सपना राजपथ का
आलेख – डा. अरविन्द कुमार सिंह
एक कैडेट का सबसे बडा सपना गणतंत्र दिवस परेड पर उत्तर प्रदेश की टुकडी के अन्र्तगत राजपथ पर होना है।कठोर अनुशासन और परिश्रम की भट्टियों में तपकर एक कैडेट राजपथ तक की यात्रा पूर्ण करता है। आखें में चमक, दिल में हौसला और सधे हुए कदमों की चाल उसकी पूॅजी होती है। चार महिनों की कठिन श्रम साद्धय तपस्या के उपरान्त वो , अपने में वो हुनर पैदा करता है, जो देखने वालों के लिए हैरतगेंज कारनामा होता है, तो उसके लिए वह मात्र उसके व्यक्तित्व का एक शानदार अंदाज। आईये जानने का प्रयास करते है कि आखिरकार एक कैडेट राजपथ तक कैसे पहुचता है? इस सन्दर्भ में कांटीजेंट कमांडर एनसीसी, उत्तर प्रदेश निदेशालय कर्नल बहादुर सिंह कहते है- यह सबकुछ एक कैडेट के लिए इतना आसान नहीं होता है, जितनी आसानी से लोग उसे राजपथ पर मार्च करते हुए देखते है। कठिन चुनौतियों को पार करते हुए वह राजपथ तक पहुॅचता है।
पूरे प्रदेश में कुल ग्यारह ग्रुप है और पूरे देश में कुल सत्रह एनसीसी निदेशालय है। प्रदेश के प्रत्येक ग्रुप कठिन मानको के अन्र्तगत कैडेटों का चयन करते है। चयनित कैडेट गाजियाबाद में तीन प्रशिक्षण शिविरों ( प्रत्येक शिविर दस दिन का ) के लिए इक्ट्ठे होते है। कठोर मानकों की अर्हताओं को पूर्ण करने के उपरान्त वो प्रदेश की टुकडी में अपना स्थान प्राप्त करते है। इन प्रशिक्षण शिविरों को प्रीआरडी – वन, टू, एवं थ्री के नाम से जाना जाता है। यह शिविर नवम्बर से दिसम्बर तक आयोजित होते है। जनवरी के प्रथम सप्ताह में प्रदेश की टुकडी अपने पूॅर्ण संसाधनों के साथ दिल्ली की सरजमी पर होती हैं।उसके बाद की यात्रा गणतंत्र दिवस की परेड की प्रतिक्षा के रूप में प्रत्येक दिन उसकी दिल की धडकनो को बढाती जाती है। कैडेट की गृह वापसी फरवरी के प्रथम सप्ताह में होती है।
हाॅ, मैं यह विश्वास पूर्वक कह सकता हूॅ कि जिस दिन वो गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होता है उस दिन तक की उसकी सिखलाई उस आले दर्जे तक पहुॅच जाती है, जहाॅ एक कैडेट एक इंफैन्ट्री के जवान के कान काटने की हैसियत प्राप्त कर लेता हैं। उसका वर्दी लगाने का अंदाज,उसकी चाल-ढाल, उसका व्यक्तित्व सबकुछ आला दर्जे के शानदार व्यक्तित्व में तब्दील हो चुका होता है। यहाॅ कान काटना मुहावरा पूर्ण होता है।
एक टुकडी अर्थात ग्रुप के छात्र सैनिकों का ताल-मेल इतना आला दर्जे का कैसे होता है? यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा। और जब आप यह जानेगें तो आपकों निश्चित ही सैन्य अधिकारियों तथा प्रशिक्षण देने वाले पीआई स्टाफ पर गर्व होगा। वर्तमान में 100 बटालियन एनसीसी के समादेश अधिकारी कर्नल बहादुर सिंह आगे बताते है – अगर हम अपने वाराणसी बी ग्रुप का उदाहरण देकर आपको कैडेटों के चयन प्रक्रिया को समझाउ तो वो इस प्रकार है। चयनित टीम के छात्र सैनिकों की कुल संख्या 58 की होती है। जिसमें 47 छात्र सैनिक स्थल स्कंध के तथा 11 छात्र सैनिक वायुसेना स्कंध के होते है। अगर इसके विभाजन को हम सूक्ष्म रूप में देखे तो यह विभाजन इस प्रकार बनता है।
