नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार में लोकपाल की नियुक्ति न होने पर बुधवार को निराशा जताई। कोर्ट ने पूछा कि क्या मोदी सरकार लोकपाल की नियुक्ति करने में अपना पूरा बचा कार्यकाल लगा देगी? लोकपाल एक्ट को 1 जनवरी 2014 को नोटिफाई किया गया था। मोदी सरकार ने लोकपाल के लिए उपयुक्त कैंडिडेट तलाशने वाली सर्च कमिटी में विपक्ष के नेता को सदस्य बनाने की जगह सदन में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के लीडर को शामिल करने से जुड़ा मामूली बदलाव अब तक नहीं किया है। सरकार का कहना है कि लोकपाल ऐक्ट को जल्दबाजी में लाया गया था और उसमें कई लूपहोल हैं, जिन्हें ठीक करना होगा। लॉ मिनिस्ट्री के एक अधिकारी ने कहा कि इन बदलावों के बिना लोकपाल प्रभावी नहीं होगा।
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की बेंच से कहा कि सदन की एक सिलेक्ट कमिटी को यह एक्ट रेफर किया गया है, जिसने कानून में कई बदलावों की सिफारिश की है। उन्होंने कहा, ‘संसद इन सुझावों पर विचार कर रही है। इसमें समय लगेगा। हम भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव के बारे में भी सोच रहे हैं।’ हालांकि कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता को बढ़ावा देने से जुड़े इस कानून को प्रभावी बनाने में हो रही देरी से वह चिंतित है। बेंच ने कहा, ‘क्या आप अपने कार्यकाल का बाकी ढाई से तीन साल का समय भी यह बदलाव करने में लगाएंगे? आखिर यह सार्वजनिक जीवन में शुचिता लाने के लिए बनाया गया कानून है।’ चीफ जस्टिस ने कहा, ‘आपका तो दावा है कि आप सिस्टम को स्वच्छ करना चाहते हैं।’ रोहतगी ने हालांकि कहा कि कानून में बदलाव करना संसद का विशेषाधिकार है और ‘कोर्ट कानून नहीं बना सकता है।’ चीफ जस्टिस ने इस पर कहा कि कोर्ट इस कानून को लागू करने में हो रही देर को लेकर फिक्रमंद है। उन्होंने कहा, ‘हमें परेशानी यह है कि दो साल पहले ही बीत चुके हैं। क्या यही स्थिति अगले ढाई या तीन साल तक भी बनी रहेगी? सरकार चाहे या न चाहे, संसद कानून में बदलाव करे या न करे, लोकपाल जैसे कानून को लागू तो होने दीजिए।’
चीफ जस्टिस ने पूछा कि सरकार ने इसे लागू करने के लिए अध्यादेश क्यों नहीं जारी किया। उन्होंने कहा, ‘क्या अध्यादेश पर्याप्त नहीं होता?’ बेंच ने हालांकि अटॉर्नी जनरल को इस संबंध में औपचारिक निर्देश लेने और 7 दिसंबर को उचित जवाब के साथ कोर्ट को जानकारी देने को कहा। कोर्ट ने ये बातें तब कहीं, जब सीनियर ऐडवोकेट शांति भूषण ने जानना चाहा कि लोकपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक शुरू क्यों नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार बड़े आराम से विपक्ष के नेता की जगह सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को मेंबर बना सकती है। भूषण ने कहा, ‘लोकपाल को बड़े संघर्ष के बाद पास किया गया था। क्या आप हजारे जैसा एक और आंदोलन चाहते हैं? इस संबंध में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी दिख रही है।’