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राजकुमार राव के पिता ने मेदांता में ली अंतिम सांस…

फिल्म अभिनेता राजकुमार राव (Rajkummar Rao) के प्रशंसकों के लिए दुखद खबर है। राजकुमार राव के पिता सतपाल यादव का निधन हो गया। सतपाल यादव बीते कुछ वक्त से बीमार चल रहे थे। गुरुग्राम में गुरुवार देर रात मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। जानकारी के मुताबिक गुरुग्राम में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

राजकुमार राव (Rajkummar Rao) का हिंदी सिनेमाजगत में अभिनय का लोहा माना जाता है। राजकुमार ने अलीगढ़, बरेली की बर्फी, स्त्री, न्यूटन, मेरी शादी में जरूर आना, ओमेर्टा जैसी कई फिल्मों में काम किया है। अभिनेता राजकुमार का जन्म दिल्ली से सटे गुरुग्राम के एक छोटे से गांव में हुआ था। उन्होंने ग्रैजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी से किया है।

अभिनय के लिए राजकुमार राव का रुझान बचपन से ही था। पहली बार उन्होंने अभिनय का जलवा तब दिखाया जब वह 10वीं कक्षा में पढ़ते थे। राजकुमार ने स्टेज पर परफॉर्म किया था। उसके बाद राजकुमार की अभिनय के प्रति दीवानगी बढ़ती गई। सिर्फ थियेटर करने के लिए राजकुमार अपने कॉलेज के दिनों में साइकिल चलाकर गुरुग्राम से दिल्ली जाते थे। उस दौरान राजकुमार राव क्षितिज रिपर्टरी और श्रीराम सेंटर दिल्ली के साथ थियेटर करते थे। उनकी ग्रैजुएशन की पढ़ाई भी डीयू के आत्माराम सनातन धर्म कॉलेज से की है।

अपने अभिनय के दम पर राजकुमार राव ने न केवल बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई बल्कि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी अपने नाम किया है। राजकुमार राव को सिनेमाजगत में पहला ब्रेक बतौर अभिनेता ‘लव सेक्स और धोखा’ से मिला था। इसके बाद ‘रागिनी एमएमएस’ फिल्म में नजर आए। हालांकि पहचान ‘काय पो छे’ से मिली। फिल्मी करियर के शुरुआत में जब राजकुमार को सफलता नहीं मिली, तो उन्होंने अपनी मां के कहने पर अपने नाम की स्पेलिंग बदल दी और Rajkumar Rao की जगह Rajkummar Rao लिखने लगे।

राजकुमार राव अभिनय के बारे में कहा जाता है कि वह किसी भी किरदार में जान फूंक देते हैं। राजकुमार की ‘न्यूटन’ हो या फिर ‘अलीगढ़’ हर फिल्म में उनका अंदाज जुदा देखने को मिला है। राजकुमार राव ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो मुंबई काम की तलाश में आए थे तो उन्हें मुंबई में छोटे-मोटे विज्ञापन मिल जाते थे। उन विज्ञापनों में वो 10वें नंबर पर खड़े रहते थे। राजकुमार राव ने बताया था- ‘तकरीबन 10000 रुपए महीना कमा लेता था लेकिन फिर भी कई दिन ऐसे थे जब मेरे पास कुछ नहीं होता था और मुझे अपने दोस्त को फोन कर खाने का जुगाड़ करना पड़ता था।’

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