मनमोहन के ही सामने बोले उन्ही के सांसद- UPA में जमकर बंटे लोन, इसलिए बढ़ा NPA
हाल के कुछ महीनों में नॉन–परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) खासा चर्चा में रहा और इस कारण कई बैंकों को हजारों करोड़ का घाटा भी उठाना पड़ा है. बैंकों के बढ़ते घाटे के बीच कांग्रेस के एक वरिष्ठ सांसद ने खुलासा किया कि यूपीए शासनकाल के दौरान आक्रामक तरीके से लोन दिए जाने के कारण एनपीए बढ़ता चला गया.
वित्त मंत्रालय से संबंधित स्टैंडिंग कमेटी के साथ सोमवार को बैंकों और बैंकिंग एसोसिएशन के सीनियर अधिकारी की बैठक के दौरान कमेटी के सदस्यों ने बढ़ते एनपीए (NPA) और उससे निपटने के उपायों पर अधिकारियों से सवाल-जवाब किए.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में एक कांग्रेस वरिष्ठ सांसद सदस्य ने बैठक में माना कि यूपीए शासनकाल के दौरान बहुत आक्रामक तरीके से लोन बांटे गए थे. कमेटी के कई सदस्यों ने इस पर सहमति जताई और कहा कि एनपीए बढ़ने में यह भी एक बड़ी वजह रही है.
कमेटी के सदस्यों ने बैंक प्रतिनिधियों से लोन देने संबंधी नियमों का पुनर्मूल्यांकन और एनपीए का वर्गीकरण करने की बात कही. कई सदस्यों का कहना था कि अब समय आ गया है कि एनपीए को पुन:परिभाषित किया जाए.
पुनर्मूल्यांकित किया जाए NPA
हालांकि कमेटी में शामिल कई सदस्यों का यह भी कहना था कि इस संबंध में कुछ कंपनियों के पास वाजिब वजह हो सकती है, लिहाजा सभी को एक ही रंग में रंगना ठीक नहीं है. कुछ सदस्यों ने सुझाव देते हुए यह भी कहा कि एनपीए के लेकर आरबीआई की भूमिका को भी पुनर्मूल्यांकित किए जाने की जरूरत है.
इस अहम बैठक में एनपीए से जुड़े मामले को सुलझाने के लिए एक रोडमैप बनाए जाने पर जोर दिया गया. बैठक में नीरव मोदी को दिए गए कर्ज पर तृणमूल कांग्रेस के सदस्य का कहना था कि बैंक के अधिकारियों ने माना है कि वो एक ब्रांच की गलती थी. बीजेपी के एक सांसद ने कहा कि आजकल लोग बैंकों की बजाए म्यूचुअल फंड में पैसा लगा रहे हैं.
क्या होता है NPA?
जब कोई अपने कर्जदायी बैंक को ईएमआई देने में नाकाम रहता है, तब उसका कर्ज नॉन-परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए कहलाता है. ऐसे में जब किसी लोन की ईएमआई, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट चुकाने वाली तारीख के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है. इसे इस तरह से कह सकते हैं कि जब किसी लोन से बैंक को रिटर्न मिलना बंद हो जाए तो उसे एनपीए या बैड लोन मान लिया जाता है.