लखनऊ: 1858 में ही लिखी जा चुकी थी इबारत, फिरंगी महल में ठहरे महात्मा गांधी: जाने इतिहास
लखनऊ : असहयोग आंदोलन भले ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अगुवाई में परवान चढ़ा हो, लेकिन राजधानी के फिरंगी महल में इस आंदोलन की इबारत1858 में ही लिखी जा चुकी थी। फिरंगी महल के मौलाना अब्दुर्रज्जाक फिरंगी महली ने अंग्रेजी उत्पादों के बहिष्कार का एलान कर असहयोग आंदोलन की नींव डाल दी थी। वहीं देश की आजादी की पहली जंग 1857 में हिंदुस्तानियों की शिकस्त के बाद 21 मार्च 1858 में अंग्रेज जनरल सर काल्विन कैम्पवेल की फौज “लखनऊ” में दाखिल हुई, तो उसने अकबरी दरवाजे से लेकर दिलकुशा तक पूरा शहर खुदवा दिया था। उसी समय उसके मलबे से सड़क बनाई गई।
यहां तक कि कैसरबाग बारादरी भी खुदवा दी गई थी| 1858 की गदर में हिंदुस्तानियों को हुए जानमाल के नुकसान और उसके बाद अंग्रेज अफसरों के बर्ताव से व्यथित होकर, मौलाना ने फिरंगी महल स्थित अपने घर के दालान से असहयोग आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की बनाई चीनी, इंक, कागज, कपड़े, अंग्रेजी बूट यहां तक कि रेल यात्रा के बहिष्कार का एलान कर दिया था। 1857 की गदर पर आधारित पुस्तक, “गर्दिशे रंगे चमन” में लेखक कुर्रतुल ऐन हैदर लिखते हैं, कि फिरंगी महल के मुख्य उलेमा में शामिल मौलाना अब्दुर्रज्जाक फिरंगी महली सूफी संत भी थे। लिहाजा उन्होंने देश भर में फैले हजारों मुरीद और शार्गिदों को भी अंग्रेजी उत्पादों का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था। उन्होंने अपने संदेश में कहा, कि अगर कोई मुरीद अंग्रेजी बूट पहन कर मेरे पास आएगा तो उस बूट की नोक मेरे सीने में गड़ेगी। वहीं अंग्रेजी उत्पादों के बहिष्कार से घबराए तत्कालीन चीफ कमिश्नर ऑफ अवध ने अपना दूत भेजकर मौलाना फिरंगी महली से मुलाकात की इच्छा जताई। मौलाना के खानदान से ताल्लुक रखने वाले “अदनान अब्दुल” वाली ने पुस्तक द “खिलाफत मूवमेंट और द सप्रेटिज्म अमंग इंडियन मुस्लिम्स” का हवाला देते हुए कहा, कि मौलाना ने कमिश्नर से मिलने से इंकार कर दिया। कहा, बगैर मेरी मर्जी के कमिश्नर मेरे घर आया तो मैं अपने तबर से उसका सिर तोड़ दूंगा। राजधानी के रिफाह-ए-आम क्लब मैदान में 15 अक्तूबर 1920 को जलसे में शामिल होने के लिए जब महात्मा गांधी लखनऊ आये तो, वे मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली से मिलने उनके आवास गए| और वहां ठहरे, महात्मा गांधी ने जलसे में भाषण के दौरान इसका जिक्र भी किया।