दस्तक टाइम्स/एजेंसी- नई दिल्ली: पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा है। अक्सर वह अपने विवादित बयानों को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहते हैं। एक बार फिर उन्होंने ऐसा ही बयान देकर हंगामे को हवा दे दी है। केंद्रीय मंत्री सिंह ने आरोप लगाया है कि भारत में असहिष्णुता पर बहस उन लोगों ने छेड़ी जिन्हें इस काम के लिए पैसे दिए गए और यह बहस कुछ ज्यादा ही कल्पनाशील लोगों के दिमाग की ‘‘गैर-जरूरी’’ उपज है, जो बिहार चुनाव से पहले राजनीति से प्रेरित थी।
विदेश राज्यमंत्री सिंह ने यहां क्षेत्रीय प्रवासी भारतीय दिवस से इतर संवाददाताओं से कहा, (असहिष्णुता पर) यह विशेष बहस चर्चा का विषय ही नहीं है। यह उन बेहद कल्पनाशील दिमागों की अनावश्यक उपज है, जिन्हें बहुत-सा धन दिया जा रहा है। इस दो दिवसीय समारोह में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की जगह भाग ले रहे सिंह ने आरोप लगाया कि भारत में असहिष्णुता पर छिड़ी बहस राजनीति से प्रेरित है और बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व जान-बूझकर इसे पैदा किया गया। सुषमा स्वराज को पेरिस में हुए आतंकवादी हमलों के मद्देनजर दुबई से बीच रास्ते से ही वापस लौटना पड़ा।
मीडिया पर वीके सिंह का हमला
सिंह ने भारत में असहिष्णुता के संबंध में किए गए एक सवाल के जवाब में कहा, मैं इस बात पर टिप्पणी नहीं करना चाहता कि भारतीय मीडिया किस प्रकार काम करता है। मैं आपको उन सारी हास्यास्पद चीजों के बारे में बताऊंगा जो असहिष्णुता के बारे में कही जा रही हैं। जब दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए तो अचानक से बड़े-बड़े लेखों की बाढ़-सी आ गयी और हायतौबा मचने लगी कि गिरिजाघरों पर हमले किए जा रहे हैं , ईसाइयत पर हमले किए जा रहे हैं.. आदि आदि।
वोट हासिल करने के लिए ऐसा हुआ
सिंह ने कहा, गिरिजाघर में चोरी के एक छोटे से मामले को गिरिजाघर पर हमले के तौर पर पेश किया गया। क्यों? क्योंकि कोई था, जो वोट हासिल करने की कोशिश कर रहा था और मीडिया इसमें सहयोग कर रहा था। मुझे नहीं पता कि उसे इसके लिए पैसा दिया जा रहा था या नहीं। यह ऐसा निर्णय या राय है, जिसके बारे में आपको स्वयं सोचना है। उन्होंने कहा, मैं आपको केवल तथ्य बता रहा हूं। चुनाव समाप्त होने के बाद सारा हो-हल्ला समाप्त हो गया।
बिहार चुनाव होते ही सब बंद
सिंह ने कहा, ऐसे ही असहिष्णुता पर बहस के मामले में है। बिहार चुनाव समाप्त होते ही सब बंद हो गया। इसलिए हमें वे अनावश्यक बातें नहीं करनी चाहिए, जो गलत हैं। मैं चाहता हूं कि जो लोग असहिष्णुता की बात करते हैं, आप अपने कागजों पर यह बात लिखें कि जब भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे 70 से अधिक आयु के गांधीवादी (अन्ना हजारे) को आधी रात को उठाकर तिहाड़ (जेल) में बंद कर दिया गया था, उस समय किसकी सरकार थी? उन्होंने कहा, क्या इन लोगों को कुछ बोलने का नैतिक अधिकार भी है? इसलिए जो हो रहा है, हमें उसे लेकर अनावश्यक रूप से भ्रमित नहीं होना चाहिए और यह भारतीय मीडिया के लिए एक सबक है। सिंह ने इससे पहले प्रवासी भारतीय दिवस में अपने संबोधन में कहा कि समग्रता नरेंद्र मोदी सरकार की विशिष्टता बन गई है।
