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विशेष आराधना : शारदीय नवरात्र महामात्य एवं पूजन विधि

ज्योतिष डेस्क : शारदीय नवरात्रि 10 अक्टूबर 2018 से शुरू हो रही है। जो 18 अक्टूबर 2018 तक मनाई जाएगी। इस नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। जिसे सही मुहूर्त में स्थापित करना चाहिए। तो आइये जानते हैं कि कलश स्थापना का उचित मुहूर्त क्या है।
तिथि : कलश स्थापना 10 अक्टूबर,प्रतिपदा तिथि (चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग)
शुभ मुहूर्त : सुबह 06:22 से 07:25 तक
मुहूर्त का समय : 01 घंटा 02 मिनट
प्रतिपदा तिथि का आरंभ : 9 अक्टूबर 2018, मंगलवार 09:16 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त: 10 अक्टूबर 2018, बुधवार 07:25 बजे
वर्ष में चार बार नवरात्रि का समय आता है जिसमें से 2 बार गुप्त नवरात्रि आते हैं, गुप्त नवरात्रि के समय जो साधक शक्ति की उपासना करना चाहते है वे इसी समय का चुनाव करते है | शेष 2 नवरात्रि को सम्पूर्ण भारत वर्ष में हर घर में एक पर्व के रूप में मनाया जाता है | यह एक व्यक्ति के भक्ति भाव और श्रद्दा भाव पर निर्भर करता है कि नवरात्रि के इस पावन पर्व को कितना महत्व देता है | आज हम आपको नवरात्रि में माँ दुर्गा पूजा से जुड़ी कुछ विशेष बातों के विषय में जानकारी देने वाले हैं| नवरात्रि के समय माँ दुर्गा के साथ जो साधक भैरव और हनुमान जी या फिर अपने ईष्ट देव की उपासना करते हैं, उन्हें भी विशेष रूप से फल की प्राप्ति होती है | वैसे तो इस भागदौड़ से भरे जीवन में पूजा-पाठ का समय सभी के लिए देना थोड़ा मुश्किल हो जाता है लेकिन फिर भी नवरात्रि के दिनों में तो सभी माँ की उपासना अपने-अपने श्रद्धा भाव से करते ही है | तो आइये जानते है नवरात्रि के समय माँ की उपासना में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए : नवरात्रि में ध्यान रखने योग्य बातें : –
• नवरात्रि के समय माँ की चौकी की स्थापना पूर्व दिशा की तरफ करनी चाहिए |
• नवरात्रि के 9 दिनों में सुबह और शाम दोनों समय माँ की आराधना करनी चाहिए |
• इन दिनों में पूजा का समय एक ही रखे | जैसे यदि सुबह आप 8 बजे पूजा करते है और शाम को 7 बजे तो प्रतिदिन ठीक इसी समय पर पूजा करें | समय में परिवर्तन न करें |
• नवरात्रि के दिनों में अपने घर को पूर्ण रूप से साफ़-सुथरा रखे |
• इस पर्व के दौरान पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और शरीर की साफ़-सफाई का विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए |
• नवरात्रि के दिनों में घर दे द्वार पर आया कोई भी भिखारी या पशु आदि को दुत्कारे नहीं कुछ न कुछ अवश्य खिलायें|
• स्वयं को मन से, विचारों से और कर्मों से इन दिनों में शुद्ध बनाये रखना चाहिए |
• पूर्व दिशा में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माँ दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें | एक कटोरी में थोड़े चावल डालकर उसमें एक मिट्टी की डली पर लाल धागा लपेटकर गणेश जी की स्थापना करें | ईशान कोण(उत्तर व पूर्व दिशा के मध्य का भाग) में एक मिटटी के क्लश में पानी भरकर रख दे उस पर एक नारियल पर लाल कपडा लपेटकर, लाल धागे से बांधकर रख दे | अब माँ दुर्गा की फोटो के सामने नीचे जमीन पर एक घी का दीपक प्रज्वलित करें साथ में धुप आदि भी लगाये |
