अद्धयात्म
शुक्रवार को नहीं करनी चाहिए इस दिशा की यात्रा
षष्ठी तिथि में काठ की दातुन, यात्रा, उबटन तथा चित्रकारी को छोड़कर, युद्ध, वास्तु, समस्त मांगलिक व अलंकारादिक कार्य सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार सप्तमी तिथि में नाचना, गाना, यात्रा, सवारी, वाहन, वास्तु गृहारम्भ, प्रवेश व वस्त्रालंकार आदि विषयक कार्य शुभ व सिद्ध होते हैं।
षष्ठी तिथि में जन्मा जातक सामान्यत: एक जगह निवास नहीं करने वाला, अहंकारी, विवादप्रिय, कामलोलुप पर सुंदर, ऐश्वर्यवान, विद्यावान व कीर्तिवान होता है।
उत्तराभाद्रपद में यथाआवश्यक विवाह, यज्ञोपवीत, देवस्थापन, वास्तु-गृहारम्भ व गृहप्रवेश और अभिषेक संबंधी कार्य तथा रेवती नक्षत्र में घर, देव-मन्दिर, अलंकार, विवाह, जनेऊ, जल व स्थल सम्बन्धी कार्य शुभ होते हैं।
रेवती गण्डांत मूल संज्ञक नक्षत्र भी है। अत: इस नक्षत्र में जन्मे जातकों के सम्भावित अरिष्ट निवारण के लिए 27 दिन बाद जब पुन: इस नक्षत्र की आवृत्ति हो, तब नक्षत्र शांति करा लेना जातकों के हित में होगा।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्मा जातक सामान्यत: सुंदर, पराक्रमी, बुद्धिमान, बोलचाल व प्रश्नोत्तर में निपुण, शत्रुजित, दान, धनवान, उदार व परोपकारी होता है। इनका भाग्योदय प्राय: लगभग 27 या 31वें वर्ष में होता है।
दिशाशूल
शुक्रवार को पश्चिम दिशा की यात्रा में दिशाशूल रहता है। अति आवश्यकता में कुछ जौ के दाने चबाकर शूल दिशा की अनिवार्य यात्रा पर प्रस्थान कर लेना चाहिए। चंद्र स्थिति के अनुसार आज उत्तर दिशा की यात्रा लाभदायक व शुभप्रद रहेगी।