मुजफ्फरनगर बना अखिलेश सरकार के लिए सिर दर्द
लखनऊ, (दस्तक ब्यूरो)। उप्र की अखिलेश यादव सरकार इन दिनों मुजफ्फरनगर में हुई साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर विपक्ष के निशाने पर है। पहले तो सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद हिंसा की आग नहीं थमी। ऊपर से हिंसा के बाद हो रही राजनीति मामले को ठण्डा नहीं होने दे रही है। इसी बीच एक न्यूज चैनल में आये स्टिंग आपरेशन ने सरकार को और भी कहीं का नहीं रखा। अब न्यायालय से लगातार मिल रही फटकार ने सरकार की परेशानियों को और बढ़ा दिया है।दरअसल मुजफ्फरनगर में हिंसा की आग भड़कने के समय वहां पर तैनात तत्कालीन जिलाधिकारी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने जो कार्रवाई की, उसे कथित रूप से सरकार ने सही नहीं माना और इन अधिकारियों का आनन-फानन में वहां से तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं मुजफ्फरनगर में तैनात कुछ इंस्पेक्टरों का तबादला एवं डिप्टी एसपी का निलंबन करना अब सरकार की गले की फांस बन गया है। स्थानान्तरण की कार्यवाही को गलत करार देते हुए तबादला किए गए इंस्पेक्टरों ने इलाहाबाद हाईकोई का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय में याचिका दाखिल कर यह कहा गया कि तबादले की कार्यवाही अनुचित है और एक काबीना मंत्री (आजम खां) के इशारे पर एक ओर जहां हिंसा नहीं रोकी जा सकी वहीं दण्ड स्वरूप उनका तबादला कर दिया गया। इस मामले में न्यायालय ने आरोपी मंत्री, तथा सरकार को बकायदा नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। साथ ही अदालत ने तबादलों पर भी रोक लगा दी। अदालत ने यह भी कहा कि उन्हें स्थानान्तरित स्थल पर कार्यभार ग्रहण करने के लिए दबाव न डाला जाए।इसी बीच मुजफरनगर दंगे के बाद निलंबित किए गए डिप्टी एसपी खतौनी अरुण सिरोही ने भी अपने निलंबन को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। इस मामले में भी न्यायालय ने दखल देते हुए निलंबन आदेश पर रोक लगा दी। इतना ही नहीं न्यायालय ने कैबिनेट मंत्री आजम खां और प्रदेश सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है। अरुण सिरोही की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राजेश कुमार और न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने निलंबन आदेश पर रोक लगाते हुए प्रदेश सरकार और आजम खां को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।याची निलंबित डीएसपी दंगे के दौरान खतौली सर्किल का क्षेत्राधिकारी था। घटना के दिन वह ड्यूटी पर नहीं था। दो युवकों और सचिन की हत्या के बाद पुलिस ने सात मुल्जिमों को गिरफ्तार किया था। उन्हें रिहा कराने के लिए मंत्री आजम खां ने डीएम और एसएसपी पर दबाव डाला। उन्होंने मुल्जिमों को नहीं छोड़ा तो दोनों अधिकारियों का तबादला कर दिया गया। इसके बाद आजम खां के कहने पर सातों युवकों को छोड़ दिया गया। इसके फलस्वरूप दंगा भड़का। अरुण सिरोही को प्रमुख सचिव गृह के 31 सितम्बर के आदेश से निलंबित कर दिया गया। याची की ओर से अदालत में ड्यूटी चार्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह घटना के समय ड्यूटी पर नहीं था, राजनीतिक कारणों से उसका निलंबन किया गया। इससे पूर्व हिंसा के बाद मुजफ्फरनगर सहित समूचे पश्चिमी उप्र में महापंचायतों का दौर शुरू हो गया। वहीं प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित तमाम राजनेता मौके पर पहुंचने लगे थे। एक ओर जहां भाजपा तो दंगे के बाद सक्रिय थी ही अब विश्व हिन्दू परिषद ने कमान संभालने का ऐलान कर दिया है। विहिप ने 18 अक्टूबर को संकल्प दिवस मनाने का ऐलान कर सरकार की परेशानी और बढ़ा दी है। फिलहाल तो शासन ने विहिप की गतिविधियों पर रोक लगाने का ऐलान कर दिया है लेकिन इससे सरकार की परेशानी कम होती नहीं दिख रही है।