यूपी में लौट आया जानलेवा स्वाइन फ्लू, एक की मौत
स्वाइन फ्लू (एच1एन1) वायरस की दस्तक के साथ ही एक मरीज ने दम तोड़ दिया। बाराबंकी के 35 वर्षीय व्यक्ति को सीने में दर्द और सर्दी जुकाम की शिकायत के बाद नाजुक हालत में अलीगंज स्थित मिडलैंड अस्पताल में सोमवार को भर्ती कराया गया था।
इलाज के बाद हालत नहीं सुधरी तो डॉ. वीपी सिंह ने स्वाइन फ्लू की आशंका जताई और स्वैब का सैंपल जांच के लिए पीजीआई भेजा। मंगलवार को जांच रिपोर्ट आई तो उसमें स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई। इसके बाद मिडलैंड अस्पताल के संचालक ने इसकी सूचना सीएमओ को दी।
सीएमओ ने आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती मरीज के लिए टेमीफ्लू दवा भिजवाई। दवा खाने के 24 घंटे बाद मरीज ने बुधवार दोपहर करीब तीन बजे दम तोड़ दिया।
सीएमओ डॉ. एसएनएस यादव का कहना है कि मिडलैंड अस्पताल में स्वाइन फ्लू के मरीज के भर्ती होने की सूचना डॉ. वीपी सिंह ने दी थी। टेमीफ्लू दवा भेजी गई लेकिन मरीज की हालत अधिक नाजुक थी जिससे उसकी मौत हो गई। मरीज बाराबंकी का था राजधानी में इससे कोई खतरा नहीं है।
स्वाइन फ्लू वायरस की दस्तक के बाद भी शहर के अस्पतालों में कुछ खास तैयारी नहीं है। अस्पतालों में न तो स्पेशल सेफ्टी किट है और न ही टेमीफ्लू दवा।
टेमीफ्लू दवा की किल्लत ने पिछले साल वायरस को तेजी से फैलाया था और एक के बाद एक कर सैकड़ों की संख्या में मरीज वायरस की चपेट में आ गए थे जबकि दस से अधिक मरीजों की मौत हो गई थी।
पिछले साल सरकारी अस्पतालों में अलग से स्वाइन फ्लू वार्ड बनाया गया था लेकिन इस बार कुछ खास तैयारी नहीं है। आलम ये है कि इस दौरान अब कोई दूसरा मरीज टेमीफ्लू दवा के लिए सरकारी अस्पताल पहुंच जाए तो और लोग भी चपेट में आ सकते हैं।
पिछली बार सिविल, बलरामपुर और लोहिया अस्पताल में स्वैब कलेक्शन सेंटर बनाया गया था लेकिन इस बार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसी तरह पीजीआई और केजीएमयू में वेंटिलेटर यूनिट के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है जिससे आने वाले समय में स्थिति और खराब हो सकती है।
स्वाइन फ्लू (एच1एन1) वायरस की जांच सिर्फ पीजीआई और केजीएमयू में ही संभव है। किसी को लंबे समय से सर्दी जुकाम, नाक से पानी आना, वजन कम होना और कमजोरी महसूस हो तो सावधानी बहुत जरूरी है।
जरा सी लापरवाही अपनी जान के साथ दूसरों की भी जान मुश्किल में डाल सकती है। किसी तरह की आशंका होने पर केजीएमयू व पीजीआई में स्वाइन फ्लू की जांच पूरी तरह मुफ्त है।
निजी पैथोलॉजी में जांच पर हजारों रुपए की रकम खर्च होती है लेकिन स्वास्थ्य विभाग उसे नहीं मानता। पीजीआई और केजीएमयू की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही टेमीफ्लू दवा का वितरण किया जाता है।