष परिसर तक में नहीं जा सकते, अलबत्ता संन्यासी पुरुष मंदिर के द्वार तक जा सकते हैं। नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर में एक सीमा के बाद महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं थी लेकिन पुरुष जरूर आगे तक जा सकते थे, जब ये मामला बाम्बे हाईकोर्ट में पहुंचा तो पुरुषों के भी आंतरिक परकोटे में प्रवेश की अनुमति पर पाबंदी लगा दी गई। राजस्थान के पुष्कर में 14 वीं शताब्दी में बना ब्रह्मा का मंदिर शादीशुदा पुरुषों को प्रवेश की अनुमति नहीं देता। ये दुनिया में ब्रह्मा का अकेला मंदिर है। पुराणों का सुझाव है कि भगवान ब्रह्मा ने पुष्कर झील में पत्नी देवी सरस्वती के साथ एक यज्ञ किया था, लेकिन सरस्वती किसी बात के लिए नाराज हो गईं, तब उन्होंने मंदिर को शाप दिया कि किसी विवाहित व्यक्ति को आंतरिक परकोटे में जाने की इजाजत नहीं है अन्यथा उसके वैवाहिक जीवन में एक समस्या उत्पन्न होगी, यही कारण है कि कुंवारे पुरुष तो मंदिर में जा सकते हैं लेकिन विवाहित पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। संतोषी मां मंदिर, संतोषी मां का व्रत महिलाएं और कुंवारी लड़कियां ही रखती हैं। इस समय उन्हें खट्टी चीज़ें खाने की अनुमति नहीं होती। बेशक पुरुष संतोषी मां की पूजा तो कर सकते हैं लेकिन शुक्रवार को संतोषी मां के किसी भी मंदिर में उनका प्रवेश वर्जित होता है। बिहार के मुजफ्फरपुर माता मंदिर में एक तय समय में यहां पुरुषों को परिसर में प्रवेश करने से मना किया जाता है। कानून इतने कड़े हैं कि मंदिर के पंडितों को भी इस समय आने नहीं दिया जाता, केवल महिलाएं ही हैं, जो यहां आ सकती हैं।
असम के कामरूप कामाख्या मंदिर केवल महिलाओं को मासिक धर्म चक्र के दौरान परिसर में प्रवेश की अनुमति देता है। केवल महिला पुजारी या संन्यासी मंदिर की सेवा करते हैं, जहां मां सती के मासिक धर्म को बहुत शुभ माना जाता है और भक्तों को वितरित किया जाता है।ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र के साथ मां सती को काट दिया था जिसके कारण उनकी कमर उस स्थान पर गिर गया, जहां मंदिर बनाया गया था। केरल के छक्कूलाथुकावु मंदिर में महिलाओं की पूजा होती है। यह मां भगवती का मंदिर है जो दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं, यहां के पुरुष पंडित दिसंबर के महीने में महिलाओं के लिए दस दिन का उपवास रखते हैं और पहले शुक्रवार को महिला श्रद्धालुओं के पैर धोते हैं। इस दिन को धनु कहा जाता है। नारी पूजा के दिनों में पुरुषों का प्रवेश यहां वर्ज़ित है।