यादव सिंह की चहेती फर्मों का नया ठिकाना एलडीए!
दीगर है कि यूपी सरकार पर भी यादव सिंह को लेकर नरमी बरतने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ समय पहले अखिलेश यादव की सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट चली गई थी जिसमें सीबीआई जांच का आदेश दिया गया था। इससे यादव सिंह से यूपी की सत्ताधारी पार्टी के मजबूत कनेक्शन का भी पता चला है।
प्रणय विक्रम सिंह
हावत है कि पैसे की ताकत से स्वर्ग में भी राह बनाई जा सकती है और जब पैसे वाला खुद कुबेर हो तो बड़ी-बड़ी हुकूमतों और उनके हुक्मरानों का बिक जाना तो दस्तूर लगता है। अदब के शहर लखनऊ में भी ऐसे ही काली कमाई के एक कुबेर को पुन: स्थापित करने की पटकथा लिखी जा रही है। जी हां, आप ठीक समझ रहे हैं, बात भ्रष्टाचार के राष्ट्रीय हस्ताक्षर बन चुके यादव सिंह की चहेती कंपनियों के नए ठिकाने के बारे में हो रही है। बात यहां तक होती तो शायद इतना बड़ा सवाल न खड़ा होता किंतु चर्चा तो यह है कि सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अति महत्वाकांक्षी योजना चक गंजरिया आईटी सिटी ही काली कमाई के कुबेर यादव सिंह की चहेती फर्मों की नई ख्वाबगाह बनने जा रही है। सूत्र बताते हैं कि आने वाले समय में मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट चक गंजरिया आईटी सिटी को यादव सिंह की चहेती फर्में रोशन करेंगी। इन दिनों इस कंपनी से बिजली घर बनवाने की पटकथा लिखी जा रही है। बता दें कि नोयडा, ग्रेटर नोयडा और यमुना एक्सप्रेस-वे के निलंबित मुख्य अभियन्ता की काली कमाई की जांच में सीबीआई ने जिस जेएसपी कंस्ट्रक्शन लिमिटेड के कार्यालय और निदेशकों के आवास पर सघन छापेमारी कर यादव सिंह और जेएसपी ग्रुप के गठजोड़ को उजागर किया, उसी कंपनी की एक अन्य फर्म जेएसपी प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड इन दिनों लखनऊ विकास प्राधिकरण में स्थापित होने की कोशिश कर रही है।
बीते दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट चक गंजरिया आईटी सिटी परियोजना में 33/11 केवी के प्रस्तावित छह सब-स्टेशन निर्माण की निविदा निकाली गई। चक गंजरिया आईटी सिटी परियोजना के पार्ट-ए में प्रस्तावित बिजली घर निर्माण के लिए बीती 19 अगस्त को खोली गई निविदा में नोयडा की जेएसपी प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, मोमेन्टम टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड और लखनऊ की ईगल इंटरप्राइजेज व अपना टेक कन्सलटेंसी सर्विस प्राइवेट लिमिटेड की निविदायें वैध पाई गयीं। इसके अलावा पार्ट-बी में प्रस्तावित बिजली घर निर्माण के लिए पांच फर्मों के नाम शामिल हैं। इन फर्मों में नोयडा की जेएसपी प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, मोमेन्टम टेक्ना प्रा. लि., प्रशान्त बिल्डर्स, पुंडरीकाक्ष्य डेवलपर्स प्रा. लि. और लखनऊ की ईगल इंटरप्राइजेज व प्राशान्त बिल्डर्स हैं।
बता दें कि सीबीआई ने बीते दिनों नोयडा में जिस जेएसपी कंस्ट्रक्शन लि. के कार्यालय व निदेशक के आवास पर छापा मारा था, जेएसपी प्रोजेक्ट प्रा.लि. उसी ग्रुप की कंपनी है। जेएसपी कंस्ट्रक्शन लि. और जेएसपी प्रोजेक्ट प्रा. लि. के निदेशकों के नाम, पते और कंपनी का सम्पर्क नम्बर व पता एक ही हैं। जेएसपी कंस्ट्रक्शन लि. के तार सीधे तौर पर यादव सिंह से जुड़े होने की बात सीबीआई छापे में उजागर हो चुकी है। बावजूद इसके इन दिनों यादव सिंह की चहेती जेएसपी ग्रुप की कंपनियों पर मेहरबानी लुटाने को कुछ जिम्मेदार बेकरार हैं। इतना ही नहीं, जानकारों का दावा है कि जेएसपी ग्रुप के अलावा इस निविदा में एनसीआर की जो अन्य फर्में शामिल हैं वह कभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काली कमाई के कुबेर की कृपा के मजे ले चुकी हैं। फिलहाल, सीबीआई और
