मुम्बई लोकल ट्रेन : जीवन रेखा या मृत्यु रेखा?
कप्तान माली मुम्बई
मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है जहाँ पर लगभग सभी बड़ी कंपनियों के मुख्य कार्यालय और कुछ की फैक्टरियां भी है जो कई प्रकार के टैक्स सरकार को चुकाते हैं जिसके चलते मुम्बई देश के सबसे बड़े टैक्स भुगतान करने वाले केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां टैक्स में अपना योगदान देने वाले करीब 75 लाख लोग आज भी घर से कार्यस्थल तक के लिए सिर्फ लोकल ट्रेन पर ही निर्भर हैं और यही निर्भरता इनमें से रोजाना लगभग 11 लोगों को मौत का कारण भी बन रही है। आज किसी भी मुम्बईकर से यह सवाल किया जाए की उसे सबसे ज्यादा डर किसी आतंकी हमले, प्राकृतिक आपदा या बम ब्लास्ट या लोकल ट्रेन से लगता है तो सर्वाधिक लोगों का जवाब लोकल ट्रेन ही होगा। लोकल ट्रेनों में भीड़ से होने वाली मौतें आज सबके दिमाग में घर कर गयी हैं पर इसका पर्याय न होने की वजह से सभी को मजबूरन इसका उपयोग करना ही पड़ रहा है।
हालात इस कदर गंभीर हैं कि जब एक मुम्बईकर अपने घर से ऑफिस या अपने कार्यस्थल के लिए निकलता है और जब तक वह ऑफिस न पहुँच जाये और फोन करके अपने सकुशल होने की खबर अपने परिवारीजन को न दे दे तब तक उनकी चिंता बनी रहती है और शाम को भी वह जब तक घर न पहुँच जाए यह चिंता जारी ही रहती हैं। एक सूचना के अधिकार से मिली प्राप्त सूचना के अनुसार करीब 13 वर्षों में 50 हजार से भी ज्यादा मुम्बई वासियों की जानें ट्रेन से कटकर, गिरकर या किसी अन्य दुर्घटना से हुई है जिसमें घायल होकर बाद में मरे हुए लोगों की गणना नहीं है। इस जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है की हर वर्ष 4 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौतें लोकल ट्रेनों की चपेट में आने से हो रही है जिसका प्रतिदिन औसत 11 मौतों से ज्यादा आता है।
चेतन कोठारी आर टी आई कार्यकर्ता जिन्होंने आरटीआई के द्वारा यह जानकारी निकाली थी, का कहना है कि मैं हर दिन अख़बारों में लोगों को ट्रेन हादसों में मरते देख कर मुझसे रहा नहीं गया और तब मैंने यह आरटीआई फ़ाइल की और जानकारी पाकर चौंक उठा। कोठारी आगे सवाल करते हैं कि मुम्बई को आर्थिक राजधानी और सबसे ज्यादा टैक्स देने वाला शहर बनाने वाले इन मुम्बई वासियों को क्यों उनकी पसीने की कमाई बहाने के साथ-साथ अपना खून भी बहाना पड़ रहा है? आखिर किस जुर्म की सजा इन मुंबईकरों को मिल रही है? आखिर कब इन मौतों की रफ्तार रुकेगी? कब यह लोकल ट्रेनें लाइफ लाइन से डेथ लाइन बन गयी कब इन्हें रोका जायेगा? आज यदि आप पिछले 50 वर्षों का इतिहास देख लें तो जितनी जानें मुंबई की लोकल ट्रेन ने ली है उतनी जाने तो किसी सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा या भोपाल गैस कांड ने भी नहीं ली होगी। तो हमें इस मानव निर्मित आपदा को जल्द से जल्द ख़त्म करना होगा।
