रायपुर : राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी रश्मि दीदी ने कहा कि राजयोग से मन को असीम शान्ति की अनुभूति होती है। राजयोग के माध्यम से जब मन को श्रेष्ठ और सकारात्मक चिन्तन में स्थिर करते हैं तो वह संकल्प तरंगों की तरह वातावरण में फैलते हैं। इससे वायुमण्डल भी शान्त हो जाता है। ब्रह्माकुमारी रश्मि दीदी आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा विश्व शान्ति भवन चौबे कालोनी रायपुर में आयोजित राजयोग अनुभूति शिविर के अन्तर्गत राजयोग का आधार और विधि विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रही थीं। उन्होंने कहा कि राजयोग का अभ्यास करने के लिए साधक, साध्य और साधना इन तीन बातों का परिचय होना जरूरी है। साधक अर्थात मैं कौन? निज स्वरूप का परिचय होना चाहिए। फिर साध्य अर्थात परमात्मा का यथार्थ परिचय होना आवश्यक है। उसके बाद साधना अर्थात राजयोग पद्घति का भी पूर्ण ज्ञान होना जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि कई मनुष्य योग को कठिन समझते हैं। वे अनेक प्रकार की हठ क्रियाएं, तप अथवा प्राणायाम करते रहते हैं। लेकिन वास्तव में राजयोग मेडिटेशन अत्यन्त सहज है। जैसे एक बच्चे को अपने देहधारी पिता की सहज और स्वत: याद रहती है वैसे ही आत्मा को अपने पिता परमात्मा की याद स्वत: और सहज होनी चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं कि हमारा मन परमात्मा की याद में नहीं टिकता। इसका एक कारण तो यह है कि वे आत्म निश्चय में स्थित नहीं होते। आप सब जानते हैं कि जब बिजली के दो तारों को आपस में जोड़ते हैं तो उनके उपर की रबड़ को हटाना पड़ता है। उसके बाद ही उसमें करेन्ट आता है। ब्रह्माकुमारी रश्मि दीदी ने बतलाया कि योग शब्द यूज धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है जोड़ अथवा मिलन। राजयोग को सर्वश्रेष्ठ योग इसीलिए माना गया है क्योंकि इसमें ज्ञान के सागर, आनन्द के सागर, प्रेम के सागर, सर्वशक्तिवान, पतितपावन परमात्मा शिव के साथ परमात्मा से हम आत्माओं का मिलन होता है। ताकि आत्मा को भी शान्ति, आनन्द, प्रेम और पवित्रता, शक्ति और दिव्यगुणों की शक्ति और दिव्यगुणों की प्राप्ति हो सके। योग का उद्देश्य मन को शुद्घ करना, दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना, सदा प्रसन्न और हर्षयुक्त बनाना है।