राजस्थान कांग्रेस : तो क्या अब पुराने पत्तों को झाड़ा जाएगा?
जगमोहन ठाकन
फरवरी का महीना वसंत के आगमन का प्रतीक होता है। सर्दी की ठिठुरन की समाप्ति का द्योतक यह माह नई कोपलों के प्रस्फुटन की भूमि तैयार करता है, तो क्या वर्ष 2016 के फरवरी माह को राजस्थान कांग्रेस पार्टी के पुराने पत्तों के टूटने व नई कोंपलों के प्रस्फुटन की शुरुआत का समय मान लिया जाए ? अगर हाल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह के बयान को देखें, तो राजस्थान कांग्रेस के पुराने पत्तों के झड़ने का स्पष्ट संकेत दृष्टिगोचर हो रहा है। फरवरी के प्रथम सप्ताह में जयपुर आए दिग्गी राजा ने जयपुर के पारीक कॉलेज में एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद मीडिया के सामने कहा कि प्रकृति का नियम है कि जब पुराने पत्ते टूट जाते हैं तो नई कोंपलें आती हैं। दिग्गी ने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस हमेशा युवाओं को मौका देती आई है। जब उनसे पूछा गया कि क्या यह संकेत भूतपूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ तो नहीं है? बड़े ही चातुर्य से दिग्गी ने जवाब दिया कि यह संदेश तो सभी के लिए है।
वर्ष 2013 विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद राजस्थान कांग्रेस में नए चेहरे के रूप में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को राहुल गांधी की विश्वसनीय टीम का सदस्य होने के फलस्वरूप ही प्रदेश की बागडोर सौंपी गई थी। हालांकि पायलट का जनाधार या राजनैतिक पकड़ कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री एवं बैकवर्ड समाज में अपना खासा प्रभाव रखने वाले अशोक गहलोत के मुकाबले कहीं भी नहीं ठहरती है, परंतु कांग्रेस का इतिहास रहा है कि गांधी (नेहरू) परिवार के अलावा जिस किसी ने भी अपनी जड़ें जमाने की कोशिश की है, उसे ही उखाड़कर जड़ें दिखा दी जाती हैं और उसके लिए सांप छछूंदर वाली गति के हालात पैदा कर दिये जाते हैं। इस परिस्थिति में वह पार्टी छोड़ने व न छोड़ने की असमंजस पूर्ण स्थिति के मकड़जाल में उलझे कीट की तरह छटपटाता रहता है।
राजनीतिक विचारकों का मत है कि भले ही अशोक गहलोत ऊपरी तौर पर गांधी परिवार के पक्ष में भाजपा सरकार पर कितने ही प्रहार कर रहें हों, परंतु आंतरिक तौर पर गहलोत को पुराने पत्तों के झड़ने का एहसास हो गया है और इसी कश्मकश की परिस्थिति से जूझने के लिए वे भी राजनैतिक व सामाजिक दौरों तथा कार्यक्रमों में अपनी सक्रियता बढ़ाने में लग गए हैं, ताकि किसी भी समय अवांछित घोषित किए जाने से पहले ही अपनी पार्टी से अलग पहचान व पकड़ बनाई जा सके। पर शायद गहलोत यह भूल रहे हैं कि कांग्रेस का मतलब गांधी (नेहरू) परिवार के नेतृत्व के सिवाय कुछ भी नहीं है। गांधी परिवार ने जिसे एक बार झटक दिया वो दोबारा नहीं उबर पाया। कांग्रेस की पुरोधा इन्दिरा गांधी की भी यही नीति रही है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में कभी राजनीति के पीएचडी कहलाने वाले भूतपूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल और हरियाणा के विकास पुरुष के नाम से प्रसिद्ध पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल जैसे ही कांग्रेस में अपने दम पर टेढ़े मेढ़े पैर रखने लगे, कांग्रेस की जहाज से उन्हे झटक दिया गया या झटकने को मजबूर कर दिया गया। आज उनके उत्तराधिकारी अपने गृहनगरों तक ही सिमट कर रह गए हैं तथा अपनी पारंपरिक सीट कायम रखने में ही कश्मकश हो रही है।