ईडी के कसते शिंकजे और नोयडा अथॉरिटी में लागू ई-टेंडरिंग व्यवस्था का तोड़ न निकाल पाने के चलते इन कंपनियों ने नये ठिकाने की तलाश शुरू कर दी थी। चर्चा यह भी है कि काली कमाई के कुबेर यादव सिंह की इन चहेती फर्मों को लखनऊ विकास प्राधिकरण में स्थापित करवाने के लिए एक आईएएस अधिकारी सक्रिय हैं। एनसीआर की इन फर्मों को एलडीए में स्थापित करने की पटकथा का अंतिम अध्याय लिखने से पहले मची सुगबुगाहट ने पटकथा में एक नये दृश्य की रचना कर दी है। मतलब कि मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाली इस परियोजना का यह टेण्डर दूसरी बार भी निरस्त करने की कवायद शुरू कर दी गई है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जिस फर्म के कार्यालय और निदेशकों के आवास पर अभी हाल ही में सीबीआई ने सघन छापेमारी कर यादव सिंह से इस फर्म के गठजोड़ को उजागर किया है, उस फर्म की सिफारिश आखिर किस आधार पर की जा रही है? दीगर है कि यूपी सरकार पर भी यादव सिंह को लेकर नरमी बरतने के आरोप लगते रहे हैं।
कुछ समय पहले अखिलेश यादव की सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट चली गई थी जिसमें सीबीआई जांच का आदेश दिया गया था। कुख्यात यादव सिंह से यूपी की सत्ताधारी पार्टी और परिवार से कनेक्शन का भी पता चला है। मुलायम सिंह के भतीजे और समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के यादव सिंह से कारोबारी रिश्ते का पता चला है। अत: जानकारों द्वारा इस बात की भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस कहानी के तार सत्ता साकेत से भी जुड़े हो सकते हैं। सत्ता प्रतिष्ठान से मिल रहे निर्देशों का ही अनुपालन अत्यंत प्रोफेशनल ढंग से किया जा रहा हो। केन्द्र की पूर्व सरकार में हुए घोटालों की श्रंखला इस बात का प्रमाण है कि सत्ता की सरपरस्ती में ही भ्रष्टाचार की पौध तैयार होती है। पेटीकोट घोटाले के बाद यादव सिंह पर मेहरबानी करने के लिये तलाशे जा रहे रास्तों की कवायद यह चीख-चीख कर ताकीद कर रही है कि अगर समय रहते शासन-प्रशासन ने इस ओर ध्यान न दिया तो निकट भविष्य में काली कमाई के कुछ और कुबेरों के कारनामे लखनऊ विकास प्राधिकरण सहित सरकार की साख पर बट्टा लगायेगे, ऐसी प्रबल संभावना है।
व्यक्ति नहीं फिनोमिना है यादव सिंह
यादव सिंह कोई व्यक्ति न होकर एक फिनोमिना है! सत्तर के दशक में जब नगरों के सुनियोजित विकास की घोषित योजना बताकर स्थान-स्थान पर विकास (विनाश) प्राधिकरणों की स्थापना की गयी तो भ्रष्टाचार, लूटमार और राजनीतिक मिलीभगत का एक नया अध्याय प्रारम्भ हो गया! जिन नगरों में विकास प्राधिकरणों का गठन हुआ है उनमें विकास हुआ हो या नहीं, लेकिन उन प्राधिकरणों के अदना से अदना कर्मचारी की हैसियत भी करोड़पति की तो अवश्य ही हो गयी! जितने बड़े-बड़े विकास प्राधिकरण हैं उनमें प्रारम्भ से अब तक जितने भी अधिकारी तैनात किये गए हैं यदि उन सबकी आर्थिक कुंडली खंगाली जाए तो पता चल जाएगा कि इन प्राधिकरणों में जरूर कोई पारस के पत्थर लगे हैं कि जिस किसी ने छू लिया वही लोहे से सोना हो गया! आज तो नोएडा समेत सभी महानगरों की जमीन सोना उगल रही है! जिस अधिकारी की नोएडा आदि में तैनाती होती है वह सीधे सरकार का कृपापात्र होता है! यादव सिंह पूर्व में बसपा सरकार के दौरान सत्ता का कृपापात्र था! लेकिन सत्ता बदलने के बाद भी उस पर वही कृपा बरसती रही इसका रहस्य एक अनबूझ पहेली है! अब उच्च न्यायालय के निर्देश पर यादव सिंह की जांच मजबूरी में सीबीआई को सौंपने के बावजूद इस प्रकार से सोने के अंडे नहीं बल्कि सोने की खान देने वाले चहेते को एलडीए के माध्यम से कमाई के कार्यों में जोड़े रखने की राह तलाशने की कवायद उसके साथ संबंधों की गहराई को ही दर्शाता है!
जेएसपी कंस्ट्रक्शन लि. के तार सीधे तौर पर यादव सिंह से जुड़े होने की बात सीबीआई छापे में उजागर हो चुकी है। बावजूद इसके इन दिनों यादव सिंह की चहेती जेएसपी ग्रुप की कंपनियों पर मेहरबानी लुटाने को कुछ जिम्मेदार बेकरार हैं।