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वायरस व बैक्टीरिया के प्रयोग से बनाई जाती है वैक्सीन

नई दिल्ली : वैक्सीन बनाने के लिए वायरस मोलिक्यूल का ही प्रयोग किया जाता है। इस वक्त वैक्सीन बनाने के लिए कई टेक्नीक्स मौजूद हैं, लेकिन सबसे अधिक कॉमन टेक्नीक यही है कि वैक्सीन में वायरस के एक अंश को केमिकल्स के जरिए डिएक्टीवेट कर दिया जाता है। इसके बाद उन्हें संतुलित मात्रा में शरीर के अंदर प्रवेश करवाया जाता है और धीरे-धीरे शरीर में उन वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। वैक्सीन बनाने के लिए सबसे पहले वायरस को सेल्स में अनुकूल वातावरण बना कर बढ़ाया जाता है। यदि बैक्टीरिया के लिए वैक्सीन बनानी है तो पेटी डिश या बॉयोरिएक्टर में बैक्टीरिया को पनपाया जाता है। इन सेल्स और बॉयोरिएक्टर के जरिए पनपाए गए वायरस या बैक्टीरिया के अंदर ही एंटीजन्स बनने लगते हैं जिन्हें एक खास तकनीक के जरिए अलग कर लिया जाता है।

आमतौर पर ये प्रोटीन या डीएनए मोलिक्यूल्स होते हैं, जिनकी पहचान कर उनका उपयोग किया जाता है। कई बार अनुकूल वातावरण मिलने के कारण ये वायरस और बैक्टीरिया म्यूटेशन के जरिए अपनी ही नई प्रजातियां भी विकसित करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण एंटीजन में उन नई प्रजातियों के खिलाफ भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। आखिर में इन एंटीजन्स की पहचान कर वैक्सीन बनाने के लिए आवश्यक दूसरी चीजों के साथ एक साथ मिलाकर वैक्सीन बनाई जाती है।

इसके बाद इन वैक्सीन्स को जानवरों पर टेस्ट किया जाता है। जानवरों पर परीक्षण सफल रहने के बाद उन्हें इंसानों पर टेस्ट किया जाता है। सभी प्रयोगों में सफल रहने के बाद इन वैक्सीन्स का औद्योगिक उत्पादन शुरू कर आम जनता तक पहुंचाया जाता है। एक बार शरीर में पहुंचने के बाद शरीर में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स वायरस और बैक्टीरिया की डेड सेल्स के विरुद्ध अपनी जंग छेड़ देते हैं और शरीर में जल्द ही उन वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।

 

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