व्यर्थ नहीं जाती है भगवान की आराधना
रायपुर : भगवताचार्य पं. आनंद उपाध्याय ने कहा कि दया करना अच्छी बात है, पर जिस पर दया की जाती है, उस पर आसक्ति करना उचित नहीं है। दया तो धर्म है, पर आसक्ति से बंधन होता है। राजर्षि भरत ने मृग पर दया की, ये तो अच्छा था, पर उस पर आसक्ति के कारण और मृत्यु के समय मृग का ध्यान करके मरने के कारण उसे मृग बनना पड़ा। भगवान की आराधना कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। आध्यात्म विद्या अमर विद्या है, इसलिए जड़भरत को भगवान की स्मृति बनी रही और अगले जन्म में जड़भरत बना तब मुक्ति मिली। अजामिल व्याख्यान का वर्णन करते हुए पं. उपाध्याय ने कहा कि भगवान का नाम ऐसा है, जिसे हम किसी भी प्रकार से लें हमारा कल्याण होता है। हमें भगवान का नाम लेते रहना चाहिए। भक्ति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक ज्ञानी की भक्ति है, दूसरा भक्त की ज्ञानी अपने ज्ञान से भगवान को पकड़ता है। जैसे बंदर का बच्चा स्वयं अपनी मां को पकड़ा रहता है, पर इसमें छूटने का डर है। दूसरा भक्त की पकड़ है, वो बिल्ली के बच्चे के समान है। बिल्ली स्वयं अपने बच्चे को पकड़ कर रखती है, जो छूटती नहीं, ये भगवान की पकड़ है, भगवान भक्त को स्वयं पकड़े रहते हैं। ग्राम केशवा में चल रही भागवत कथा में भगवताचार्य ने भक्त प्रहलाद कथा का भी व्याख्यान किया। इस दौरान ग्राम के गणमान्य नागरिक व श्रद्धालु बड़ी संख्या में कथा सुनने उपस्थित रहे। भजन कीर्तन का भी रसपान किया।