लखनऊ। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उन्होंने राहुल गांधी और सोनिया गांधी को जीतने में मदद की थी, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि प्रदेश में भाजपा की जीत हो।
हालांकि सोनिया गांधी का रायबरेली से जीतना लगभग तय था लेकिन राहुल गांधी को अमेठी से भाजपा की स्मृति ईरानी ने कड़ी टक्कर दी थी।
लेकिन सिर्फ एक साल के बाद सपा ने बिहार में महागठबंधन से बाहर आने का फैसला ले लिया था। सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ बिहार में बने इस महागठबंधन से सपा मुलायम सिंह ने इसलिए बाहर होने का फैसला ले लिया था क्योंकि नीतीश कुमार ने गुपचुप तरीके से दिल्ली में सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात की थी।
सुबह 4.30 बजे सदन को भंग करने का लिया फैसला
मुलायम सिंह और गांधी परिवार के बीच संबंध का लंबा इतिहास है। कई बार उनका कांग्रेस से भरोसा टूटा है, इसकी शुरुआत 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से हुई थी।
उस वक्त मुलायम सिंह यादव मुस्लिमों के लिए कांग्रेस के समर्थन से एक अभियान चला रहे थे, उस वक्त कयास लगाए जा रहे थे कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है लेकिन तभी मुलायम सिंह ने सुबह 4.30 बजे तत्कालीन राज्यपाल सत्या नारायण रेड्डी को फोन करके विधानसभा को भंग करने के लिए कहा था। इस वक्त कांग्रेस के नेता एनडी तिवारी राज भवन पहुंच चुके थे और सदन को भंग किया जा चुका था और मुलायम सिंह को केयरटेकर मुख्यमंत्री बनाया गया था।
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कांग्रेस व सपा ने लगाए एक दूसरे पर आरोप
कांग्रेस और सपा के बीच कभी उंच और नीच का माहौल तबसे चला आ रहा है, कभी मुलायम ने कांग्रेस पर सीबीआई का उनके खिलाफ गलत उपयोग का आरोप लगाया तो कांग्रेस ने 1999 में सोनिया गांधी को सत्ता तक पहुंचने से रोकने का सपा पर आरोप लगाया।
क्या खत्म होगी पुरानी पीढ़ि की खटास
लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि क्या गांधी परिवार के वरिष्ठ नेताओं और सपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच के अविश्वास को राहुल और अखिलेश यादव खत्म कर सकते हैं या नहीं। देखा जाए तो राजनीति में कुछ भी संभव है।
अखिलेश और राहुल भी आ चुके आमने-सामने
2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने जमकर प्रचार किया और फोराजाबाद में उनकी रैली के चलते डिंपल यादव को हार का मुंह भी देखना पड़ा था। लेकिन उसके बाद डिंपल यादव ने कन्नौज से जीतकर इतिहास रच दिया था जो कि 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई थी।
वहीं 2014 में कांग्रेस पहली पार्टी थी जिसने कन्नौज सीट से नहीं लड़ने का फैसला लिया था, जब डिंपल 2014 में दोबारा चुनावी मैदान में उतरने जा रही थी। इसी के जवाब में सपा ने गांधी परिवार के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला लिया था। हालांकि अखिलेश यादव ने 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर कांग्रेस अपना हिसाब चुका लिया था।
वोटों के बिखराव को रोकने के लिए हो सकती है दोस्ती
लेकिन जिस तरह से गुरुवार को अखिलेश यादव ने राहुल गांधी को अच्छा दोस्त बताया था उसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि एक बार फिर से कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन हो सकता है। पार्टी के भीतर के नेताओं का मानना है कि एक जैसी विचारधारा वाली पार्टी कांग्रेस से गठबंधन होने से भाजपा विरोधी वोटों का बिखराव रुकेगा।
2017 होगा कांग्रेस-सपा के लिए निर्णायक
सपा अपने आधिकारिक बयान में पहले ही कह चुकी है कि वह अपनी तरह की विचारधारा वाली पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है जिसमें अजीत सिंह की आरएलडी भी शामिल है।
एक कार्यक्रम के दौरान अखिलेश यादव ने राहुल की ओर इशारा करते हुए कहा था कि हम अभी गठबंधन के लिए तैयार हैं अगर राहुल गांधी नेताजी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार व खुद उप प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के लिए स्वीकार करने को तैयार हैं। बहरहाल 2017 का चुनावी परिणा इस गठबंधन की दशा व दिशा को निर्धारित करेगा।