मारे जाते सभी कौरव-पांडव, अगर ये योद्धा कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में आ जाता
महाभारत, ये महाकाव्य हम सभी अपने बचपन से सुनते समझते आ रहे हैं । 18 दिन तक चले इस युद्ध का गवाह बना था कुरुक्षेत्र । युद्ध के मैदान में पांडव अपनी छोटी सी सेना के साथ विशालकाय कौरवों वाली सेना से जीत गए थे । इस युद्ध में पांडवों की जीत का पूरा श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को जाता है । पांडव श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे माने जाते हैं, और इस युद्ध में श्रीकृष्ण ने उनका साथ देकर उन्हें एक भीषण युद्ध का विजेता बनाया । ये कृष्ण की ही रणनीति थी कि पांडव संख्या में कम होने के बाद भी विजय रथ पर सवार हुए ।
श्रीकृष्ण की रणनीति
महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले ही श्रीकृष्ण भली भांति जानते थे कि उन्हें किस पक्ष का साथ देना है । वो ये कदापि नहीं चाहते थे कि अन्याय के पक्षधर कौरव जीत जाएं और पृथ्वी पर विनाश लीला आरंभ हो । इसीलिए उन्होने इस युद्ध को रणनीति के साथ आरंभ किया । वो चाहते तो युद्ध को क्षण भर में खत्म भी कर देते लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया । गीता के उपदेश के साथ ये युद्ध भी भारत के इतिहास में अमर हो गया ।
इस योद्धा को युद्ध मैदान से बाहर रखा
क्या आप जानते हैं महाभारत काल के उस योद्धा के बारे में जिसे श्रीकृष्ण अगर मैदान में उतरने देते तो ये युद्ध इतना समय लेता ही नहीं । जी हां, वो योद्धा कोई और नहीं भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बार्बरिक थे । बार्बरिक अगर मैदान में उतर जाते तो कौरवों समेत पांडवों का नाश भी निश्चित था । इसीलिए उन्हें रीकृष्ण ने युद्ध से बाहर रखा और पांडवों की ओर से युद्ध का तना बाना बुना ।
बार्बरिक को प्राप्त था विशेष वरदान
बर्बरीक बहुत ही शक्तिशाली और पराक्रमी योद्धा था । उसने अपने कठोर तप से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया था । शिव ने बर्बरीक को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर 3 दिव्य बाण दिए थे । बर्बरीक को अग्निदेव से एक दिव्य धनुष प्राप्त किया था । बर्बरीक के ये बाण अजेय थे, इनसे कोई नहीं जीत सकता था । आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन बर्बरीक जैसे पराक्रमी ने युद्ध की कला अपनी माता से सीखी थी ।
मां को दिया था विशेष वचन
बर्बरीक के बल का पता उनकी मां को भंलिभांति था । वो नहीं चाहती थीं कि किसी भी युद्ध में बर्बरीक के बल का गलत फायदा उठाया जा सके । इसलिए उन्होने बर्बरीक से एक वचन मांगा । बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया था कि वो युद्ध में केवल उसी पक्ष से लड़ाई करेंगे जिसका पक्ष कमजोर हो । बर्बरीक के इस वचन के कारण ही श्रीकृष्ण नेउनका सिर दान में मांग लिया । और उनकी इच्छानुसार उस सिर को ऐसी जगह स्थापित कर दिया जहां से वो पूरा युद्ध देख सकें ।
बर्बरीक के वचन के बारे में जानते थे कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण ये भलिभांति जानते थे कि बर्बरीक इस युद्ध पर क्षणों में विजय प्राप्त कर सकता है । साथ ही वो कौरवों और पांडवों किसी का भी पक्षध नहीं हो सकता । बर्बरीक ने अपनी मां को कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध करने का वचन दिया था । बर्बरीक निश्चय ही अपने पिता के पिता यानी भीम के पक्ष की ओर से युद्ध आरंभ करता लेकिन कौरवों के कमजोर होने पर वो उनके साथ जा मिलता ।
अजेय बाणों का रहस्य
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपने पास बुलाकर उनके तीनों बाणों का राज जानना चाहा । तब बर्बरीक ने उन्हें बताया कि उनके तीन बाण तीन तरह से काम करते हैं । पहला बाण उन पर निशान लगाता है जिन्हें मैं खत्म करना चाहता हूं, दूसरा बाण उन पर निशान लगाता है जिन्हें मैं बचाना चाहता हूं । तीसरा पहले बाण के द्वारा लगाए गए निशानों को खतम कर देता है । इसके बाद तीनों बाण मेरे पास वापस लौट आते हैं ।
क्षण भर में युद्ध खत्म कर सकते थे बर्बरीक
महाभारत की जब रणनीति तैयार हो रही थी तो श्रीकृष्ण ने पांडवो और दसूरे सभी योद्धाओं से पूछा कि ये युद्ध कितने दिन चलेगा । इस सवाल पर भीष्म ने बीस दिन, द्रोणार्चाय ने पच्चीस, कर्ण ने चौबीस और अर्जुन ने अट्ठाईस दिनों में युद्ध को अकेले समाप्त करने की बात कही थी । यही सवाल श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा तो उनका जवा था कि वह एक ही क्षण में युद्ध खत्म कर सकते हैं । बर्बरीक की यह बात सुनकर ही श्रीकृष्ण को उनकी क्षमता पर पूर्ण विश्वास हो गया था ।
खाटू श्याम जी महाराज
आप सोच रहे होंगे महाभारत के इतने महान योद्धा के साथ श्रीकृष्ण ने गलत किया, लेकिन ऐसा नहीं है बर्बरीक अपने वचन में बंधकर युद्ध में गलत का पक्ष नहीं लेना चाहते थे । अपने पिता के पक्ष के लिए वो खतरा ना बन जाए इसीलिए उन्होने श्रीकृष्ण के एक बार कहने पर ही अपना सिर उन्हें दान में दे दिया था । उनके इस महान बलिदान से प्रसन्न् होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हे कलयुग में खाटु श्याम के नाम से पूजित होने का वरदान दिया।