सपा में अब तक का सबसे बड़ा संकट
जानें कब और कहां से शुरू हुआ सियासी संग्राम
बुधवार को दिल्ली में शिवपाल और मुलायम सिंह यादव के बीच हुई मैराथन बैठक के बाद एक बार लगा था कि सब कुछ सुलझ जाएगा, लेकिन गुरुवार शाम तक सब कुछ बदल गया. अपमान से नाराज शिवपाल कोई समाधान निकलता न देखकर पार्टी अध्यक्ष पद और सरकार से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, मुख्यमंत्री ने उनका इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं किया है, लेकिन गुरुवार रात से ही शिवपाल समर्थक विधायक और कार्यकर्ता उनके आवास पर जुटे हुए हैं. अब शुक्रवार को देखना दिलचस्प होगा कि मुलायम सिंह यादव अब क्या कदम उठाते हैं. दरअसल, समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव के परिवार में आया यह भूचाल अचानक से नहीं उठा है. इसकी बुनियाद कुछ महीने पहले ही रखी जा चुकी थी, जब शिवपाल यादव ने माफिया डॉन मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में करवाया. नेताजी के राजनैतिक जीवन में आए अब तक के सबसे बड़े संकट की नींव ऐसे पड़ी.
21 जून 2016: शिवपाल यादव ने मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय करवाया. चाचा के इस फैसले से नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश ने पलटवार किया.
22 जून 2016: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुलायम और शिवपाल के करीबी बलराम यादव को अपने कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया. उस समय बताया जा रहा था कि बलराम यादव कौमी एकता दल के विलय में सूत्रधार थे. बलराम यादव के बर्खास्त किए जाने से समाजवादी पार्टी में खलबली मच गई और आनन-फानन में संसदीय दल बोर्ड की बैठक बुलाई गई.
25 जून 2016: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हठ के आगे पार्टी के दिग्गजों को झुकना ही पड़ा. मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय रद्द कर दिया गया. समाजवादी पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में यह फैसला लिया गया. इसके साथ ही कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने के सूत्रधार रहे बलराम यादव की कैबिनेट में वापसी हो गई.
27 जून 2016: अखिलेश मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, जिसमे बलराम यादव की वापसी हुई. लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में शिवपाल नहीं आए. बताया गया कि वे विलय रद्द होने से नाराज हैं.
इसके बाद लगा कि सब कुछ सामान्य हो गया है. लेकिन नहीं, यह सपाई महभारत की शुरुआत थी. इस दौरान शिवपाल और अखिलेश ने कई बार एक साथ आकर अच्छे रिश्तों के संकेत भी दिए.
चाचा-भतीजे के रिश्ते में मधुरता के संकेत तब और मजबूत हो गए जब 7 जुलाई 2016 को मुख्यमंत्री ने शिवपाल के करीबी दीपक सिंघल को प्रदेश का मुख्य सचिव नियुक्त किया.
12 सितम्बर 2016: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक घंटे के अन्दर दो मंत्रियों गायत्री प्रसाद यादव और राज किशोर सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. दोनों ही मंत्री मुलायम और शिवपाल के करीबी हैं. बर्खास्तगी के बाद गायत्री प्रजापति ने दिल्ली जाकर नेताजी की चरणवंदना की.
13 सितम्बर 2016: बकरीद के दिन मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल की हटाकर सबको चौंका दिया. उनकी जगह राहुल भटनागर को नया चीफ सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. हटाये जाने के बाद दीपक सिंघल भी दिल्ली दरबार पहुंचे. लेकिन सबके मन में एक ही सवाल था आखिर मुख्यमंत्री ताबड़तोड़ ऐसे कठोर फैसले क्यों ले रहे हैं.
मंगलवार शाम तक दिल्ली से फरमान आया. मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया. शिवपाल को उनकी जगह नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. देर शाम तक अखिलेश ने एक बार फिर पलटवार किया और शिवपाल यादव के पर कतरते हुए उनसे पीडब्लूडी, सिंचाई और सहकारिता जैसे विभाग छीन लिए गए. इससे नाराज शिवपाल रात को ही सैफई पहुंच गए.
14 सितम्बर 2016: शिवपाल यादव दिल्ली न आकर सीधे मुलायम सिंह से मिलने दिल्ली पहुंचे. जहां दोनों के बीच करीब पांच घंटे तक बातचीत हुई. इसके बाद शिवपाल खुश नजर आये और मीडिया से कहा सब ठीक है.
इस बीच लखनऊ में मुख्यमंत्री ने सारे फसाद का ठीकरा एक बाहरी व्यक्ति (अमर सिंह) पर फोड़ा. उन्होंने कहा किसी बाहरी व्यक्ति के हस्तक्षेप से पार्टी नहीं चलेगी. इशारा स्पष्ट था कि उन पर अपने फैसले बदलने का दवाब था.
15 सितम्बर 2016: सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने अखिलेश से बंद कमरे में बात की. इसके बाद उन्होंने कहा कि बड़ों से गलती हुई. हटाने से पहले अखिलेश से इस्तीफा माँगना चाहिए थे. उन्होंने भी खुलकर अमर सिंह का नाम लेते हुए कहा कि वे अखिलेश को बर्बाद करने की बात करते हैं. इस बीच मुलायम ने दिल्ली में साफ़ कर दिया कि शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे.
शिवपाल दिल्ली से लखनऊ पहुंचे और मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा सब ठीक है और नेताजी का फैसला ही मान्य होगा. करीब 3.30 बजे मुलायम भी लखनऊ पहुंचे. उसके बाद वे अपने आवास पर शिवपाल से मिले. उनके बीच दो राउंड बैठक हुई.
इसके बाद अचानक शाम को उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और सरकार में मंत्री पद भी छोड़ दिया. हालांकि मुख्यमंत्री ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. इस्तीफे की खबर मिलते ही उनके समर्थक घर के बाहर जमा हो गए और उनके आत्मसम्मान को लौटाने की मांग कर रहे हैं.
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बीच अब एक सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा. क्या सपा दो फाड़ की तरफ बढ़ रही है? क्या मुलायम इस संकट से निकल पाएंगे और यादव कुनबा को बचा पाएंगे?