सुरेश प्रभु के रेल मंत्री बनने पर मुम्बई के लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थी हालाँकि जल्द ही इन सारी उम्मीदों पर भी पानी फिर गया। हाल में हुए कुछ दुर्घटनाओं के मीडिया में छाने के बाद प्रभु ने घोषणा की थी की वे प्राइवेट और सरकारी कार्यालयों के कार्य समय में बदलाव लाएंगे ताकि एक ही समय दोनों की भीड़ न जमा होकर ट्रेनों पर कम बोझ पड़ेगा पर वह घोषणा अब तक अमल में नहीं आई। कई बार यह मांग उठ चुकी है कि मुम्बई की पूरी ट्रांसपोर्ट प्रणाली को अलग कर दिया जाए और इसका नियमन और प्रबंधन किसी एक एजेंसी के अनतर्गत दे दिया जाये जो न केवल ट्रेन बल्कि सड़क यातायात, बेस्ट बस सेवा, मेट्रो, मोनो रेल इत्यादि को एकीकृत करके योजना बनाये। ये मांगें भी अब तक ठन्डे बस्ते में ही पड़ी हुई हैं। एक सुझाव यह भी आया था कि मुम्बई की लोकल सेवा को मुख्य रेल सेवा से अलग कर मध्य, पश्चिम, हारबर, ट्रांस-हारबर सेवाओं को एकीकृत कर इसका मुखिया किसी एक आईएएस अधिकारी को बना दिया जाए जो इसका प्रबंधन करे। मुम्बई के भीतर सिर्फ लोकल ट्रेन को ही चलाने का प्रस्ताव भी आया था जिसके अंतर्गत लंबी दूरी की ट्रेनों को शहर के भीतर प्रवेश न देकर उन्हें मुम्बई की सीमा के बाहर कल्याण, विरार और पनवेल में टर्मिनस बनाने का विचार था पर यह भी सिर्फ कागज पर ही रह गया। मुम्बई की ट्रांसपोर्ट योजना की प्लानिंग करने वालों को अब तक यह नहीं समझ में आ पाया है कि मुम्बई अब सिर्फ उत्तर से दक्षिण 35 किलोमीटर ठाणे, बोरीवली, मांसखुर्द (मध्य, पश्चिम और हारबर मार्ग) की सीमा तक ही सीमित नहीं है। इसका विस्तार अब 100 से 120 किलोमीटर की दूरी तक कसारा, कर्जत, दहाणु, पनवेल तक हो चुका है। अब यहाँ काम करने वाला कार्यबल सिर्फ मुम्बई का ही नहीं बल्कि 100 से 120 किलोमीटर दूर से आने लगा है जिसका सिर्फ और सिर्फ एक ही साधन लोकल ट्रेन ही हैं जो सस्ता, तेज और भरोसेमंद साधन है।
सड़क मार्ग
राज्य सरकार ने विरार से अलीबाग के लिए आठ लेन की सड़क मार्ग को शुरू किया है तो शहर को पश्चिमी छोर से पूर्वी छोर से तेजी से जोड़ेगा। इस प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू हो चुका है पर इसे पूरे होने में अभी भी काफी समय है। मुम्बई शहर को नरीमन पॉइंट से कांदिवली करीब 30 किलोमीटर की सड़क का प्रस्ताव पारित हो चुका है जो समुद्र किनारे बनेगी जो शहर के बीच के सड़क यातायात के जाम की समस्या से निजात दिलाएगी पर इसके बीच में कोस्टल रेगुलेशन जोन का रोड़ा है। कई बार तकनीकी और बरसात के दिनों में लोकल ट्रेन की आवाजाही में दिक्कत या ठप पड़ने पर रेल यात्रियों के सामने पटरियों पर चलने के आलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है और इसलिए रेलमार्ग के समानांतर सड़क मार्ग की योजना के बारे में सोचा भी नहीं गया है। कई बार इन दूर के यात्रियों को दुर्घटना या ट्रेनों के ठप होने की स्थिति में ट्रेनों में रात गुजारनी पड़ी है या रेल की पटरियों पर जोखिम उठाकर चलना पड़ा है।
