केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि पश्चिम एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र तथा उप-सहारा क्षेत्र में जारी संघर्ष और कई अन्य देशों में कायम अस्थिरता की स्थिति इन क्षेत्रों में गरीबी बढ़ा सकती है।
विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए अमरीका पहुंचे जेटली ने विश्व में ‘बलात विस्थापन एवं इसकी चुनौतियां’ मुद्दे पर विश्व बैंक द्वारा तैयार रिपोर्ट की सराहना करते हुए कहा कि इन क्षेत्रों में गरीबी बढऩे से रोकने के लिए जरूरी प्रयास किए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में विश्व बैंक को वित्तीय मदद बढ़ाने, आकलन एवं सलाह देने तथा मायनेपूर्ण आयोजक की भूमिका निभाने की जरूरत है। जेटली ने कहा कि कम एवं मध्यम आय वाले देशों को रियायती वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए क्राइसिस रिस्पांस विंडो के तहत मध्यस्थ वित्तीय फंड बनाना अधिक प्रभावी होगा।
वित्त मंत्री ने डायनेमिक फॉर्मूला का उल्लेख करते हुए कहा कि हिस्सेदारी में सुधार के एजेंडे पर आगे बढऩा उत्साह देने वाला है। उन्होंने कहा कि अत्यंत गरीबी को समाप्त करने, सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने तथा संघर्ष एवं अनिश्चितता के कारण उपस्थित पुनर्निमाण की चुनौतियों से निपटने का अपूर्ण लक्ष्य इस बात का द्योतक है कि बैंक को अपना वार्षिक ऋण बढ़ाकर एक हजार करोड़ डॉलर करना चाहिए।
जेटली ने कहा कि ऐसा करने के लिए इंटरनेशनल बैंक फार रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईबीआरडी) तथा इंटरनेशनल फाइनेंस को-ऑपरेशन (आईएफसी) दोनों को जनरल कैपिटल इनक्रीज (जीसीआई) की जरूरत होगी। इन दोनों संस्थानों को बड़ी मात्रा में सिलेक्टिव कैपिटल इनक्रीज (एससीआई) की भी जरूरत होगी ताकि विकासशील देशों की बढ़ती भूमिका पारिलक्षित हो सके।
विकास की पृष्ठभूमि में वर्ल्ड बैंक की अग्रणी भूमिका को बनाए रखने के लिए समय-समय पर ऐसे कदम उठाते रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमें इंस्तांबुल सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। हमें यह मानना पड़ेगा कि आईबीआरडी एवं आईएफसी में विकासशील देशों की हिस्सेदारी बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का समय आ गया है।’
जेटली ने पर्यावरणीय एवं सामाजिक मानकों पर बहस पर जोर देते हुए कहा कि यह ऋण लेने वाले देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, ‘मैंने यह नोटिस किया है कि ऋण लेने वाले देशों के साथ सलाह की प्रक्रिया समाप्त हो गई है। भारत समेत ऋण लेने वाले इन देशों ने विश्व बैंक के दल को प्रस्तावित ईएसएफ-2 ड्राफ्ट के मानकों के संभावित असर की जांच करने का सही अवसर दिया है। मुझे यकीन है कि बैंक इस मूल्यवान फीडबैक पर ध्यान देगा तथा सदस्य देशों के विचार के लिए सही प्रकार के मानकों का प्रस्ताव देगा।’