साउंड का महत्व समझने लगे हैं फिल्ममेकर्स कुणाल शर्मा
मुम्बई : हॉरर और कॉमेडी। इन दिनों दर्शक इस ज़ोनर की फिल्में देखना पसंद कर रहे हैं। यहां यह जानना भी जरूरी है कि हॉरर और कॉमेडी सब्जेक्ट पर काम करना इतना आसान नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती है ऐसी फिल्मों में दिया जाने वाला साउंड। चूंकि आजकल तकनीक का ज़माना है इसलिए साउंड को फिल्मों के लिए काफी अहम मान लिया गया है जबकि पहले इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया जाता था। आज के फिल्ममेकर्स साउंड की उपयोगिता को समझते हैं इसलिए म्यूज़िक के साथ—साथ साउंड डिपार्टमेंट को भी काफी महत्व देने हैं।
साउंड के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले कुणाल शर्मा को इस बात की खुशी है कि निर्देशन में आई नई पीढ़ी साउंड को प्राथमिकता दे रही है। फिल्म इंडस्ट्री में साउंड विभाग का दस साल का अनुभव रख चुके कुणाल मानते हैं कि मल्टीप्लेक्स के आने से साउंड क्वालिटी में काफी सुधार हुआ है। इस वजह से अब साउंड पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। कुणाल कहते हैं कि फिल्मकारों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि कोई भी फिल्म साउंड के बगैर अधूरी है। किसी भी दृष्य को उभारने व प्रभावी बनाने में साउंड का बड़ा हाथ होता है। कॉमेडी या इमोशनल दृष्य के लिए साउंड का होना बहुत जरूरी है। किसी किरदार को यादगार बनाने के लिए भी साउंड का उपयोग जरूरी होता है। कोई भी फिल्ममेकर जितना अधिक ध्यान साउंड पर देगा, उतनी फिल्म असरदार बनेगी। उड़ान, लुटेरा, शैतान से लेकर गुलाल, राजी, भावेश जोशी सुपर हीरो, देवदास आदि फिल्में कर चुके कुणाल कहते हैं कि जब मुझे कोई फिल्म आॅफर होती है तो मैं सबसे पहले स्क्रिप्ट मांगता हूं ताकि पता चले कि कहानी व किरदार क्या हैं और किस तरह के साउंड की जरूरत पड़ेगी। मैंने जिन-जिन निर्देशकों के साथ काम किया है वे सभी फिल्म में साउंड के महत्व को समझते हैं इसलिए वे साउंड के लिए भी अच्छा बजट रखते हैं। साथ ही पूरा समय भी देते हैं। आज अलग अलग विषयों पर फिल्में बन रही हैं, ऐसे में अलग अलग तरह के साउंड का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है। यही बात मेरे लिए चैलेंजिंग हैै। पहले फिल्म की फोटोग्राफी और संगीत पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था क्योंकि तब जो दिखता है, वही बिकता है का जमाना था। अब जो सुनाई देता है, वो भी बिकता है का वक्त आ गया है। साउंड को लेकर नए-नए प्रयोग हो रहे है। ऐसे में नई तकनीक के आने से और बदलाव आते रहेंगे।