भारत में चीजें बदल गई हैं
सिंह ने कहा, भारत में चीजें बदल गई हैं। भारत में पिछले साल नई सरकार के सत्ता में आने से भारत सरकार के रुख में बदलाव आया है। समग्रता सरकारी नीतियों की विशिष्टता बन गई है। भारत में इस समय जो माहौल पैदा किया जा रहा है, वह निवेशकों के अनुकूल है ताकि लोग निवेश करने के प्रति आश्वस्त महसूस कर सकें और यह सुनिश्चित किया जा सके कि आप भारत में निवेश का लाभ प्राप्त कर सकें। ‘बढ़ती असहिष्णुता’’ के खिलाफ लेखकों, इतिहासकारों, फिल्मकारों और वैज्ञानिकों के बढ रहे विरोध के तहत प्रबुद्ध वर्ग के कम से कम 75 लोगों ने राष्ट्रीय या साहित्यिक पुरस्कार लौटाए हैं। उनका कहना है कि मौजूदा माहौल में देश के मजबूत लोकतंत्र को नुकसान हो सकता है। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इन विरोधों को ‘‘कृत्रिम विद्रोह’’ और ‘‘राजनीति ’’ से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया है।
इससे पहले भी वीके सिंह अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं-
दो दलित बच्चों की हत्या पर दिया था ऐसा बयान
इससे पूर्व हरियाणा में दो दलित बच्चों की हत्या पर उन्होंने पहले तो कहा कि सरकार का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं। फिर बात को आगे बढ़ाते हुए वह बोले, ‘हर चीज़ के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं, कहीं किसी ने कुत्ते को पत्थर मार दिया तो सरकार जिम्मेदार है, ऐसे नहीं है।’ उनके इस बयान पर उनकी चारों तरफ आलोचना की गई।
साहित्यकारों को लेकर कुछ ऐसा कहा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन में वीके सिंह ने कुछ ऐसा कहा, जो किसी को भी हजम नहीं हुआ था। एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में सिंह के हवाले से कहा गया है कि यह सम्मेलन पिछले सम्मेलनों से अलग है। साहित्यकारों द्वारा सम्मेलन पर उठाए जा रहे सवालों पर उनका जवाब था कि कुछ लोगों को लग रहा है कि वे आते थे, आलेख पढ़ते थे, दारू पीते थे और चले जाते थे, जो इस बार नहीं है। लेखकों और साहित्यकारों ने सिंह से सवाल किया है कि ‘जनरल साहब बताएं कि सैनिकों का आकलन उनकी सेवा और बलिदान के आधार पर होता है या दारू पीने पर।’
मीडिया को कहा था ‘प्रेसटीट्यूट्स’…
यमन संकट के समय वीके सिंह जिबूती गए थे। वहां वह भारतीय नौसेना, वायुसेना और एयर इंडिया द्वारा चलाए चलाए जा रहे बचाव अभियान की निगरानी के लिए गए थे। उन्होंने कहा था कि जंग जैसे हालात से जूझते यमन में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन पर नजर रखना ‘पाकिस्तानी दूतावास में जाने से कम रोमांचक है।’ यह बात उन्होंने पाकिस्तान दिवस के मौक़े पर पाकिस्तान उच्चायोग में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने पर कही थी। उनके इस बयान पर हो हल्ला हो गया तो उन्होंने मीडिया की आलोचना कर दी। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘दोस्तों, आप प्रेस्टीट्यूट्स से और क्या उम्मीद कर सकते हैं।’ हालांकि अपने दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि संबंधित पत्रकार ने अंग्रेजी के ‘ई’ के स्थान पर ‘ओ’ समझ लिया।