अद्धयात्म
विवाह पंचमी के दिन लोग क्यों नहीं करते कन्या की शादी?
मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी बहुत विशेष तिथि है। इस दिन भगवान श्रीराम और सीताजी का विवाह हुआ था। इस दिन को विवाह पंचमी भी कहा जाता है। यह एक शुभ तिथि है और इस दिन अनेक धार्मिक आयोजन होते हैं।
श्रीराम जानकी का विवाह हिंदू धर्म में विशेष महत्व का दिन है। फिर भी कुछ स्थानों पर लोग इस दिन विवाह नहीं करते। खासतौर पर मिथिला के लोग विवाह पंचमी के दिन अपनी बेटियों की शादी विवाह पंचमी के दिन नहीं करते।
इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम और सीताजी के विवाह के बाद उन्हें वनवास हुआ और अनेक कष्ट सहन करने पड़े। सीताजी का हरण हुआ और इसके पश्चात हुए युद्ध में अनेक लोग मारे गए। स्वयं श्रीराम के भाई लक्ष्मण भी शक्तिबाण लगने से मूच्र्छित हो गए थे।
युद्ध के पश्चात वे अयोध्या आए लेकिन सीता को एक बार फिर वनवास जाना पड़ा। इसलिए मिथिला सहित देश के विभिन्न स्थानों पर लोग विवाह पंचमी को अपनी कन्याओं की शादी नहीं करना चाहते। संभवत: उनके मन में सीता के कष्टों जैसी आशंका होती है।
चूंकि सीताजी का संपूर्ण जीवन कष्टों से भरा था, इसलिए इन स्थानों पर लोग रामचरित मानस का पाठ भी श्रीराम-जानकी विवाह तक ही करते हैं और वहीं से पाठ का समापन कर देते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि आगे सीताजी को कष्टों का सामना करना पड़ा, अत: राम-जानकी विवाह जैसे शुभ प्रसंग के साथ ही पाठ संपूर्ण कर दिया जाता है।