स्थ्ल स्कंध के अन्र्तगत सिनियर डिवीजन के छात्र सैनिकों की संख्या 21 और लडकियों की संख्या 20 होती है। वही जूनियर डिवीजन में छात्र सैनिकों की संख्या 03 तथा लडकियों की संख्या 03 होती है। इस प्रकार कुल स्थल स्कंध के छात्र/छात्रा सैनिकों की संख्या 47 होती है। वही दूसरी तरफ वायु सेना स्कंध के अन्र्तगत छात्र सैनिकों की संख्या 06 तथा लडकियों की संख्या 03 होती है। इसी स्कंध में जूनियर डिवीजन में छात्र सैनिकों की संख्या 01 तथा लडकियों की संख्या 01 होती है। कुल वायु सैनिक छात्र/ छात्रा सैनिकों की संख्या 11 होती है। यदि दोनो स्कंधों की संख्या मिला दे तो यह संख्या 47 और 11 मिलकर 58 तक पहॅच जाती है। जो संख्या हमारे चयन को पूर्ण करती हैं। अब आप समझ गये हों यह चयन कितना कठिन होता है और साथ ही इन सबका ताल मेल एक सुर ताल में करने के लिए हमे कितना कठिन परिश्रम करना पडता हें।
जब मैने आप से पूछा – इस चयन प्रक्रिया का आधार क्या होता है? कर्नल सिंह ने कहा – एक कैडेट के लिए तीन चीजे अतिआवश्यक हैं –
उसकी हाईट। उसकी ड्रील। तथा उसका हुनर।
विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से हम उसे परखते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम के अतंगर्त उसका कला पक्ष उभर कर बाहर आता है। इसके लिए – ग्रुप सांग, ग्रुप डांस, बैले ( नृत्य की एक शैली )
एनआईपी ( प्रदेश के बारे में सम्पूर्ण जानकारियों का संगीतमय प्रस्तुतिकरण )
तथा फ्लैग एरिया प्रतियोगिता ( 5 गुणे 3 मीटर की एरिया में किसी थीम को बनाना )
उस कैडेट के चयन का आधार बनता है। इसके अतिरिक्त उसकी ड्रील की परफारमेंस तथा ‘ गार्ड आफ आनर ‘ की प्रस्तुति उसके चयन का आधार बनता है।
इतनी बाते करते-करते सूचना मिली कि शिविर में अपर महानिदेशक मेजर जनरल आरजीआर तिवारी के आगमन का समय हो गया है। जी, हा – हम यह बातचीत कर रहे थे शहर से 22 किमी दूर नेशनल इण्टर कालेज, पिण्डरा में। जहा वाराणसी बी ग्रुप का लाचिंग कैम्प आयोजित था। वर्षा की रिमझिम फुहार के बीच संतरी की सीटी ने सम्पूर्ण शिविर को सूचित किया कि अपर महानिदेशक मेजर जनरल आरजीआर तिवारी एनसीसी, उत्तर प्रदेश निदेशालय का शिविर में आगमन हो चुका हैं। गार्ड की ऊंची आवाज कानों से टकरा रही थी।
दो पल के लिए ऐसा लगा दिल्ली के सरजमीं पर सत्रह प्रदेशों के निदेशालय इकट्ठे है और किसी एक निदेशालय के गार्ड आफ आनर की आवाजें कानों से टकरा रही है और कह रही है – बार बार अभ्यास आखिरकार एक दिन हुनर में तब्दील हो जाता है। जो देखने वालों की नजर में हैरतंगेज कारनामा होता है, तो उस क्रिया को अंजाम देने वाले के लिए मात्र एक हुनर।
अभ्यास, कार्ययोजना एक न एक दिन सपनों को पूरा करने में सहायक होते है। शिविर में उपस्थित हर कैडेट का सपना, उस समृद्ध भारत की गौरवशाली परम्परा में शामिल होना है, जिसका नजारा गणतंत्र दिवस की परेड पर राजपथ पर दिखायी देता है। जो हमे यह संदेश देता है। एक भारत – श्रेष्ठ भारत।