जल मार्ग
मुम्बई चारो तरफ से समुद्र और खाड़ियों से घिरा हुआ है इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने कई बार यह भी योजना बनाई थी जिसके अंतर्गत शहर को ठाणे, डोम्बिवली, कल्याण, पनवेल, वाशी, भायंदर और वसई से जलमार्ग से जोड़ने की योजना है जिस पर अभी तक सिर्फ बातें ही की जा रही है। हालाँकि वर्तमान परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी आशान्वित दिखें हैं पर अब भी यह सिर्फ बयानों में ही है।
नगरपालिकाओं की सार्वजानिक सेवाएं
मुम्बई को अब मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन के तहत माना जाता है जिसका क्षेत्र करीब 4 हजार वर्ग किलोमीटर तक फैला है जिसमे ठाणे और रायगढ़ जिले की आठ महानगर पालिकाएं, 9 नगरपालिकाओं का समावेश है जिसका विकास अधिकार मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी के अंतर्गत आता है। कई वर्षों के बावजूद अब तक इन सभी नगरपालिकाओं में आपसी समन्वय न हो पाने के कारण कोई भी एकीकृत परिवहन सेवा नहीं है जिसका खामियाजा इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो मजबूरन भीड़भाड़ वाले लोकल ट्रेनों पर निर्भर हैं।
इमरजेंसी मेडिकल सुविधाओं का अभाव
समीर जवेरी जिन्होंने करीब 20 वर्ष पहले रेल दुर्घटना में अपने दोनों पैर गँवा दिए, उन 20 वर्षों से रेल विभाग की यात्रियों के प्रति जारी दुव्र्यवहार के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। यह उन्हीं के जंग का नतीजा है कि वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट को रेलवे को इमरजेंसी मेडिकल रूम स्टेशनों पर स्थापित करने का आदेश दिया जिसका पालन अब जाकर पिछले कुछ 2-3 वर्षों में शुरू हुआ है इसके बावजूद भी इमरजेंसी मेडिकल सुविधा के अभाव में दुर्घटना के शिकार यात्रियों की जानें चली जाती है क्योंकि उनके गंभीर अवस्था के चलते स्थानीय प्राइवेट और सरकारी अस्पताल मुम्बई के बड़े सरकारी अस्पताल ङाएट या जे जे अस्पताल रेफर करते हैं जो घटना स्थल से 80 से 100 किलोमीटर दूर हैं, की प्रक्रिया में कई बार 8 से 12 घंटे भी लग जाते हैं और घायल यात्री दम तोड़ देता हैं।
समीर जवेरी का कहना है की दुर्घटनाओं को लेकर रेलवे का नजरिया एकदम असंवेदनशील रहा है। कई बार स्थानीय अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक से मैंने इनके रवैये के खिलाफ लड़ाई लड़ी है पर ये अब तक सुधरे नहीं। 