वैज्ञानिकों का पीएम नरेंद्र मोदी से आग्रह, जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों के भविष्य पर फैसला लें
नई दिल्ली: भारत के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि वह देश की पहली जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) खाद्य फसल सरसों के भविष्य पर फैसला लें, और हाल ही में हुई एक बैठक से भी संकेत मिल रहे हैं कि अधिकारी इसके व्यवसायीकरण का भी समर्थन कर सकते हैं।
हालांकि इसके वाणिज्यिक लॉन्च का रास्ता राजनैतिक विरोध की वजह से साफ नहीं हैं, लेकिन जीएम फसलों को अनुमति दिया जाना खाद्य तेलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण है। मौजूदा समय में भारत वनस्पति तेलों के आयात पर सालाना 10 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 67,371 करोड़ रुपये) खर्च करता है, तथा जीएम सरसों – जिसकी फसल सामान्य सरसों की तुलना में 38 फीसदी ज़्यादा होती है – की बदौलत सरकार को इस खर्च में कटौती करने का अवसर हासिल होगा।
प्रधानमंत्री खेती के क्षेत्र में तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर
प्रधानमंत्री ने सत्तासीन होने के तुरंत बाद जीएम खाद्य फसलों के फील्ड ट्रायल पर लगी रोक को हटा दिया था, जिससे स्पष्ट है कि वह खेती के क्षेत्र में तकनीक के इस्तेमाल पर ज़ोर देने के पक्षधर हैं। इससे पहले, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, भी उन्होंने किसानों द्वारा जीएम कॉटन के अपनाए जाने का ज़ोरदार समर्थन किया था।
सो, अब जीएम सरसों भारत का अगला लक्ष्य है। इस तेल वाली फसल के हाईब्रिड बीज पर पिछले एक दशक के दौरान किए गए सुरक्षा टेस्टों के परिणाम सितंबर, 2015 में सरकार को सौंपे गए थे। जीएम सरसों के प्रयोग से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक दीपक पेंटल ने समाचार एजेंसी रॉयटर को बताया, “मुझे उम्मीद है कि इसे व्यावसायिक रूप से लॉन्च किया जाएगा… और मंत्रालय द्वारा (4 जनवरी को) बैठक बुलाया जाना यह संकेत देता है कि वे इसे लेकर गंभीर हैं… और अगर भारत के शीर्ष वैज्ञानिक देश के प्रधानमंत्री को खत लिख रहे हैं, तो यह शर्तिया काफी महत्वपूर्ण है…”
“दुनिया में लगातार बढ़ेगा जीएम खाद्य फसलों का इस्तेमाल…”
देश के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार आर. चिदम्बरम द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए एक खत, जिसे रॉयटर ने भी देखा, में लिखा गया है कि दुनियाभर में जीएम खाद्य फसलों का काफी इस्तेमाल होता है, और उनका इस्तेमाल आने वाले वक्त में लगातार बढ़ेगा, क्योंकि बदलता मौसम खेती से होने वाले उत्पादन को नुकसान पहुंचा रहा है… भारत वैसे भी पहले से ही वह तेल इस्तेमाल कर रहा है, जो कनाडा में उगाए जाने वाले जीएम रैपसीड से बनता है…
अक्टूबर में भेजे गए इस खत में चिदम्बरम ने लिखा है, “मेरे विचार में भारत को, निश्चित रूप से उपभोक्ताओं तथा देश के लिए इसके महत्व, इसकी आर्थिक महत्ता, सुरक्षा तथा पर्यावरण के प्रति इसके प्रभावों के बारे में खुद की संतुष्टि के बाद, आधुनिक तकनीक की शुरुआत करने वाला देश बनने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए… जीएम खाद्य फसलें इसी वर्ग में आती हैं…”
“व्यवसायीकरण से पहले खतरों और फायदों का विश्लेषण होगा…”
जीएम फसलों के प्रभावों के आकलन के लिए उत्तरदायी पर्यावरण तथा वन्य मंत्रालय का कहना है कि वह फिलहाल सरसों सुरक्षा से जुड़ी 3,100 पन्नों की रिपोर्ट का मूल्यांकन कर रहा है, और इसके व्यवसायीकरण से पहले सावधानीपूर्वक इससे जुड़े खतरों और फायदों का विश्लेषण किया जाएगा।
सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े कुछ संगठन जीएम फसलों का इस आधार पर विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे मॉनसैन्टो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा पेटेंट करवाए जा चुके महंगे बीजों पर निर्भर हो जाने का डर है। हालांकि दीपक पेंटल के मुताबिक चूंकि यह सरसों प्रोजेक्ट सरकार द्वारा वित्तपोषित होगा, इसलिए बीजों की कीमत वाजिब होगी।