लेकिन मुनव्वर से अभी मुकम्मल जवाब की तलाश
दस्तक टाइम्स/एजेंसी- लखनऊ, 19 अक्टूबर. नामवर शायर मुनव्वर राना एबीपी न्यूज़ के लाइव शो के दौरान साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने के बाद से सोशल मीडिया ही नहीं समाचार चैनलों की भी सुर्खियाँ बन गए हैं. मां पर लिखे अपने शेरों से पूरी दुनिया में नाम पाने वाले मुनव्वर फिलहाल समाचार चैनलों पर लगातार लाईव नमूदार हो रहे हैं. लेकिन सिर्फ चार दिन के भीतर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के मुद्दे पर यूटर्न लेने वाले इस मशहूर शायर ने अभी कोई मुकम्मल जवाब नहीं दिया है. अब उन्होंने कहा है कि यदि प्रधानमंत्री साम्प्रदायिक माहौल ठीक करने का वादा करें तो सम्मान वापस भी ले सकता हूँ. मुनव्वर राना ने रविवार को एबीपी न्यूज़ के लाइव शो में देश में साम्प्रदायिक हालात के मद्देनज़र सम्मान लौटाते हुए कहा था कि मौजूदा सरकार अगर मुल्क में सभी मज़हब के लोगों को मिलजुलकर रहने का माहौल भी नहीं दे सकती तो फिर सरकारी सम्मान का कोई औचित्य नहीं है.
मुनव्वर राना सोमवार को न्यूज़ चैनल आज तक और इंडिया न्यूज़ पर हुई डिबेट में कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के साम्प्रदायिक माहौल को ठीक करने का वादा करते हुए साहित्य अकादमी अवार्ड देंगे तो उसे वापस भी ले सकता हूँ. उन्होंने कहा कि मोदी के पास मेरे जैसा सलाहकार होता तो अख़लाक़ की मौत के फ़ौरन बाद उन्हें साथ में लेकर मरहूम के घर चला जाता और तब हालात इतने नहीं बिगड़ते. दरअसल मुन्नवर राना पर उठ रहे ताजा सवालों की शुरुआत पांच रोज़ पहले ईटीवी पर सीनियर एडिटर ब्रजेश मिश्रा के चर्चित शो “प्राइम डिबेट” से हुयी जहाँ उन्होंने साहित्य अकादमी सम्मान वापस करने वाले साहित्यकारों को थका हुआ बताया था. इस लाईव शो में मुनव्वर ने सम्मान वापस करने वाले साहित्यकारों के बारे में कहा था कि उन्हें अपनी कलम पर भरोसा नहीं है.
मोदी की आलोचना से घिर गए मुनव्वर
केन्द्र की मोदी सरकार की आलोचना करने की वजह से सोशल मीडिया पर वह लोग भी सक्रिय हो गए हैं जो हर तरह के हालात को जस्टीफाई कर देते हैं. सोशल मीडिया पर मुनव्वर राना द्वारा कभी सोनिया गांधी की तारीफ में लिखी गई एक नज्म वायरल हो गई है. इस नज्म को लेकर मुनव्वर राना पर एक बार फिर कांग्रेस सरकार का दरबारी शायर होने की बात कही जाने लगी है.
हाँ, मैंने लिखी सोनिया पर नज्म
इस तरह के इल्जामों पर मुनव्वर राना का कहना है कि मुझे जिस किताब पर साहित्य अकादमी अवार्ड मिला उसमें मैंने सिन्धु नदी पर भी कविता लिखी थी और अगर सोनिया गांधी पर नज्म लिखी थी. हम लुका छिपी का खेल तो करते नहीं हैं. किसी पार्टी से चंदा लाते नहीं है, कोई एनजीओ चलाते नहीं हैं. कोई दुकान हमारी है नहीं. फिर सोनिया गांधी पर लिखने की वजह से मुझे किसी पार्टी का करीबी कैसे कहा जा सकता है. अगर मुझे किसी सियासी पार्टी का करीबी माना जाता है तो यह मेरे लिए गाली की तरह है.
यह समर्पण नहीं, विरोध है
मुनव्वर राना ने कहा कि साहित्य अकादमी अवार्ड वापस करना समर्पण नहीं, मुल्क के हालात खराब करने वालों के खिलाफ विरोध है. उन्होंने कहा कि मुझे तो वैसा हिन्दुस्तान चाहिए है जैसा मेरी पैदाइश के वक्त था. मुनव्वर राना ने कहा कि मैं मरूँगा तो यहीं दफन होऊंगा. मेरी मिट्टी भी कराची नहीं जाने वाली है. जब यहीं रहना है तो हर वक्त नकारत्मक माहौल क्यों झेलूं.