2004 में अदालत ने इन्हें रोजाना हो रही इन मौतों को रोकने के लिए मेरे द्वारा दायर याचिका पर आदेश दिया था कि सभी स्टेशनों के प्लेटफार्म और ट्रेन के डिब्बों के पायदान के बीच के गैप को कम करें और प्लेटफार्म की ऊंचाई बढ़ाएं जिस पर अब जाकर कई बार बॉम्बे हाईकोर्ट के फटकार के बाद अमल होना शुरू हुआ हैं। सभी प्लेटफॉर्मों पर पटरी पार करने से रोकने के लिए बैरिकेड और रेलवे लाइन को दीवारों से घेर दिया जाए ताकि लोग पटरियों पर न आएं। जिसका कुछ स्टेशनों पर अमल हो रहा है। सबसे गंभीर मसला अब भी रेलवे द्वारा घायलों के प्रति उदासीनता अब भी जारी है। अदालत के आदेश के बावजूद आज भी गोल्डन ऑवर (दुर्घटना से 1 घंटे के भीतर मेडिकल की आपातकालीन सुविधा) का पालन नहीं हो रहा है और घायल होने के 8 से 12 घंटे तक घायल यात्री सिर्फ कागजी कार्यवाही और अस्पतालों के चक्कर लगाता रह जाता है जिस दौरान शरीर से ज्यादा खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो जाती है। जबकि अदालत के निर्णय अनुसार घायल यात्री को जल्द से जल्द स्टेशन पर ही मूलभूत मेडिकल सुविधा देकर नजदीकी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में दाखिल किया जाना चाहिए पर शायद ही किसी मामले में इसका पालन होता है।
मेट्रो और मोनो रेल
पिछले दो वर्षों में मुंबई को लंबित पड़े मेट्रो और मोनो रेल की सेवा प्राप्त हुई पर उसमें सिर्फ मेट्रो ही एक सफल सुविधा के रूप में उभरी जिसकी वजह से पूर्व और पश्चिम (घाटकोपर-अँधेरी-वर्सोवा) को आने जाने वाले यात्रियों को एक सुखद सुविधा मिली। हालाँकि इसका किराया हमेशा से ही विवादों में है जो आम जनता के जेब पर थोड़ा भारी पड़ता है। पर इसी दौरान वडाला से चेम्बूर तक की मोनो रेल एकदम फ्लॉप साबित हुई जो एक घटिया प्लानिंग का प्रमाण है। मोनो रेल रिहाइशी इलाकों से न गुजर कर बंदरगाह क्षेत्र से गुजरती है जिसके चलते इसे यात्रियों का सहयोग नहीं मिला और अब यह सेवा लगभग खाली ही चलती है। शहर में अन्य कई जगहों पर मेट्रो ट्रेन के जाल बिछाने का काम हाथ में लिया गया है पर वे भी ठाणे के आगे नहीं जा रही है जहाँ से ज्यादा से ज्यादा लोग शहर में आते हैं।
आगे की राह
मध्य, पश्चिम और हारबर रेल रोजाना लगभग 4 हजार सेवाएं चलाती हैं और अब इस लोकल रेलवे सेवा का लगभग पूरी तरह से दोहन हो चुका है जहाँ हर 3 मिनट पर एक ट्रेन चलाई जा रही है और इसके आगे इसकी क्षमता नहीं है क्योंकि इसके पास भी सीमित साधन हैं। पटरियों का जाल बिछाने के लिए जगह नहीं है। इसके साथ नए डिब्बे भी इसे देरी से आपूर्ति होते हैं, इसलिए अब किसी और पर्यायी यातायात साधन के निर्माण की आवश्यकता है जो सड़क मार्ग, जल मार्ग, मेट्रो या मोनो रेल के रूप में हो सकती हैं। रेल विभाग बोरीवली, ठाणे, कल्याण, वसई इत्यादि जगहों शुरू कर उत्तर की तरफ लोकल ट्रेनों की संख्या बढाकर भी इन मौतों पर काबू पा सकती है जो एक त्वरित आराम देगा। इसके साथ ही सभी रेल पटरियों के समानांतर सड़क निर्माण का कार्य तेजी से किया जाए ताकि दुर्घटना या बरसात के समय ट्रेन बंद होने के समय पर्यायी परिवहन सेवा के साथ साथ मेडीकल सुविधा भी मिल सके। ऐसा नहीं है कि मुंबई में लोकल द्वारा हो रही मौतों को नहीं रोका जा सकता, जरूरत है रेल अधिकारियों और स्थानीय राजनीतिज्ञों में समन्वय का जिन्हें जल्द