इंडियन प्लेट धंसने की यह क्रिया है 2400 किमी के ‘आर्क’ में चल रही है। इस रेंज में तकरीबन एक हजार भूकंप पट्टियों का अंदाजा है। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान इन भूकंप पट्टियों की मैपिंग कर रहा है। इसके बाद जांच करके इन पट्टियों की सटीक उम्र पता की जाएगी।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों के अलावा हिमालयी क्षेत्र में काम कर रहे अमेरिका, स्विटजरलैंड के विज्ञानी भी भूकंप पट्टियों के सक्रिय होने की पुष्टि कर चुके हैं। भूगर्भ विज्ञानी हिमालय क्षेत्र में अब तक सात सौ भूकंप पट्टियों की निशानदेही कर चुके हैं।
वाडिया के विज्ञानियों ने उत्तराखंड में अब तक 98 भूकंप पट्टियों की मैपिंग कर ली है। इन पट्टियों को चिन्हित करने के बाद इन पर नजर रखी जा रही है। इन पट्टियों से कभी भी भूगर्भ के अंदर मंडरा रही इनर्जी बाहर आ सकती है। विज्ञानियों का आकलन है कि पट्टियां 10 हजार साल से पांच लाख साल पहले निष्क्रिय हो गई थीं।
इंडियन प्लेट के धंसने से भूगर्भ का सिस्टम बदल रहा है जिससे जोड़ों के नीचे की प्लेटें एक से दूसरे स्थान पर खिसक रही हैं। इससे भूकंप पट्टियां सक्रिय हुई हैं।
24 अप्रैल को नेपाल, 24 अक्टूबर को पिथौरागढ़ और 26 अक्टूबर को हिंदूकुश के भूकंप को विज्ञानी इसी से जोड़ कर देख रहे हैं। स्विटजरलैंड के आइगर एम. विला, अमेरिका के डेविड बी राउले आदि ने भी भूकंप पट्टियों के सक्रिय होने की पुष्टि की है।
भूकंप पट्टियों हजारों-लाखों साल पुरानी हैं। इन्हें बदला नहीं जा सकता है। एहतियात बरता जा सकता है कि भूकंप पट्टियों के नजदीक आवासीय और विकास विकसित न की जाएं। यहां कभी भी भूगर्भ इनर्जी बाहर आ सकती है जिससे भूकंप के झटके लगेंगे और नुकसान हो सकता है। इन पट्टियों का चिन्हित करना और जानकारी रखना जरूरी है।