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यूपी कैबिनेट का फैसला, सब्सिडी व सरकारी योजनाओं के लिए जरूरी होगा आधार कार्ड

योगी आदित्यनाथ सरकार ने केंद्र के डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) एक्ट को प्रदेश में लागू करने की मंजूरी दे दी है। इससे डीबीटी के जरिये सरकारी योजनाओं का लाभ या सब्सिडी लेने के लिए आधार का लिंक कराया जाना अनिवार्य हो गया है। इसके साथ ही कैबिनेट ने सूबे के 1.48 करोड़ स्कूली बच्चों को जूते-मोजे स्वेटर देने पर भी मुहर लगा दी है।
राज्य सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि केंद्र के एक्ट को जिस तरह महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा ने लागू किया है, यूपी ने उसी मॉडल को लागू करने को मंजूरी दी है। अब वृद्धा पेंशन, छात्रवृत्ति एकाउंट में ट्रांसफर करने के लिए आधार लिंक होना अनिवार्य होगा।

इसी तरह राशन पाने के लिए भी आधार का लिंक किया जाना जरूरी होगा। इसके अलावा स्वास्थ्य सहित तमाम विभागों में संविदा पर कर्मचारी काम करते हैं। शिकायत रहती है कि उन्हें पूरा मानदेय न देकर कटौती कर ली जाती है।

आधार लिंक होने के बाद कर्मचारियों के  खाते में सीधे पैसा ट्रांसफर होगा। सिंह ने बताया कि इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। अपात्र लोग योजनाओं का लाभ नहीं ले पाएंगे।

स्कूली बच्चों को जूते-मोजे व स्वेटर देने पर मुहर

बेसिक स्कूल के बच्चों को आकर्षक ड्रेस और किताबें देने के साथ ही सरकार ने ठंडक शुरू होने से पहले जूते-मोजे और स्वेटर देने की तैयारी तेज कर दी है। मंगलवार को प्रदेश कैबिनेट ने कक्षा एक से आठ तक के सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए जूते-मोजे और स्वेटर खरीदने के लिए 300 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दे दी।

प्रदेश सरकार के प्रवक्ता व स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि योगी सरकार ने बेसिक स्कूल के बच्चों को पब्लिक स्कूल की तरह विकसित करने का काम शुरू किया है। सरकार गठित होते ही बच्चों को यूनिफॉर्म उपलब्ध कराई गई। नि:शुल्क किताबें वितरित की गई। अब कैबिनेट ने जूते-मोजे और स्वेटर देने की कार्ययोजना को मंजूरी दे दी है।

उन्होंने बताया कि 135.75 रुपये में जूते और 21.50 रुपये में मोजे मिलेंगे। स्वेटर के लिए टेंडर प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही इसके भी दाम तय हो जाएंगे।इस कार्य पर 300 करोड़ रुपये खर्च होंगे। एक करोड़ 48 लाख 49 हजार 145 विद्यार्थियों को जूते-मोजे और स्वेटर दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि जाड़ा शुरू होने से पहले बच्चों को जूते-मोजे व स्वेटर दिलाने की तैयारी है।

मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना को मंजूरी

योगी आदित्यनाथ सरकार ने मंगलवार को मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना को मंजूरी दे दी है। सरकार 35 हजार रुपये प्रति दंपती खर्च करेगी। इसमें 20 हजार रुपये दंपती के संयुक्त खाते में जमा किए जाएंगे।

मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में लोकभवन में कैबिनेट की बैठक हुई। इसमें चार प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना समाज कल्याण विभाग संचालित करेगा। इस योजना में विवाह के लिए महिला की न्यूनतम उम्र 18 और पुरुष की 21 वर्ष होगी। सामूहिक विवाह के लाभार्थियों के चयन के लिए एक कमेटी होगी। विवाह में विधवा व तलाकशुदा महिला को तवज्जो दी जाएगी।

सिंह ने बताया कि  इस परप्रति दंपती 35 हजार रुपये खर्च आएगा। सामूहिक विवाह के लिए न्यूनतम 10 जोड़े होने चाहिए। इसमें दंपती के  संयुक्त खाते में डीबीटी के जरिये 20 हजार रुपये नकद जमा किया जाएगा। बाकी रकम विवाह की सामग्री, उपहार व आयोजन पर खर्च होगी। विवाह सामग्री में बिछिया, पायल, बर्तन व मोबाइल जैसी सामग्री दी जाएगी।

सामूहिक विवाह कराने की जिम्मेदारी नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद, नगर निगम, ग्राम पंचायत व जिला पंचायत जैसी संस्थाएं उठाएंगी। एनजीओ भी इसमें सहयोग कर सकते हैं और इस कार्यक्रम के भागीदार बन सकते हैं। एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा, दूल्हे-दुल्हन के लिए अभी आधार अनिवार्य किया गया है लेकिन एक्ट में इसका प्रावधान किया जा सकता है।

मिट्टी तेल लाइसेंस की 23 साल पुरानी व्यवस्था पर मुहर

प्रदेश में मिट्टी तेल लाइसेंस की 23 साल पुरानी व्यवस्था को योगी सरकार ने कानूनी जामा पहना दिया है। नियमावली में संशोधित प्रावधान 1994 से ही लागू माने गए हैं। स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बताया कि प्रदेश में मिट्टी तेल नियंत्रण की 19 अप्रैल 1994 को जारी अधिसूचना से मिटटी तेल लाइसेंस जारी करने की व्यवस्था की गई है। इसमें वन टाइम लाइसेंस की व्यवस्था है।

इसके पहले 1962 की व्यवस्था लागू थी जिसमें हर साल लाइसेंस का रिन्यूवल जरूरी था। उन्होंने बताया कि 1994 में सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर वन टाइम लाइसेंस तो लागू कर दिया लेकिन बीच में इतनी सरकारें आईं, लेकिन नियमावली में यह व्यवस्था नहीं की।

यह मामला हाईकोर्ट तक गया। अब नियमावली में संशोधन कर 1994 की व्यवस्था शामिल कर दी गई है। कैबिनेट ने नियमावली में यह प्रावधान 19 अप्रैल 1994 से ही मान्य करार दिया है।

 

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