से जल्द सभी रुके हुए रेल प्रोजेक्ट्स को युद्ध स्तर पर शुरू करने की और अपने राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर जहाँ संभव हो इन मार्गों में रोड़ा बने अवैध निर्माणों या लाल फीताशाही को ख़त्म करना होगा। सबसे पहले इन सभी निर्णय लेने वाले विभागों को यह समझना होगा की मुंबई अब सिर्फ मुंबई तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका विस्तार अब शहर से 100 किलोमीटर दूर पूर्व-उत्तर और उत्तर पश्चिम तक हो गया है जहाँ से पूरा कार्य बल मुंबई में काम करने आता है। अब उनकी यह 30 किलोमीटर की दक्षिण से उत्तर वाली सोच को बदलना होगा और सुदूर के लोगों के ट्रांसपोर्ट सेवा के बारे में ठोस कदम उठाने होंगे। आज इन बढ़ती रिहाइशी इलाकों के कीमतों के साथ ही सरकार को इन्हीं सुदूर इलाकों में दक्षिण मुंबई की कुछ सरकारी और प्राइवेट आफिसों को स्थानांतरित करने की जरुरत है जिसके कारण इन जगहों पर रहने वालों को इनके घरों के आसपास ही रोजगार मिल जायेगा जिसका असर लोकल ट्रेन की भीड़ कम करने पर पड़ेगा। सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों के अलग-अलग समय परिवर्तन भी ट्रेन की भीड़ को कम करने में सहायक हो सकेंगी। रेल मंत्रालय को रेल पटरियों के नजदीक सभी सरकारी और निजी अस्पतालों के साथ एक बंधनकारक समझौता करना चाहिए कि किसी भी हालत में किसी भी दुर्घटनाग्रस्त यात्री को चिकित्सा सेवा देने से इंकार न कर पाएं और ऐसा करने पर उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। ज्यादातर घायल यात्रियों की मौतें समय पर मेडिकल सेवा न मिल पाने की वजह से हो जाती हैं। संभव हो तो पूरे क्षेत्र के ट्रांसपोर्ट सेवा को एक ही छतरी के नीचे लाये जाए ताकि सभी के लिए एक समान सेवा मिल सके और सभी का समन्वय एक ही जगह से हो सके।
अधूरे प्रोजेक्ट्स
कल्याण ठाणे 5-6 लाइन
वसई पनवेल के बीच नियमित लोकल ट्रेन सेवा
कलवा ऐरोली लिंक
विरार से दहानू रोड 3-4 लाइन
कुर्ला सीएसटी के बीच 5-6 लाइन
मुंबई लोकल : एक नजर में
मुंबई लोकल 4 विभागों में बंटी हुई है
मध्य रेलवे : कुल फेरियां करीब 1600
मुंबई सी एस टी से कर्जत-कसारा-खोपोली क्रमश: 100, 121 और 115 किलोमीटर
हार्बर रेलवे (मुंबई सी एस टी से पनवेल) 49 किलोमीटर
हार्बर लाइन (ठाणे से वाशी) 18 किलोमीटर
पश्चिम रेलवे (चर्चगेट से दहाणु) 124 किलोमीटर : करीब 1300 फेरियां
मुंबई में कुल रोजाना यात्रियों की संख्या : 75 लाख के करीब
सालाना मौतें : 3500 से ज्यादा
प्रतिदिन मौतें : औसत 9 से 11
तीन आतंकी हमलों में कुल मौतें 289
( 2003 मुलुंड ब्लास्ट 20 मौतें, 2006 सीरियल धमाके 209 मौतें, 2008 मुंबई सी एस टी ब्लास्ट 60 मौतें)
सर्वाधिक भीड़भाड़ और खतरनाक मौतों का क्षेत्र
डोम्बिवली- ठाणे
वसई- मीरा रोड- बोरीवली कुर्ला, माहिम
एक ट्रेन की सामान्य क्षमता 1255 यात्री
भीड़भाड़ के समय प्रति ट्रेन यात्री 5000 से भी ज्यादा