राफेल डील पर सत्ता और विपक्ष के बीच सवाल-जवाब का सिलसिला शुक्रवार को लोकसभा में जारी रहा. जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार से राफेल डील पर कुछ सवालों का जवाब देने के लिए कहा, वहीं रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने ज्यादातर सवालों का जवाब देते हुए कई ऐसे सवाल उठाए जिससे कांग्रेस को असहज होते देखा गया. हालांकि रक्षा मंत्री के जवाब के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष दावा करते पाए गए कि उन्हें उनके सवालों का स्पष्ट जवाब नहीं मिला. लेकिन बहस के दौरान रक्षा मंत्री द्वारा उठाए गए इन मुद्दों पर कांग्रेस अपना रुख स्पष्ट करने की कवायद करेगी.
रक्षा मंत्री ने कहा कि 2001 के बाद भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान में वायुसेना को मजबूत करने की कवायद जोरों में चल रही थी. इसके चलते 2002 में यह फैसला हुआ कि भारत को भी चीन और पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए जल्द से जल्द वायुसेना की जरूरतों को पूरा करना चाहिए. लेकिन इसके बाद 2014 तक केन्द्र में आसीन रही यूपीए की कांग्रेस सरकार ने लड़ाकू विमान खरीद की ऐसी प्रक्रिया शुरू की जो उनके कार्यकाल में पूरी नहीं हुई. नतीजा यह रहा कि 10 साल के कार्यकाल के बाद भी ऐसे संवेदनशील मामले में भी कांग्रेस सरकार लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला नहीं कर सकी. रक्षा मंत्री ने सवाल किया कि आखिर क्या वजह थी कि इस 10 साल के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार वायुसेना की जरूरत के मुताबिक लड़ाकू विमान नहीं खरीद पाई?
निर्मला का दूसरा सवाल
राफेल डील में शामिल ऑफसेट क्लॉज पर राहुल गांधी के सवाल कि आखिर क्यों सरकारी कंपनी एचएएल को दरकिनार कर नरेन्द्र मोदी सरकार ने अनिल अंबानी को शामिल करने का फैसला किया, पर रक्षा मंत्री ने कहा कि कांग्रेस एचएएल को लेकर घड़ियाली आंसू बहाने का काम कर रही है. निर्मला सीतारमण ने सदन में कहा कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में राफेल उत्पादक कंपनी दसॉ ने एचएएल द्वारा निर्मित किए जाने वाले राफेल विमान की गारंटी लेने से मना कर दिया. यह मामला एनडीए सरकार द्वारा शुरू की गई राफेल डील में छाया रहा और दसॉ अपनी बात पर अडिग थी क्योंकि उसके मुताबिक एचएएल के हाथों राफेल विमान निर्माण कार्य में कंपनी को ढाई गुना अधिक समय लगता. लिहाजा निजी कंपनी को ऑफसेट क्लॉज में लाना बेहद जरूरी था. वहीं कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में संसद की स्थायी समिति ने इस बात को स्पष्ट कहा कि एचएएल बैसाखी पर चलने वाली कंपनी है और उससे इस स्तर के निर्माण की अपेक्षा रखना गलत होगा. लिहाजा, निर्मला ने सवाल किया कि अब क्यों कांग्रेस एचएएल पर घड़ियालू आंसू बहाने का काम कर रही है?
निर्मला का तीसरा सवाल
रक्षा मंत्री ने सदन को बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष के फ्रांस दौरे से पहले केन्द्र सरकार की तरफ से फ्रांस जाने वाले दल को साफ कहा गया कि वह फ्रांस सरकार से किसी द्विपक्षीय मुद्दों पर वार्ता नहीं करेगी. द्विपक्षीय संबंधों में प्रोटोल के मुताबिक दो देशों के बीच किसी अहम मुद्दे पर चर्चा महज सरकार और सरकार के बीच की जाती है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने क्यों फ्रांस के राष्ट्रपति से राफेल सौदे पर वार्ता की? क्या विपक्ष की पार्टी द्वारा देश के द्विपक्षीय रिश्तों में ऐसा दखल उचित है?
निर्मला का चौथा सवाल
रक्षा मंत्री ने कहा कि पूर्व की यूपीए सरकार राफेल सौदे में दसॉ से सिर्फ 18 लड़ाकू विमान खरीदने के मसौदे पर काम कर रही थी और बचे हुए 108 विमानों का निर्माण वह एचएएल के जरिए कराना चाह रही थी. लेकिन यूपीए सौदे की सच्चाई ये है कि तत्कालीन सरकार ने न तो फ्रांस सरकार और न ही राफेल निर्माता दसॉ के साथ एचएएल में निर्माण का कोई एग्रीमेंट किया. यदि कांग्रेस सरकार एचएएल को इस डील में ला रही थी तो क्यों उसने फ्रांस अथवा दसॉ के साथ कोई समझौता नहीं किया?
निर्मला का पांचवां सवाल
लोकसभा में निर्मला सीतारमण ने पूछा कि क्या कांग्रेस की यूपीए सरकार अपने कार्यकाल के दौरान वाकई फ्रांस के साथ रक्षा सौदा करना चाहती थी? निर्मला ने बताया कि यूपीए कार्यकाल के दौरान राफेल सौदे को केन्द्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद यूपीए ने ही वित्त मंत्रालय के जरिए इस डील पर सवाल खड़ा करते हुए एक्सपर्ट समिति से जांच कराई. इस समिति ने भी जब डील के पक्ष में अपनी मंजूरी दे दी, यूपीए सरकार ने फ्रांस के साथ करार से पीछे हट गई. आखिर कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार को इस डील में किस चीज की कमी खल रही थी? रक्षामंत्री ने कहा कि इस डील को अटकाने के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री (पी चिदंबरम) ने 6 फरवरी 2014 को सदन में कहा कि ‘वेयर इज द मनी’ (पैसा कहां है). लिहाजा, क्या कांग्रेस सरकार बिना खजाने से पैसे का प्रावधान किए फ्रांस के साथ करार कर रही थी या फिर वित्त मंत्री किसी और किस्म के पैसे पर सदन में प्रतिक्रिया दे रहे थे. निर्मला ने पूछा कि क्या कांग्रेस सरकार को इस डील में किक-बैक (कमीशन) नहीं दिखाई देने के चलते डील करने में रुचि नहीं थी?