ज्योतिष डेस्क : हिंदू धर्म में व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, उसमें एकादशी का का अत्यधिक महत्व है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियाँ होती हैं। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के रुप में जाना जाता है। वर्ष 2018 में मोक्षदा एकादशी 18 दिसम्बर को मनाई जाएगी। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों कष्टों और पापों को नष्ट करने वाली है। मोक्षदा एकादशी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, इसलिए आज का दिन गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है। एक समय की बात है गोकुल नगर पर वैखानस नाम के राजा राज किया करते थे। राजा बहुत ही धार्मिक प्रकृति थे। प्रजा भी आनदं से अपने दिन बिता रही थी। राज्य में किसी भी तरह का कोई कष्ट नहीं था। एक दिन बात है कि राजा वैखानस अपने शयनकक्ष में आराम कर रहे थे। तभी उन्होंने एक अजीब सा सपना देखा जिसमें वे देख रहे हैं कि उनके पिता (जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे) नरक में बहुत कष्टों को झेल रहे हैं। अपने पिता को इन कष्टों में देखकर राजा परेशान हो गये और उनकी नींद टूट गई। अपने सपने के बारे में राजा रात भर सोच विचार करते रहे लेकिन कुछ भी समाधान नहीं निकला। तब उन्होंनें प्रात:काल ही ब्राह्मणों और विद्वानों को बुलवाया। ब्राह्मणों के आने पर राजा ने उन्हें अपने सपने से अवगत करवाया। ब्राह्मणों को यह तो समझ आ गया की राजा के पिता को मृत्युपर्यन्त कष्ट झेलने पड़ रहे हैं परन्तु इनसे वे कैसे मुक्त हो सकते हैं इस बारे में कोई उपाय सुझाने में अपनी असमर्थता जताई। उन्होंनें राजा वैसानख को सलाह दिया की आपकी इस परेशानी का समाधन पर्वत नामक मुनि कर सकते हैं। वे बहुत पंहुचे हुए मुनि हैं। अत: आप अतिशीघ्र उनके पास जाकर इसका उपाय पूछें। अब राजा वैसानख ने वैसा ही किया और अपनी समस्या को लेकर पर्वत मुनि के आश्रम में पंहुच गये। मुनि ने राजा के स्वपन की बात सुनी तो वे भी एक बार तो अनिष्ट के डर से चिंतित हुए। फिर उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा। वे सचमुच नरक में पीड़ाओं को झेल रहे थे। उन्हें इसका कारण भी भान हो गया। तब उन्होंनें राजा से कहा कि हे राजन आपके पिता को अपने पूर्वजन्म पापकर्मों की सजा काटनी पड़ रही है। उन्होंने परनारी के वश में होकर अपनी स्त्री को सम्मान नहीं दिया, उन्होंनें रतिदान का निषेध किया था। तब राजा ने उनसे पूछा हे मुनिवर मेरे पिता को इससे छुटकारा कैसे मिल सकता है। तब पर्वत मुनि ने उनसे कहा कि राजन यदि आप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का विधिनुसार व्रत करें और उसके पुण्य को अपने पिता को दान कर दें तो उन्हें मोक्ष मिल सकता है। राजा ने ऐसा ही किया। विधिपूर्वक मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य को अपने पिता को दान करते ही आकाश से मंगल गान होने लगा। राजा ने प्रत्यक्ष देखा कि उसके पिता बैकुंठ में जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हे पुत्र मैं कुछ समय स्वर्ग का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हो जाऊंगा। यह सब तुम्हारे उपवास से संभव हुआ, तुमने नारकीय जीवन से मुझे छुटाकर सच्चे अर्थों में पुत्र होने का धर्म निभाया है। कीर्ति अमर होगी और कालांतर तक तुम्हरे इस व्रत के कारण लोक तुम्हे याद रखेंगे। राजा द्वारा एकादशी का व्रत रखने से उसके पिता के पापों का क्षय हुआ और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई इसी कारण इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा गया। चूंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था इसलिये यह एकादशी और भी अधिक शुभ फलदायी हो जाती है। पद्मपुराण में भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं-इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरिके नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करें।
मोक्षदा एकादशी के दिन अन्य एकादशियों की तरह ही व्रत और पूजा करने का विधान है। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन सात्विक एवं हल्का भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल छिड़क कर घर को पवित्र करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करना चाहिए। पूजा करने बाद विष्णु के अवतारों की कथा का पाठ करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी की रात्रि को भगवान श्रीहरि का भजन- कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुन: विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत: में परिवार के साथ बैठकर उपवास खोलना चाहिए। मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक जातकों के लिए हिन्दू धर्म में इस व्रत को सबसे अहम और पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। कभी-कभी एकदशी का उपवास लगातार दो दिनों तक चलता है। यह सलाह दी जाती है कि पारिवारिक लोग केवल पहले दिन उपवास का पालन करें। दूसरे दिन की एकादशी संन्यासी, विधवाओं और जो मोक्ष ले चुके हैं, उनके लिए है।
द्वारा : पंडित प्रखर गोस्वामी, एस्ट्रो गुरुकुल क्लासेज
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