राजनीति

ये है तीन तलाक के पीछे की असली हकीकत? बीजेपी ने इस मंशा से उठाया मुद्दा?

NEW DELHI, INDIA - OCTOBER 13: (L- R)  All India Muslim Personal Law Board members Maulana Syed Arshad Madani, Maulana Mohammad Wali Rahmani, and Jamiat Ulama-I Hind and other  important organization joint press conference on the issue of  government affidavit and law notification on uniform Civil code at Press Club of India  on October 13, 2016 in New Delhi, India.( Photo by Sonu Mehta/Hindustan Times via Getty Images)

आरएसएस से ताल्लुक रखने वाले लोगों में मुस्‍लिम महिलाओं के प्रति बहुत प्रेम उमड़ पड़ा है। उनकी बदाहाली से बहुत फिक्रमंद नजर आते हैं,  इसलिए तीन तलाक के मुद्दे को ऐसे प्रचारित कर रहे हैं, जैसे इस पर रोक लगते ही मुस्‍लिम महिलाएं एकदम खुशहाल हो जाएंगी, उनकी सभी समस्याएं एक झटके में खत्म हो जाएंगी। ऐसे ही जैसे मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही देश की सभी समस्याएं खत्म हो गर्इं। वे यह भूल जाते हैं कि तलाक की नौबत किसी एक क्षण में नहीं आती है। मतभेद जब चरम पर पहुंचते हैं, तो तलाक होता है।

दरअसल, ऐसा नहीं है कि तलाक से पहले सुलह सफाई की कोशिशें नहीं की जातीं, की जाती हैं, लेकिन वह सामने नहीं आतीं। सामने आता है कि पति ने एक झटके में तलाक-तलाक-तलाक बोलकर पत्नी से पीछा छुड़ा है। खबर बनती है कि सब्जी में नमक तेज होने की वजह से पति ने पत्नी को तलाक दे दिया। सब्जी में नमक तेज होना भले तात्कालिक कारण हो, लेकिन उससे पहले जो तल्खियां दोनों के बीच होती हैं, उसे कैसे नजर अंदाज किया जा सकता है। जब कोई गैर मुस्‍लिम दंपती अदालत में तलाक लेने जाता है, जो क्या वह किसी एक क्षण में लिया जाना फैसला होता है?  नहीं होता है। जब मतभेद चरम पर पहुंच जाते हैं, तभी दोनों अलग होने का फैसला करते हैं। यही बात तीन तलाक के संदर्भ में भी कही जा सकती है।

हां, इतना जरूर है कि जब निकाह होते वक्त समाज साथ होता है, निकाह के दो गवाह होते हैं, दो वकील होते हैं, जो लड़के और लड़की करीबी रिश्तेदार होते हैं, तो तलाक भी गवाहों की मौजूदगी में क्यों नहीं दी जा सकती? अगर कोई पति अपनी पत्नी को तलाक देता है, तो उसे यह लिखित में देनी चाहिए।

बहरहाल, आरएएस और भाजपा इस मुद्दे के सहारे चुनाव में धार्मिक धु्रवीकरण करना चाहते हैं। मुस्‍लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमा संघ के जाल में फंसकर ट्रिपल तलाक को जीने मरने का प्रश्न बना रहे हैं। मुस्‍लिम इस मुद्दे पर जितना मुखर होंगे, उतना ही संघ परिवार का एजेंडा पूरा होता जाएगा।

यकीनन, यह समझ से बाहर है कि मुस्‍लिम इस मुद्दे पर इतनी हायतौबा मचा क्यों रहे हैं? क्यों न्यूज चैनलों की डिबेट में जा रहे हैं? क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस करके विरोध जता रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट और सरकार जो करना चाहते हैं, करने दीजिए ना। इस देश में कानून से कोई समस्या खत्म हुई है क्या? क्या दहेज का चलन बंद हो गया? क्या दहेज की खातिर बहुओं का मारना खत्म हो गया? क्या कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई? क्या बाल श्रम रुक गया? क्या देवदासी प्रथा पर रोक लग गई?

दरअसल, जहां तक समान सिविल कोड की बात है, इस पर ‘सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। कहां है समान सिविल कोड का मसौदा?  क्या इस पर सभी धर्मों, समुदायों, जातियों आदि की सहमति ले ली गई है? ये ट्रिपल तलाक और समान सिविल कोड कुछ नहीं है। यह बस इस मुद्दे पर हिंदू-मुसलमान करना चाहते हैं, जिससे उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में फायदा हो जाए।

सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कोई कैसे अपने पर्सनल लॉ के हिसाब से जिंदगी जीता है, इस पर दूसरों को क्यों आपत्ति होनी चाहिए? दक्षिण भारत की कुछ जातियों में अगर सगी भांजी से शादी जायज मानी जाती है, तो मैं कौन होता हूं उसे नाजायज कहने वाला?

(फोटो : Getty Images)

(लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं , एवं आईबीएन खबर डॉट कॉम इसमें उल्‍लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी आईबीएन खबर डॉट कॉम स्‍वागत करता है । इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है। आप लेख पर अपनी प्रतिक्रिया  blogibnkhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं। ब्‍लॉग पोस्‍ट के साथ अपना संक्षिप्‍त परिचय और फोटो भी भेजें।)

Related Articles

Back to top button