भारत में DNA टेस्ट के जनक प्रो. लालजी सिंह का निधन, BHU के रह चुके थे VC
वाराणसी. BHU के वाइस चांसलर (VC) रहे पद्मश्री साइंटिस्ट प्रो. लालजी सिंह का रविवार देर रात हार्ट अटैक से निधन हो गया। वे भारत में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के जनकबी थी। बीएचयू के ऑफिशियल स्टेटमेंट में यह जानकारी दी गई। प्रो. लालजी को हार्टअटैक के बाद बीएचयू हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था, जहां रात 10 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। वे अभी सेंटर फॉर सेल्युलर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी हैदराबाद के डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे थे।
12 किलोमीटर पैदल जाते थे स्कूल
– लालजी सिंह का जन्म 5 जुलाई 1947 को हुआ था। वे यूपी के जौनपुर जिले की सदर तहसील के गांव कलवारी के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम स्व. ठाकुर सूर्यनारायण सिंह था। वे एक साधारण किसान थे।
– वे जिले से इंटरमीडिएट की पढाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए 1962 में बीएचयू गए। यहां उन्होंने बीएससी, एमएससी और पीएचडी की डिग्री हासिल की। वे बचपन में पैदल 12 किलोमीटर चलकर रोज स्कूल जाते आते थे।
ब्रिटेन से मिली थी फैलोशिप
– 1971 में पीएचडी करने के बाद कोलकाता गए, जहां साइंस में 1974 तक एक फैलोशिप के तहत रिसर्च किया।
– इसके बाद वे फैलोशिप पर ब्रिटेन गए, और 9 महीने बाद वापस भारत आए।
– उन्होंने जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में साइंटिस्ट की पोस्ट पर काम करना शुरू किया। 1998 से 2009 तक वहां के डायरेक्टर रहे।
राजीव गांधी की हत्या समेत कई बड़े केस में किया DNA टेस्ट
– प्रो. लालजी ने भारत में पहली बार क्राइम इन्वेस्टिगेशन को 1988 में नई दिशा देने के लिए डीएनए फिंगर प्रिंट टेक्नीक को खोजा था।
– उन्होंने राजीव गांधी, नैना साहनी, स्वामी श्रद्धानंद, सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता और मंटू मर्डर केस की जांच में इंडियन डीएनए फिंगर प्रिंट टेक्नीक से जांच की और उसे सुलझाया।
क्या है DNA फिंगर प्रिंट टेस्ट
– एक्सपर्ट के अनुसार, इसका फुलफॉर्म डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक एसिड (DNA) होता है। क्राइम से जुड़े मामले सुलझाने के लिए अक्सर DNA फिंगर प्रिंट टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है।
– दुनिया में किसी भी इंसान का डीएनए फिंगर प्रिंट एक जैसा नहीं हो सकता। तमाम जींस की मदद से इस टेस्ट को किया जाता है।
– इंसान का शरीर माइक्रो सेल्स से मिलकर बना है। रेड ब्लड सेल को छोड़कर सभी माइक्रो सेल्स में केन्द्रक (Nucleus) होता है। हमारे सेल के क्रोमोजोम माता-पिता के गुणों से आते हैं। जिनकी पहचान डीएनए के जरिए की जाती है।