अन्तर्राष्ट्रीय

माउंट एवरेस्ट पर बढ़ती जा रही है शवों की संख्या, सफाई अभियान में मिला 11 हजार किलो कचरा

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर पाने में नाकाम रहे चार पर्वतारोहियों के शव अब नेपाल के अधिकारियों के लिए नई चुनौती बन गए हैं। इन शवों की पहचान भी मुश्किल से हो पा रही है। ये शव नेपाल सरकार के सफाई अभियान के दौरान मिले थे। इस सफाई अभियान में 11 टन कचरा इकट्ठा किया गया है। माना जा रहा है कि अभी और भी कई शव बर्फ के नीचे दबे हो सकते हैं। यहां पुलिस और सरकारी अधिकारियों ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि उन्हें मृतकों के नाम पता करने और उनके घरों तक पहुंचाने में काफी परेशानी हो रही है। वे यह भी सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि ढलान पर पाए जाने से पहले ये शव कितने समय से यहां थे। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी फनिंद्रा प्रसाई का कहना है कि शव पहचान की स्थिति में बिलकुल नहीं हैं। चेहरा ठीक से पहचान में नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि वह अस्पताल से इस बारे में बात कर चुके हैं कि वह परिवारों से डीएनए सैंपल का मिलान करें।

नेपाल माउंटेनियरिंग असोसिएशन के पूर्व प्रेजिडेंट आंग तसेरिंग शेरपा का कहना है कि ये काम करना बहुत मुश्किल होता है। उनका कहना है कि शवों से संबंधित अन्य जानकारी दी जानी चाहिए। जैसा कि वो कहां मिले हैं और उनके अभियान संचालक को भी इस बारे में पता होना चाहिए।

यहां साल 1924 में ब्रिटेन के जियॉर्ज मेलोरी लापता हो गए थे। साल 1999 में उनका शव मिला। उनके साथी एंड्रयू इरवाइन का शव आज तक नहीं मिल पाया है। अबी तक इस बात का भी नहीं पता चल पाया है कि क्या वह चोटी के ऊपर तक गए थे या नहीं। कई शवों पर अभी भी रंग बिरंगे क्लाइंबिंग गीयर हैं, जिनपर कुछ निकनेम लिखे हैं, जैसे ‘ग्रीन बूट्स’ और ‘स्लीपिंग ब्यूटी।’

माना जा रहा है कि ‘ग्रीन बूट्स’ एक भारतीय पर्वतारोही थी। जिसकी 1996 में मौत हो गई थी। माना जाता है कि 2014 में जो शव मिला वो उसी का था। वहीं ये भी माना जा रहा है कि ‘स्लीपिंग ब्यूटी’ फ्रैंसिस अर्सेंटिव का शव है। जो बिना बॉटल्ड ऑक्सीजन के 1998 में चोटी पर पहुंचने वाली पहली अमेरिकी महिला थी। लेकिन नीचे आते वक्त उसकी मौत हो गई। उसे बचाते वक्त उसके पति की भी मौत हो गई। चोटी पर चढ़ाई करने वालों के लिए ऊपर मिलने वाले शव एक विवाद का विषय हैं।

शवों को ऊपर से नीचे लाने में हजारों डॉलर खर्च हो जाते हैं। इसमें कम से कम आठ शेरपा की जरूरत पड़ती है, साथ ही शवों को नीचे लाने के दौरान बचाव दल की जान भी खतरे में पड़ जाती है। कई परिवार पसंद करते हैं कि उनके रिश्तेदार का शव पर्वत पर ही रहे। लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ रहा है। जिससे पहाड़ों की बर्फ पिघलती जा रही है। ऐसे में एवरेस्ट पर सालों पहले जिन लोगों की मौत हुई है, उनके शव दिखने लगे हैं।

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