मुंबई की हाजी अली दरगाह में प्रवेश को लेकर महिलाओं ने छेड़ी कानूनी लड़ाई
मुंबई: मुंबई की प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के खिलाफ आवाज़े तेज़ होती जा रही हैं। 15वीं शताब्दी में बनी हाजी अली दरगाह के संरक्षकों और मुस्लमान औरतों के अधिकारों की रक्षा करने वाले एक संगठन के बीच अब एक कानूनी लड़ाई छिड़ गई है। बता दें कि मुंबई की यह दरगाह सिर्फ मुसलमानों में ही नहीं, हिंदुओं और पर्यटकों के भी आकर्षण का केंद्र है।
2011 से इस दरगाह के गर्भगृह में औरतों का जाना प्रतिबंधित है क्योंकि ट्रस्ट का कहना है कि इस पवित्र मक़बरे में महिलाओं का जाना इस्लाम के खिलाफ है। वहीं भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका दायर की है जिसमें कहा गया है कि यह प्रतिबंध असंवैधानिक है और उम्मीद जताई गई है कि इसके सकारात्मक फैसले से भारत भर में महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर बेहतर असर पड़ेगा।
मासिक धर्म की वजह से रोक
संगठन की सह संस्थापक नूरजहां नियाज़ का कहना है ‘महिलाओं के मासिक धर्म की वजह से उन्हें अशुद्ध माना जाता रहा है और इसी वजह से उन्हें अंदर जाने से रोका जाता है। लेकिन मासिक धर्म तो एक प्राकृतिक क्रिया है और धरती पर ज़िंदगी लाने के लिए ज़रूरी है। इसे अशुद्ध कैसे कह सकते हैं?’ वहीं दरगाह के सदस्य ने इस मामले पर टिप्पणी करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि मामला न्यायपालिका में है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि मुबंई की अदालत 15 दिसंबर को होने वाली सुनवाई में इस मामले का निपटारा कर देगी।
उधर मानवाधिकार वकीलों ने इस मामले में औरतों का पक्ष लिया है लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि इस मामले में महिलाओं के जीतने की संभावना कम ही है। प्रतिष्ठित वकील मिहिर देसाई का कहना है कि ‘ऐसे बहुत सारे मंदिर है जहां औरतों का जाना प्रतिबंधित है। अगर हम हर एक केस में घुसेंगे तो यह अंतहीन प्रक्रिया हो जाएगी इसलिए यहां राज्य का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है।’ साथ ही मिहिर ने यह भी कहा कि अदालत ज्यादातर धार्मिक मामलों में फैसले लेने से खुद को रोकती है। कोर्ट का फैसला औरतों के हक़ में होगा इसकी उम्मीद कम ही लगती है।