सावधान! अनुमान से दो गुना अधिक गर्म हो सकती है धरती
‘नेचर जियोसाइंस’ पत्रिका में प्रकाशित शोध में पाया गया कि यदि पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाए तो समुद्र का जलस्तर छह मीटर या अधिक बढ़ सकता है। यह निष्कर्ष पिछले 35 लाख साल पहले की तीन गर्म अवधियों के अवलोकन के नतीजों पर आधारित है। बता दें कि 35 लाख साल पहले 19वीं शताब्दी के पूर्व-औद्योगिक तापमान की तुलना में दुनिया 0.5 से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी। स्विट्जरलैंड की बर्न यूनिवर्सिटी के हबर्टस फिशर ने कहा कि पिछली गर्म अवधियों के अवलोकन से पता चलता है कि जलवायु मॉडलों का प्रवर्धन तंत्र, जलवायु मॉडल अनुमानों से परे बहुत लंबे समय के लिए तापमान बढ़ाता है।
फिशर ने कहा कि इससे पता चलता है कि वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लिए निर्धारित कार्बन बजट अनुमान से बहुत कम है। यह पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने में बहुत कम सफल होगा।
कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन है बड़ा कारण
होलोसीन थर्मल (5000-9000 साल पहले) और इंटरग्लेसियल (129,000-116,000 साल पहले) अवधियों में गर्मी पृथ्वी की कक्षा में अनुमानित परिवर्तन के कारण बढ़ी थीं। जबकि मध्य-प्लायोसीन (33 लाख से 30 लाख साल पहले) घटना वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता का परिणाम थी। उस दौरान वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता 350-450 पीपीएम थी। यह संख्या लगभग आज के समान है। आज हमारी धरती इन अवधियों की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हो रही है, क्योंकि मानवीय कारणों से कार्बन डाइऑक्साइड का तेजी से उत्सर्जन हो रहा है। यदि आज उत्सर्जन रुक जाता है तब भी संतुलन तक पहुंचने में सैकड़ों से लाखों साल लग जाएंगे।
तो रेगिस्तान हो जाएंगे हरे-भरे और जंगल में लगेगी आग
इस शोध में यह भी पता चला कि ध्रुवीय बर्फ कैप्स के बड़े क्षेत्र कैसे गिर सकते हैं और पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन से सहारा रेगिस्तान हरे रंग के हो सकते हैं और उष्ण कटिबंधीय जंगलों के किनारे आग लगने वाली सवाना में बदल सकते हैं।