राजस्थान में शराब बंदी ही नहीं नशाबंदी हो : मेधा पाटकर
सामाजिक कार्यकर्ता एवं नर्मदा आन्दोलन की प्रणेता मेधा पाटकर ने कहा कि राजस्थान में शराबबंदी ही नहीं बल्कि पूर्ण नशाबंदी होनी चाहिए। संविधान की धारा 47 के अनुसार राज्य की जिमेदारी बनती है कि वह लोगों के स्वास्थ्य को अपरिहार्य चीजों से बचाए।
अलवर के थानागाजी पहुंची पाटकर ने अलवर रेलवे स्टेशन पर ‘पत्रिका’ से बातचीत में कहा कि शराब आने वाली पीढ़ी को बर्बाद कर रही है और सरकार का ध्यान सिर्फ राजस्व जुटाने पर है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में स्त्री अत्याचार भी शराब के कारण हो रहा है। यह कई मामलों में सामने आ रहा है। शराब का आन्दोलन महाराष्ट्र, चेन्नई, तमिलनाडु, उडीसा आदि में भी फैला। केरल में बार बंद करने को लेकर आन्दोलन चला। उन्होंने कहा कि शराब बंदी को लेकर आन्दोलन पूरे जोर से चले तो किसी सरकार की हिमत नहीं है कि कुछ हजार करोड़ के लिए वह लोगों की जिन्दगी को दांव पर लगाए।
जोड़ी जाएं नदियां
पाटकर ने राजस्थान में पेयजल की समस्या पर कहा कि पानी के लिए नदियों को जोडऩे का कार्य होना चाहिए। बड़ी नदियों को छोड़कर हर छोटी नदियों के कैचमेंट में कार्य होना चाहिए। हकीकत में हो यह रहा है कि सरकार इंडस्ट्रीज को तो पानी दे रही है लेकिन लोगों की प्यास बुझाने व खेती के लिए इंतजाम नहीं हो रहे। उन्होंने सरकार के एनजीओ पर शिकंजा कसने के सवाल पर कहा कि एनजीओ पर शिकंजा राजनीतिक साजिश है।
संवाद से हो निपटारा
पाटकर ने कन्हैया मामले पर कहा कि स्लोगन लगाना राष्ट्रद्रोह नहीं है। फांसी की सजा पर चर्चा करना राष्ट्रद्रोह नहीं है। सरकार गरीब व किसानों से जमीन छीनकर कपनियों को देती है, यह राष्ट्रद्रोह है। राजस्थान के कुछ विधायकों ने विवाद को हवा देने के लिए जो आरोप लगाए, वे निराधार हैं। उन्होंने कहा कि वे जेएनयू के विद्यार्थियों को जानती हैं। वे राष्ट्र के मुद्दों पर चिंतित विद्यार्थी हैं। फिर भी कोई विवाद उठा है तो उसका संवाद के साथ निपटारा होना चाहिए।