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वृष राशि के जातकों का इस उम्र में होता है भाग्योदय, जीवन के ये साल होते हैं परेशानी भरे

वृष राशि वाले जातकों के लिए कृतिका के तीन चरण, रोहिणी नक्षत्र के चार चरण और मृगशिरा नक्षत्र के दो चरण यानी कुल 9 चरणों का एक लग्न होता है। वृष लग्न वाला जातक प्राय: रजोगुणी, पृथ्वी तत्व, सुंदर शरीर वाला, शांतिप्रिय, धैर्यवान, कष्टों को सहन करने वाला, गौर वर्ण और कलाओं में निपुण होता है। वायु प्रकृति होने के कारण तामसिक गुणों से युक्त हो जाता है। यह दयालु, स्नेही एवं सबका विश्वसनीय होता है।

ज्योतिषाचार्य डॉ. मस्तराम शर्मा ने बताया कि ऐसे जातक के लिए कष्टकारी वर्ष 1, 28, 33, 44 और 61 होते हैं। प्राय: देखा गया है कि वृष लग्न वाले व्यक्ति के लिए इस राशि का स्वामी शुक्र होता है। पंचम नवांश में यदि कोई व्यक्ति पैदा हुआ हो तो अपने निवास में होने के कारण ऐसा व्यक्ति सभी कलाओं में निपुण होता है। शनि ग्रह इस जातक के लिए विशेष भाग्यशाली होता है।

इस जातक का भाग्य उदय 36 से 42 वर्ष के मध्य होता है। जब लग्न से नवम भाव एवं दशम भाव के स्वामी शनि की महादशा, अंतर्दशा जातक के लिए आती है तो वह व्यक्ति राजयोग को प्राप्त करता है। लग्न से चतुर्थ भाव का स्वामी सूर्य होने के कारण उसे जमीन, जायदाद एवं मातृ सुख की प्राप्ति होती है। प्राय: देखा गया है कि शुक्र, चंद्रमा, गुरु वृष लग्न वालों के लिए विशेष रूप से सुखदाई नहीं होते हैं। वृष लग्न वाले जातक के लिए तृतीय एवं अष्टम स्थान आयु का माना गया है।

तृतीय स्थान एवं अष्टम स्थान से द्वादश भाव अर्थात द्वितीय भाव एवं सप्तम भाव मार्केश कहलाते हैं। इन ग्रहों की दशा, महादशा जब भी आती है तो कष्ट सहन करना पड़ता है। इसमें यदि कोई जातक महामृत्युंजय मंत्र का जाप करवाता है तो स्वास्थ्य लाभ होता है। बृहस्पति विशेष रूप से कष्टदायी होता है। जहां शुक्र ग्रह लग्न का प्रतिनिधित्व करता है, उसमें व्यक्ति के लिए ओम् द्रांम द्रीम द्रौम स: शुकराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।

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