सम्मान की राशि सम्मानजनक हो
मुनव्वर राना ने सम्मान की राशि पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि एक लाख रुपये में कोई अपनी बेटी की शादी नहीं कर सकता. अपनी पत्नी का इलाज नहीं करा सकता. तो क्या एक लाख रूपये का पुरस्कार साहित्यकारों का अपमान नहीं है. उन्होंने अकादमी पुरस्कार की राशि को कम से कम पच्चीस लाख किये जाने की ज़रूरत जताई ताकि जिस साहित्यकार को यह सम्मान मिले वह अपने कुछ काम तो निबटा ले.
अनपढ़ था अकबर इसलिए नौरत्न रखता था
मुनव्वर राना ने कहा कि अकबर ज्यादा पढ़ा-लिखा आदमी नहीं था लेकिन हुकूमत चलाने के लिए उसके पास नौ रत्न थे. वही नौ रत्न उसे हुकूमत करने का तरीका बताते थे. उन्होंने कहा कि अगर मैं मोदी का पीए होता तो मोदी को अख़लाक़ के घर लेकर पहुँच गया होता. एक बार प्रधानमंत्री वहां जाते तो मुल्क के साम्प्रदायिक हालात इतने खराब नहीं होते.
संघ विचारक राकेश सिन्हा ने लाइव डिबेट में मुनव्वर राना से अकादमी अवार्ड वापस लेने की अपील कि तो उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री मुल्क के हालात ठीक करने का वादा करते हुए उन्हें सम्मान लौटायेंगे तो सम्मान वापस भी ले सकता हूँ.
मुनव्वर राना ने ये कविता सोनिया गांधी के लिए लिखी थी
रुख़सती होते ही मां-बाप का घर भूल गयी.
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी.
घर को जाती हुई हर राहगुज़र भूल गयी,
मैं वो चिडि़या हूं कि जो अपना शज़र भूल गयी.
मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी.
नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना,
जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना.
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,
मुझसे गिरजी भी लिया, मुझसे शिवाला छीना.
अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती,
मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती.
आग नफ़रत की भला मुझको जलाने से रही,
छोड़कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही,
ये सियासत मुझे इस घर से भगान से रही.
उठके इस मिट्टी से, ये मिट्टी भी तो जाने से रही.
सब मेरे बाग के बुलबुल की तरह लगते हैं,
सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं.
अपने घर में ये बहुत देर कहां रहती है,
घर वही होता है औरत जहां रहती है.
कब किसी घर में सियासत की दुकान रहती है,
मेरे दरवाज़े पर लिख दो यहां मां रहती है.
हीरे-मोती के मकानों में नहीं जाती है,
मां कभी छोड़कर बच्चों को कहां जाती है?
हर दुःखी दिल से मुहब्बत है बहू का जिम्मा,
हर बड़े-बूढ़े से मोहब्बत है बहू का जिम्मा
अपने मंदिर में इबादत है बहू का जिम्मा.
मैं जिस देश आयी थी वही याद रहा,
हो के बेवा भी मुझे अपना पति याद रहा.
मेरे चेहरे की शराफ़त में यहां की मिट्टी,
मेरे आंखों की लज़ाजत में यहां की मिट्टी.
टूटी-फूटी सी इक औरत में यहां की मिट्टी.
कोख में रखके ये मिट्टी इसे धनवान किया,
मैंन प्रियंका और राहुल को भी इंसान किया.
सिख हैं, हिन्दू हैं मुलसमान हैं, ईसाई भी हैं,
ये पड़ोसी भी हमारे हैं, यही भाई भी हैं.
यही पछुवा की हवा भी है, यही पुरवाई भी है,
यहां का पानी भी है, पानी पर जमीं काई भी है.
भाई-बहनों से किसी को कभी डर लगता है,
सच बताओ कभी अपनों से भी डर लगता है.
हर इक बहन मुझे अपनी बहन समझती है,
हर इक फूल को तितली चमन समझती है.
हमारे दुःख को ये ख़ाके-वतन समझती है.
मैं आबरु हूं तुम्हारी, तुम ऐतबार करो,
मुझे बहू नहीं बेटी समझ के प्यार करो.