अद्धयात्म

यहां भक्तों पर विपत्ति देख रो देते हैं काल भैरव

kal-bhairavहिमाचल प्रदेश की धरती पर देवी-देवताओं का वास है। देवभूमि के नाम से विख्यात इस प्रदेश से देवी-देवताओं की कई रोचक बातें भी जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक रोचक कड़ी शक्तिपीठों में से कांगड़ा की बज्रेश्वरी देवी मां का मंदिर है, इसी मंदिर परिसर में काल भैरव का भी मंदिर है।

कांगड़ा का बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है, जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख मां की एक झलक भर देखने से दूर हो जाता है। यह 52 शक्तिपीठों में से मां की वह शक्तिपीठ है, जहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था और जहां तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में मां की तीन पिंडियों की पूजा होती है। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है।

मां के इस शक्तिपीठ पर ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। मां के वो भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं, पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और मां का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं। मंदिर परिसर में ही भगवान काल भैरव का भी मंदिर है। यहां विराजे भगवान लाल भैरव की यह मूर्ति करीब पांच हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है।

काल भैरव करते हैं विपत्तियों से रक्षा

ज्‍योतिषाचार्य सुरेश दुबे बताते हैं कि, “जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो काल भैरव मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं। यह बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का चमत्कार ही है कि आने वाली हर आपदा मां के आशीष से टल जाती है। बताया जाता है कि ऐसा यहां कई बार हुआ है।

बताया जाता है कि यह मूर्ति काफी पुरानी है। अगर हाल ही के वर्षों की बात करें तो वर्ष 1976-77 में इस मूर्ति में आंसू व शरीर से पसीना निकला था। उस समय कांगड़ा बाजार में भीषण अग्निकांड हुआ था। काफी दुकानें जल गई थी। उस समय यहां इस तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा भी मंदिर में इस घटना की जानकारी मिलने के बाद माथा टेकने पहुंचे थे। उसके बाद से यहां ऐसी विपत्ति टालने के लिए हर वर्ष नवंबर व दिसंबर के मध्य में भैरव जयंती मनाई जाती है।

उस दौरान यहां पाठ व हवन होता है। यह मूर्ति मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही बाईं तरफ स्थापित है। यहां मां के दर्शन के बाद सभी श्रद्धालु दर्शन करते हैं। मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। कांगड़ा मंदिर में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु पहुंचते है।

कैसे पहुंचे : कांगड़ा शहर धर्मशाला से 17 किमी, शिमला से 220 किमी और चंडीगढ़ से 235 किमी दूर है। धर्मशाला ही सबसे निकट का हवाईअड्डा है। यहां के लिए दिल्‍ली और लखनऊ से ट्रेनें और फ्लाइट्स उपलब्‍ध हैं। पठानकोट आकर कांकड़ा के लिए टैक्‍सी या बसें ले जा सकती हैं।

 
 

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