राष्ट्रीय

सरनेम नहीं बदला तो पति को कम मर्दाना समझते हैं लोग

एक नई रिसर्च में हुआ खुलासा

नई दिल्ली : आजकल ज्यादातर महिलाएं अपना लास्ट नेम चेंज नहीं करतीं। महिलाओं के ऐसा करने से लोगों का उनके पति के बारे में सोचने का तरीका बदल जाता है। एक नई रिसर्च के मुताबिक जब किसी पुरुष की पत्नी उसके सरनेम को अपनाने के चलन को स्वीकार नहीं करती तो लोग उसके पति को कम मर्दाना समझते हैं। नेवाडा यूनिवर्सिटी में हुई सेक्स रोल स्टडी में यह जानने की कोशिश की गई कि जिन पुरुषों की पत्नियों ने उनका सरनेम नहीं लगाया था, लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। शोधकर्ताओं ने यूके और यूएस बेस्ड अंडरग्रेजुएट्स के साथ ऑनलाइन सर्वे किया। इस सर्वे में उनसे एक ऐसी परिकल्पना करने को कहा गया, जिसमें एक महिला ने शादी के बाद अपना सरनेम नहीं बदला था। इसके बाद उनसे पति की पर्सनैलिटी के बारे में सवालों के जवाब देने को कहा गया।

नतीजों में सामने आया कि पत्नी के इस फैसले के आधार पर ऐसे पुरुषों को कम पावरफुल माना गया। शोधकर्ता रेचल बताती हैं, ‘शादी के बाद महिला के सरनेम के चुनाव पर यह धारणा बना ली जाती है कि पति की कितनी चलती है। लोग सरनेम के चुनाव से किसी रिश्ते के जेंडर-टाइप्ड पर्सनैलिटी का अंदाजा लगाते हैं।’ गूगल कंज्यूमर सर्वे के मुताबिक शादी के पहले का नाम न बदलने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। पुरानी स्टडीज के मुताबिक ऐसे फैसले लेने वाली महिलाओं को अलग तरह से देखा जाता है। उन्हें ज्यादा महत्वाकांक्षी, दृढ़ निश्चयी और शक्तिशाली माना जाता है। रेचल के मुताबिक जो लोग ऐसी धारणा बना लेते हैं वे ट्रडिशनल जेंडर रोल की परिकल्पना से बाहर नहीं आ पाते और उन्हें ‘होस्टाइल सेक्सिट’ कहा जा सकता है। 

 

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