देहरादून: जलवायु परिवर्तन के साथ ही लगातार अनियंत्रित दोहन के कारण खतरे की जद मे आए उत्तराखंड के राज्यपुष्प ब्रह्मकमल को अब नर्सरी का सुरक्षा कवच मिलने जा रहा है। वन विभाग के अनुसंधान वृत्त ने पहली बार उच्च हिमालयी क्षेत्र की इस मिल्कियत समेत बुग्यालो मे पाई जाने वाली धार्मिक और औषधीय महत्व की दुर्लभ 15 पादप प्रजातियों की नर्सरी तैयार करने का निर्णय लिया है।
उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ और देहरादून जिलो के 2700 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर इसके लिए स्थलो का चयन भी कर लिया गया है और कोशिशे रंग लाई तो जल्द ही नर्सरियों मे ब्रह्मकमल खिलने लगेगा। उत्तराखंड मे ट्री लाइन खत्म होने के बाद शुरु होती है जैव विविधता से लबरेज मखमली बुग्यालो की श्रृंखला, जो जड़ी -बूटियो का विपुल भंडार है। इन्ही मे ब्रह्मकमल भी शामिल है। धार्मिक और औषधीय महत्व के ब्रह्मकमल का पुष्प आकर्षित तो करता है। इसकी जड़ें असाध्य रोगो के उपचार मे भी काम आती है।
सूरतेहाल अत्यधिक दोहन की वजह से राज्यपुष्प के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है। बीज बनने से पहले ही फूल तोड़ दिए जाने से यह प्राकृतिक रूप से नही उग पा रहा है। इस सबको देखते हुए वन अनुसंधान वृला के वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने तीन हजार मीटर की ऊंचाई तक पाए जाने वाले ब्रह्मकमल समेत अन्य औषधीय प्रजातियो के संरक्षण-संवर्द्धन की कार्ययोजना तैयार की। यह पहला मौका है, जब वन विभाग इस तरह की पहल कर रहा है। अब तक विभागीय वन अनुसंधान के कार्य ट्री लाइन से नीचे-नीचे तक के क्षेत्रो तक ही सीमित थे।
आइएफएस चतुर्वेदी के मुताबिक योजना के तहत उत्तरकाशी जिले मे गंगोत्री व टकनौर, देहरादून मे कनासर रेज, चमोली मे बदरीनाथ और पिथौरागढ़ मे मुनस्यारी मे ब्रह्मकमल समेत 15 प्रजातियो के धार्मिक व औषधीय महत्व के पौधो की नर्सरी तैयार की जा रही है। ये सभी वे पौधे है, जो उच्च हिमालयी क्षेत्र मे पाए जाते है। पहली बार विभागीय नर्सरियो मे इन प्रजातियो के पौधे पुष्पित-पल्लवित होगे। उन्होने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण-संवर्द्धन की दिशा मे यह पहल मील का पत्थर साबित होगी।
इन प्रजातियो की होगी नर्सरी
ब्रह्मकमल, हत्थाजोड़ी, हिमालयन ब्ल्यू पॉपी, सफेद बुरांश, चौरा, गोल्डन फर्न, वन तुलसी, गूगल, विषकनेरा, चौरा, जैथ्रो, साइजियम, सेमरू, डोनू, सुसरिया कुलाटा।