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भूलकर भी गणेश चतुर्थी पर ना करें चांद का दर्शन, वरना लग जाएगा बड़ा कलंक

भारत में कुछ त्योहार धर्म के साथ-साथ क्षेत्र की संस्कृति के परिचायक भी होते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक त्योहार है गणेश चतुर्थी। गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का यह उत्सव करीब दस दिनों तक चलता है। इसी वजह से गणेशोत्सव भी कहा जाता है। वहीं उत्तर भारत में गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश की जयंती के रूप में भी मनाते हैं। हम आपको बताने जा रहे हैं किस विधि से गणेश जी की पूजा करें।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश भगवान का उत्सव शुरू हो जाता है। इस दिन से उनकी प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी जाती है। और लगातार दस दिनों तक घर में गणेश भगवान को रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। इस दिन ढोल, नगाड़े बजाते हुए श्रद्धालु बप्पा की प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाते हैं।

हिंदू धर्म में गणेश भगवान को ऋद्धि-सिद्धि और बुद्धि का दाता माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता है। इस खास दिन पर बच्चे डण्डे से खेलते हैं। इसके चलते कुछ जगहों पर गणेश चतुर्थी को डण्डा चौथ भी कहते हैं।

पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के खास मौके पर सबसे पहले स्नान करें और फिर गणेश जी की प्रतिमा बनाएं। प्रतिमा सोने, तांबे, मिट्टी या गाय के गोबर से तैयार करें। इसके बाद एक साफ कलश लेकर उसमें जल भरें और उसे कोरे कपड़े से बांध दें। तब जाकर भगवान गणेश की प्रतिमा का स्थापना करें। इसके बाद प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार का पूजा करें। गणेश जी को दक्षिणा अर्पिता कर के 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। गणेश जी के पास केवल पाचं लड्डू रखें बाकि बचे हुए लड्डूओं को ब्राह्मणों में बांट दें।

भगवान गणेश जी की पूजा हमेशा शाम के वक्त करनी चाहिए। पूजा के बाद आंखों को नीचे करते हुए चंद्रमा को अर्घ्य दें। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दक्षिणा दें। गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन कभी ना करें वरना कलंक मिल सकता है। इस पर्व पर चंद्र दर्शन करने से मिथ्या दोष लगता है।

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