मुस्लिम महिलाओं को बराबरी के हक देने का मामला : जानें, क्या है पूरी कहानी
देश में मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सोमवार को टल गई है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में मौजूद ‘तीन तलाक’ और एक पत्नी के रहते दूसरी महिला से शादी पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में चीफ जस्टिस से मामले पर खुद ही संज्ञान लेते हुए फैसला करने के लिए कहा था। बेंच ने कहा था कि अब वक्त आ गया है कि इस पर कोई कदम उठाए जाएं।
क्या कहा था बेंच ने…
- अब आ गया है कदम उठाने का वक्त
- तीन तलाक़, एक पत्नी के रहते दूसरी शादी मूलभूत अधिकार का उल्लंघन
- समानता, जीने के अधिकार का उल्लंघन
- शादी और उत्तराधिकार के नियम किसी धर्म का हिस्सा नहीं
- समय के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में बदलाव ज़रूरी
- सरकार, विधायिका इस बारे में विचार करें
- यह संविधान में वर्णित मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकार, सुरक्षा का मुद्दा
सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है बहुविवाह प्रथा
सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व के फैसलों का उदाहरण देते हुए जजों ने कहा कि बहुविवाह की प्रथा सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है। इसे भी सती प्रथा की तरह प्रतिबंधित किया जा सकता है। कोर्ट का कहना है कि इस तरह की प्रथाएं महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। ये प्रथाएं संविधान द्वारा दिए गए समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।
मुस्लिम महिलाएं भेदभाव की शिकार
बेंच ने कहा, ‘यह ध्यान देने की बात है कि संविधान में पूरी गारंटी दिए जाने के बाद भी मुस्लिम महिलाएं भेदभाव की शिकार हैं… मनमाने तलाक और पहली शादी जारी रहने के बावजूद पति द्वारा दूसरा विवाह करने जैसे मामलों में महिलाओं के हक में कोई नियम नहीं है… यह महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के मसले को खारिज करने जैसा है…’
जावेद बनाम हरियाणा सरकार का उदाहरण
बेंच ने पूर्व के एक फैसले का उदाहरण देते हुए कहा, जावेद बनाम हरियाणा सरकार के मामले में तीन जजों की पीठ ने कहा था कि बहुविवाह सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है। इसे भी सरकार की ओर से सती प्रथा की तरह खत्म किया जा सकता है। यह पहले भी महसूस किया जा चुका है कि एक विवाह का कानून लागू करना किसी भी धर्म के विपरीत नहीं है और इससे मुस्लिम पर्सनल लॉ पर कोई आंच नहीं आती।
कुछ हफ्ते पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार के लिए काम करने वाले एक एनजीओ ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ का एक सर्वे सामने आया था, जिसके लिए संस्था ने देश के 10 राज्यों में 4,710 मुस्लिम महिलाओं की राय जानी थी।
तलाक – तलाक – तलाक
- 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं मौखिक तलाक के खिलाफ
- मुस्लिम महिलाओं ने ‘तीन तलाक’ को एकतरफा नियम बताया
- 93 फीसदी महिलाएं चाहती हैं कि कानूनी प्रक्रिया का पालन हो
- तलाक के केस में मध्यस्थता की मांग
- वर्ष 2014 में महिला शरिया अदालत में 235 केस आए
- अदालत के सामने 80 फीसदी केस मौखिक तलाक के
आसां नहीं तलाक
- पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, इराक, ईरान, इंडोनेशिया में ‘तीन तलाक’ पर रोक
- पाकिस्तान में वर्ष 1961 में ‘तीन तलाक’ पर लगाई गई थी रोक
- हर शादी की रजिस्ट्री, तथा तलाक से पहले सुलह की कोशिश ज़रूरी
- मलेशिया तथा ब्रूनेई में है दूसरी शादी पर रोक
- तुर्की, मिस्र, इंडोनेशिया, पाकिस्तान में दूसरी शादी के कायदे कड़े
- कई इस्लामी देशों में तलाकशुदा महिला को हर्जाना भी