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रंग द्वेष से बचने का त्यौहार है होली…

होली का त्यौहार सामने है। होली यानी रंगों का त्यौहार। रंग तो रंग ही होते हैं। पिचकारी में भरकर रंगों की बौछार करें या सूखी होली खेलें। तिलक होली भी खेली जाती है। होली का मतलब ही होता है रंगों की मस्ती। चुटकी भर रंग से किसी को रंगें या उसे रंगों से सराबोर करें। हर कोशिश का मतलब होता है किसी को रंगना । और उसे यह चुनौती या आमंत्रण देना कि आओ मुझे भी रंग दो। सामाजिक जीवन रंगों का ऐसा ही खेल होता है। होली का त्यौहार रंग डालने और रंग में आने के उल्लास का दूसरा नाम है। सैकड़ों सालों से हम एक-दूसरे पर रंग डालते आ रहे है। उसके बाद रंग धोने की कसरत भी होती है।

रंग द्वेष से बचने का त्यौहार है होली...

रंगों के इस पर्व पर आप भी रंग भी चुनने जा रहे होंगे। प्राय लोग ऐसा रंग तलाश करते हैं कि जिसे हम दूसरे पर डाले तो वह आसानी से न छुड़ा सके। हम यह भी चाहते हैं कि हमें कोई रंग लगाये तो वह ऐसा हो कि सरलता से धुल जाये। लेकिन हमारा डाला रंग चढ़ा ही रहे, उतरे भी तो समय लेकर। रंगों के इस त्यौहार के अवसर पर रंगों की भी चर्चा हो जाये। इन्द्र धुनष के सात रंग सबको अच्छे लगते हैं। साहित्य में नव रंग की चर्चा होती है। हर रंग का अपना अलग अर्थ होता है।

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काला और सफेद, श्वेत और श्याम, ब्लैक एण्ड व्हाईट, जिस भी भाषा में बोलिये, इन दो रंगों की अटूट जोड़ी होती है। एक दूसरे से अलग अर्थ और आकर्षण लिये ये दो रंग परस्पर विरोधी भी हैं और पूरक भी। काले के बिना सफेद का कोई मूल्य नहीं होता और यदि सफेद न हो तो काले की क्या पहचान। साहित्य में और हमारे जीवन में भी काला रंग शायद सबसे ज्यादा छाया हुआ है। कहीं पर यह कृष्ण की पहचान है तो कहीं पर नेत्रों की भाषा। यह काजल बनकर आंखों को संवारता है तो डिठौना – टीका बनकर बुरी नजर से रक्षा भी करता है। बादल पर जब काला रंग छाता है तो अमृत रूपी जल बरसता है।

यही काला रंग विषाद का भी सूचक होता है। जैसा अवसर हो, काला रंग उसके अनुसार रूप और अर्थ बदल कर आता है। आप पसन्द करें या न करें काले रंग से आप नहीं बच सकते। आंखों की काली पुतली से क्या कोई बच सका है। वैसे भी आज जब काला धन (ब्लैक मनी) सोने से भी ज्यादा मूल्यवान हो गया है तब काले रंग से बचने का कोई फायदा नहीं है। काली मिर्च अधिक तीखी होती है और गुणकारी भी। यह भी कहा गया है – काली कमरी पर चढ़े न दूजा रंग (काले कम्बल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता)। हिन्दी फिल्मों का मशहूर गीत है- “काले हैं तो क्या हुआ, दिलवाले हैं।” सचमुच काला रंग दिल वाला होता है।

यह जब कृष्ण रूप में दिखता है, तब नेत्रों को लुभाता है और जब श्री राधा के साथ होता है तो इसका आकर्षण कई गुना हो जाता है। अब यदि आप गौर वर्ण हैं तो काले रंग से रंगें जाने से परहेज मत कीजिये। और यदि आप स्वयं इसी रंग से सुशोभित हैं तो चिन्ता की क्या बात है। किसी दूसरे का डाला रंग आपको परेशान नहीं कर सकता। सफेद रंग की भी अलग शान है। काले और सफेद रंग में सबसे बड़ा अन्तर यही है कि काला रंग किसी को अपने ऊपर चढ़ने नहीं देता। लेकिन सफेद रंग हर दूसरे रंग से समन्वय स्थापित कर सकता है। यदि सफेद रंग पर कोई रंग पड़ जाये तो डरने की बात नहीं है। आपकी सफेदी दूसरे रंग का साथ पाकर अधिक खिल उठेगी। यह कहा जाता है कि सफेद रंग शान्ति का प्रतीक होता है, लेकिन युद्घ भूमि में यदि कोई राजा सफेद ध्वज फहरा दे तो यह उसके समर्पण का सूचक होता था। बालों की सफेदी बुढ़ापा बताती है।