• अब आप सामने आसन बिछाकर बैठ जाये व दायें हाथ में थोडा जल लेकर सकल्प ले :- हे परमपिता परमेश्वर, मै(अपना नाम बोले) गोत्र (अपना गोत्र बोलें) अपने कार्य की पूर्णता हेतू माँ दुर्गा की यह पूजा कर रहा हूँ मेरे कार्य में मुझे सफलता प्रदान करें | ऐसा कहते हुए हाथ के जल को नीचे जमीन पर छोड़ दे
पूजन विधि:- अब सर्वप्रथम गणेश जी को कुमकुम द्वारा तिलक करें अक्षत अर्पित करें, फिर माँ दुर्गा को तिलक करें और अक्षत अर्पित करें फिर पानी के कलश(वरुण देव) को तिलक करें और अक्षत अर्पित करें | इसी प्रकार से सभी देवों को आप पुष्प अर्पित करें और मिष्ठान आदि अर्पित करें|
कलश-स्थापना के बाद हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर उसमें सभी देवी-देवताओं व चारों वेदों का आवाहन करें कि वे दुर्गापूजा अनुष्ठान में इस कलश में विराजें और प्रसन्न होकर हमारे सारे दुरितों-दु:खों को दूर करें
कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण:।
अंगैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा।।
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका:।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।।
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका:।।
नवग्रह पूजन हेतु आवाहन मंत्र:
फूल अक्षत को नौ ग्रहों के ऊपर चढ़ा दे, एवं इस मंत्र का आवाहन करे:-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु।।
कलश को नमस्कार करने का मन्त्र:
अब कलश को प्रणाम करे एवं यह मंत्र बोलें:-
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते।।
अब अपनी आँखे बंद करके माँ का ध्यान करते हुए कुछ समय के लिए इस मन्त्र के मन ही मन जप करें : “ ऊँ ह्रीं दुं दुर्गायै नम ”
नवरात्रि के इस पवित्र पर्व के समय आप अधिक से अधिक मंत्र जप द्वारा माँ की साधना भी कर सकते है | सुबह और शाम दोनों समय एक निश्चित समय का चुनाव करें | अब इस समय पर ऊपर दी गयी विधि अनुसार संकल्प लेकर माँ के मंत्र जप शुरू कर दे | मंत्र इस प्रकार से है : ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे | इस मंत्र की अधिक से अधिक माला का जप करें |
मंत्र जप पूर्ण होने पर दायें हाथ में थोड़ा जल लेकर इस प्रकार बोले : हे परमपिता परमेश्वर मैंने( अपना नाम बोले) ये जो मंत्र जप किये है इन्हें मैं अपने कार्य की पूर्णता हेतु श्री ब्रह्म को अर्पित करता हूँ | ऐसा कहते हाथ के जल नीचे जमीन पर छोड़ दे | पूरे 9 दिनों तक इसी प्रकार से माँ के मंत्र करें
ऐसा करने से जो भी मनोकामना रखते हुए आप मंत्र जप करते है वह अवश्य ही पूर्ण होती है | अंतिम दिन हवन का आयोजन अवश्य करना चाहिए और हवन में अधिक से अधिक आहुतियाँ माँ के मंत्र की देनी चाहिए |
नवरात्रि में श्रद्धा पूर्वक यह पूजा करने से शक्ति तत्त्व का लाभ पूरे परिवार को वर्ष भर मिलता रहता है। नवरात्री के नौ दिनों तक देवी माँ के एक स्वरुप की पूजा की जाती है। जो इस प्रकार है :
प्रतिपदा तिथि – घटस्थापना , श्री शैलपुत्री पूजा
द्वितीया तिथि – श्री ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीय तिथि – श्री चंद्रघंटा पूजा
चतुर्थी तिथि – श्री कुष्मांडा पूजा
पंचमी तिथि – श्री स्कन्दमाता पूजा
षष्ठी तिथि – श्री कात्यायनि पूजा
सप्तमी तिथि – श्री कालरात्रि पूजा
अष्टमी तिथि – श्री महागौरी पूजा , महा अष्टमी पूजा , सरस्वती पूजा
नवमी तिथि – श्री सिद्धिदात्री पूजा , महानवमी पूजा

 

 

 

 

पं. प्रखर गोस्वामी

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