यहाँ 50 साल से दलितों के लिए बंद हैं मंदिर के दरवाजे
बरेली। तहसील के गांव बुझिया में पचास साल पुराने मंदिर के दरवाजे दलितों के लिए बंद हैं। उनका कहना है कि जब से मंदिर बना, किसी दलित को पूजा की अनुमति नहीं दी गई।
हालांकि पाबंदी किसने लगाई, किसकी वजह से दलितों को इस मंदिर में अब तक प्रवेश नहीं दिया गया, इस बारे में कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं। इस वर्ग ने सावन में जलाभिषेक की मांग उठाई तो अब पंचायत बुलाने की तैयारी की जा रही है।
दलित महिला सरपंच ने बनवाया मंदिर लेकिन नहीं जा सकती अंदर
ग्रामीणों का कहना है कि पचास साल पहले गांव के चौधरी रंजीत सिंह ने अपनी निजी जमीन पर यह मंदिर बनाया था। उन्होंने सिर्फ अपने परिवार की पूजा के लिए इसका निर्माण किया, इसलिए गांव को कोई अन्य इस मंदिर में नहीं जाता था।
उनके बाद यह प्रथा दलितों से जोड़ दी गई। गांव के अन्य लोग तो मंदिर में पूजा करने लगे, मगर दलितों पर पाबंदी लगा दी गई। वे आज तक इस मंदिर में नहीं पूजा नहीं कर सके।
बोले सेवादार, मना किसी को नहीं
मंदिर के सेवादार लेखराज का कहना है कि उन्होंने अपनी तरफ से किसी को मंदिर में जलाभिषेक के लिए मना नहीं किया है। हां, इतना जरूर है कि प्राचीन परंपराओं का निर्वहन तो करना ही चाहिए।
ग्राम प्रधान बुझिया लालता प्रसाद के अनुसारधार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने या धार्मिक स्थल पर जाने का सभी को मौलिक अधिकार है। किसी को दलित कहकर रोका नही जा सकता। दोनों पक्षों को बैठाकर कांवड़ वाला मामला सुलझ गया। अब मंदिर वाला मसला भी सुलझ जाएगा।
सभी के साथ कांवड़ लेकर जाएगा दलित युवक
इसी गांव में दलित युवक विनोद कुमार ने आरोप लगाया था कि कांवड़ दल में उसे शामिल नहीं किया गया, क्योंकि वह दलित है। इसकी शिकायत तहसील दिवस में की गई तो अफसर हरकत में आ गए। बुधवार को मामले में पंचायत बुलाई गई।
बाबा केदारदास का कहना था कि विनोद शराब पीता है, इसलिए उसे कांवड़ दल में शामिल नहीं किया गया। पंचायत में उसने गलती मान ली, कहा कि वह शराब नहीं पियेगा। जिसके बाद उसे कांवड़ दल में शामिल कर लिया गया और सभी जल लेने के लिए हरिद्वार रवाना हो गए।