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चमड़े की सफेदी यानी सफेद दाग एक बीमारी होती है तो उसका इलाज भी सफेद वस्त्र पहनने वाले चिकित्सक करते हैं। क्या बिना सफेद कपड़ों के चिकित्सा व्यवसायियों की कल्पना कर सकते हैं। यों सफाई शब्द भी सफेदी से बना है। बहरहाल चिन्ता की बात नहीं है यदि आपको कोई सफेदा लगा दे। सफेदी तो हर उम्र में अच्छी लगती है। यों आमतौर पर लोग सफेद रंग डालना पसन्द नहीं करते। आप चाहें तो उसकी शुरूआत कर दें । हो सकता है कि दूसरे लोग भी आपका अनुसरण करें तो मौसम- बेमौसम कालिख लगाने की प्रवृत्ति कम हो सकती है। सफेद और काले इन दो रंगों के अलावा और भी कई रंग मनमोहक होते हैं। किसी को लाली अच्छी लगती है तो किसी को गुलाबीपन। पर्यावरण प्रेमियों को हरे और नीले रंग भाते हैं। रंग दे बसन्ती की धुन कभी प्रकृति की सुषमा बन कर लुभाती है तो कभी आजादी की लड़ाई की याद दिला कर रोमांचित करती है। सिन्दूर का रंग कभी बुद्घि विनायक श्री गणेश की शोभा बनता है तो कभी महावीर हनुमान इससे प्रसन्न होते हैं। सिन्दूरी रंग भारतीय नारी की शान होता है। यह जहां भी छा जाता है गुलाब के फूल में या किसी की साड़ी में, हमेशा आकर्षक होंता है। भगवा रंग युगों से साधना का प्रतीक रहा है तो हरा रंग प्रकृति का।

नीले रंग को लोग शान्तिदायक मानते हैं साथ ही आसमान की कल्पना भी। स्वास्थवर्धक और दर्द नाशक हल्दी का अपना अलग रंग होता है। कत्थे का रंग जब चूने पर चढ़ता है तो उसकी अलग शान होती है। बिस्कुट और चाकलेट का रंग हर उम्र के लोग पसन्द करते हैं। प्रकृति नें हमें रंग के रूप में अलग- अलग उपहार दिये हैं। रंगें के भी अलग-अलग शेड होते हैं। कोई चटक – शोख रंग का दीवाना होता है तो किसी को हल्के – सौम्य रंग अच्छे लगते हैं। यह पसन्दगी लोगों के मूड, उम्र तथा अवसर के अनुसार भी बदलती रहती है। अपनी नजर चारों ओर घुमाईये। प्रकृति तथा पर्यावरण का कोई न कोई रंग आपको जरूर मोह लेगा। अपना मन पसन्द रंग चुनिये। उसमें स्वयं को रंगिये और दूसरों को भी सराबोर कीजिये। प्रकृति के हर रंग में आपको जीवन मिलेगा। किसी रंग से डरने या चिढ़ने की जरूरत नहीं है। जरूरत है उस रंग की विशेषता पहचानने की और समय के अनुसार उसका उपयोग करने की। यदि आप किसी रंग से चिढ़ने लगेंगे तो यह आपकी भूल होगी। बड़े-बड़े बुद्घिजीवी भी यह गलती करते हैं। किसी को लाल रंग पसन्द नहीं है तो कोई भगवा रंग पसन्द नहीं करता। अनेक लोग काले रंग को अच्छा नहीं मानते तो किसी को हरे रंग से चिढ़ छूटती है।

आप ऐसी परिस्थिति से बचिये। लाल कपड़े को देखकर भड़कने वाले स्पेन के सांड़ और आपके मानसिक स्तर में अन्तर होना चाहिए। अत अपने आप को किसी रंग विशेष के आनन्द से वंचित मत कीजिये। यह भी महसूस कीजिये कि कई बार किसी विशेष समय तथा वातावरण में कोई रंग बहुत अच्छा लगता है। हमारी प्रकृति बहुरंगी- बहु आयामी है। अत होली के अवसर पर प्रकृति के हर रंग का मजा लीजिये।
रंग को लेकर तरह-तरह की कहावतें हैं। यह कहा जाता है कि आदमी गुस्से में लाल पीला हो जाता है। सावन के अंधे को हरा-हरा सूझता है। जहर के कारण शरीर नीला पड़ जाता है। तरह-तरह की कहावतें रंगों को लेकर हैं। लेकिन ये कहावतें इनका एक पक्ष ही प्रस्तुत करती हैं। लाल रंग यौवन और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है।

स्वास्थ्य के लिए लाल अनार, पूजा के लिए लाल चन्दन, श्रंगार के लिए लाल फूल – जीवन के हर क्षण में लाल रंग जरूरी होता है। यही स्थिति हरे रंग की है। सावन के अंधे को हरा-हरा तभी सूझता है जब वह सावन की हरियाली को अपनी आंखों में समेट लेता है। लेकिन आंखों में हरियाली भरने के लिए अंधा होना जरूरी नहीं है। प्रकृति को भरपूर प्रेम कीजिये, पर्यावरण का संरक्षण कीजिये, अपने आस-पास हरियाली बने रहने दीजिये। जीवन सदा हरा-भरा रहेगा।

हरे रंग के झण्डे फहराने की तब आवश्यकता नहीं होगी। वैसे ही जहर पीकर शरीर नीला करने की जरूरत नहीं है। आप इतनी क्षमता अर्जित कीजिए कि दूसरों के हिस्से का जहर पीकर नीलकण्ठ बन जायें लेकिन यह विष न तो आपके मुख में रहे और न ही कण्ठ से नीचे उतर कर उदर तक पहुँचे। आप शिव के समान योगी सिद्घ होंगे। प्रकृति के हरे रंग को अपने जीवन में उतारिये। हर रंग से अपने तन-मन का श्रंगार कीजिये। होली के पावन पर्व पर रंग द्वेष से बचिये और प्रकृति तथा जीवन के हर रंग को प्यार कीजिये। होली में ही नहीं , जीवन भर आपको हर रंग में आनन्द मिलेगा।

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