यही स्थिति राजस्थान में भी प्रस्फुटित होती नजर आ रही है। अशोक गहलोत को किनारे लगाने की कवायद प्रदेश कांग्रेस के गठन में भी स्पष्ट झलक रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव तथा पार्टी के राजस्थान प्रभारी गुरुदास कामत ने दिग्विजय सिंह के राजस्थान दौरे के अगले ही हफ्ते राजस्थान प्रदेश कार्यकारिणी में कुछ नए पदाधिकारियों की नियुक्ति कर पुराने पत्तों को झाडे़ जाने की पुष्टि कर दी है। प्रदेश कांग्रेस में तीन वरिष्ठ उप प्रधान, आठ उप प्रधान, नौ महासचिव तथा बाइस सचिव शामिल किए गए हैं। परंतु राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस सूची में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के समर्थकों को ही तवज्जो दी गई है। इसके साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी, गिरिजा व्यास तथा सचिन पायलट की तिगड़ी बनाने की कोशिश भी की गई है। इस नए समीकरण से भी गहलोत की उपेक्षा परिलक्षित होती है। पूर्व मुख्यमंत्री के समर्थकों को महत्वहीन कर देने से गहलोत के समर्थकों में कुंठा एवं निराशा पनपना सुनिश्चित है। इस उपेक्षा का एक प्रमुख कारण गत विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में राजस्थान में कांग्रेस की करारी हार के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत की कार्यशैली को माना जा रहा है। चुनाव विश्लेषक भी मानते हैं कि गहलोत द्वारा अपना अलग वोट बैंक बनाने के चक्कर में गुर्जरों और जाटों को साइड लाइन करना भी खुद गहलोत को साइड लाइन करवाने में प्रमुख कारक रहा है।
जाटों में गहलोत की किनाराकाट राजनीति का काफी विरोध पनप गया था और यह भी एक कारण रहा कि गत चुनावों में जाट भाजपा के खेमे में जुड़ गए थे। अब कांग्रेस जाटों को पुन: अपने संग जोड़ने का प्रयास कर रही है। सचिन पायलट को राजस्थान इकाई का अध्यक्ष बना कर गुज्जरों को महत्व दिया गया, वहीं अब नए सिरे से जाटों को भी लुभाने का प्रयास प्रारम्भ हो गया है। वर्तमान प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी में भी अठारह जाटों को अवसर दिया गया है। खुद सचिन पायलट ने तेरह फरवरी को ओ बी सी में जाट आरक्षण की मांग को लेकर भरतपुर के लोहागढ़ स्टेडियम में आयोजित हुंकार सभा में भारी संख्या में आए जाट समुदाय की मौजूदगी में कहा कि विधान सभा के पहले सत्र में ही कांग्रेस पार्टी भरतपुर धौलपुर के जाट आरक्षण मामले को उठाएगी। पायलट ने आश्वासन दिया कि कांग्रेस पार्टी जाट समुदाय के साथ पूरी तरह खड़ी है। उल्लेखनीय है कि भरतपुर तथा धौलपुर जिलों को छोड़कर शेष सारे राजस्थान के जाटों को आरक्षण का लाभ मिला हुआ है। अब हरियाणा में हो रहे उग्र जाट आंदोलन को देख कर इन दोनों जिलों के जाटों ने भी आंदोलन का रास्ता अपना लिया है। अगर समय रहते इनकी मांग को नहीं स्वीकारा गया तो यहां भी विकट स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
वैसे तो समय और परिस्थितियां किसी भी मोड़ पर करवट ले जाते हैं, परंतु वर्तमान परिस्थितियां पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए विपरीत हवा की तरह चलती दिखाई दे रही हैं। यह हवा आंधी बनकर गहलोत को पुराने पड़ चुके पत्तों की तरह कांग्रेस के पेड़ की साख से विलग कर देगी या मात्र मंद बयार बनकर केवल छनछनाहट ही पैदा करेगी, यह तो समय के गर्भ में ही छिपा है। हां, इतना अवश्य है कि स्वयं गहलोत भी यह समझ चुके हैं कि सब दिन होत न एक समान।=